उत्तराखण्ड की आग से ग्लेशियरों के पिघलने का खतरा: वैज्ञानिक - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 4 मई 2016

उत्तराखण्ड की आग से ग्लेशियरों के पिघलने का खतरा: वैज्ञानिक

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देहरादून /हरिद्वार 3 मई, वैज्ञानिकों की माने तो उत्तराखंड के जंगलों में लगी विकराल आग से पर्यावरण को काफी क्षति पहुंचने के साथ ही ग्लेशियरों के पिघलने से गंगा नदी में जल की कमी होने के अलावा ओजोन परत को भी नुकसान होने से मानसून का चक्र बिगड़ सकता है । सूत्रों के अनुसार जंगलों में लगी आग से उठने वाले धुएं से आसमान में ब्लैक कार्बन का उत्सर्जन होता , जो काफी समय तक बादलों में एकत्रित होता रहता है । यह स्थिति काफी नुकसान दायक है, जिससे असमय वर्षा या तापमान में एकाएक बढ़ोतरी हो सकती है । उत्तराखण्ड में लगी आग से तापमान अचानक .02 डिग्री बढ़ गया है । सूत्रों के अनुसार यहां लगी आग और इससे निकलने वाला कार्बन तेजी से पिघल रहे ग्लेशियरों को पिघलाने का कारक होता है । काला कार्बन एवं राख हवा में उड़कर ग्लेशियर पर जाकर जमा हो जाती है ,जिसके बाद ग्लेशियर गर्मी और रोशनी को ग्रहण करने लगता है, जिसके बाद इसके पिघलने की प्रक्रिया तेजी से बढ़ने लगती है । उत्तराखण्ड के जंगलों में धधकती आग से जहां लगभग 3000 हेक्टैयर जंगलों को प्रभावित किया है,वहीं छह से अधिक लोगों तथा सैंकडों जानवरों की जाने जा चुकी है । इसके साथ ही करोडों की वन संपदा खाक हो चुकी है । आग बुझाने के लिये सरकारी अमला युद्धस्तर पर जुटा हुआ है लेकिन हालात अभी पूरी तरह नियंत्रण में नहीं है । 

सूत्रों के अनुसार ग्लेशियर में जमा बर्फ साधारतणतः गर्मी एवं लाईट को रिफ्लेकट करके वापस लौटा देती है । जिससे ग्लेशियर ठोस चट्टान का रूप ले लेते है लेकिन कार्बन और राख के कारण उसका यह गुण खंडित हो जाता है । इससे ग्लेशियर के साथ साथ पूरे पर्यावरण पर असर पड़ सकता है । नदियों में जल की कमी हो सकती है । तापमान बढने से मानसून पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है । सूत्रों के अनुसार जंगलों में आग लगने की मुख्य वजह बारिश कम होने के कारण जमीन में नमी का समाप्त होना और जंगलों का शुष्क होना है । मानवीय अथवा प्रकृतिक कारणों से लगने वाली छोटी आग भी विकराल रूप धारण कर सकती है , जिससे कम समय में आग तेजी से फैेल कर एक बड़े ईलाकें में फैल सकती है । गौरतलब है कि उत्तराखण्ड की पर्वतमालाओं में स्थित ग्लेशियर से कई प्रमुख नदियां निकलती है , जो उत्तर भारत और पश्चिम बंगाल के लेागों के लिए जीवन दायनी मानी जाती है। ग्लेशियर इन नदियों के प्राणदाता है जिन्हें नुकसान पहुंचने से नदियों के अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा सकता है । 

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