नयी दिल्ली, 17 जून, पर्वतराज हिमालय के लिये एक विशिष्ट विकास योजना की मांग का समर्थन करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने आज नसीहत दी कि प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव से बचने के लिये प्रकृति की मर्यादा मानकर आधुनिक विज्ञान से सिद्ध पुरातन लाेकपरंपराओं के आधार पर विकास किया जाना चाहिये। केदारनाथ त्रासदी की तीसरी बरसी पर यहां आयोजित एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए श्री भागवत ने कहा कि लोगों को सोचना चाहिये कि आखिर केदारनाथ जैसी त्रासदी बीते 200-500 वर्षों में कभी नहीं सुनी गयी तो उसके क्या कारण रहे होंगे। जिन बातों को पहले अवैज्ञानिक एवं दकियानूसी माना जाता था, अब उस ज्ञान को विज्ञान की कसौटी पर कसा जा रहा है और उनकी तमाम बातें खरी उतर रहीं हैं। उन्होंने कहा कि पहले के लोग पारंपरिक ज्ञान के आधार पर प्रकृति की गोद में रहा करते थे। इसलिये पहले आपदाएं अवश्य आयीं लेकिन मानवता उतनी उद्वेलित नहीं हुई। परंपरागत ज्ञान को विज्ञान की कसौटी पर परखा जाये और जो भी उस पर खरा उतरे, उसे अपनाया जाये। सरसंघचालक ने कहा कि हिमालय की आयु कम है। जैसे बालक की हड्डियाँ कमजोर होतीं हैं, वैसे ही हिमालय की मिट्टी अभी कठोर चट्टान नहीं बनी है। इसलिये ज्यादा खोदी जायेगी, निर्माण कार्य किया जाएगा तो भूस्खलन होगा ही। उन्होंने कहा कि हिमालय हमारी यात्राआें, तपस्या का स्थल बना। उन्होंने जनश्रुतियों को भी वैज्ञानिक खोज का संभावित माध्यम बताते हुए कहा कि क्वान्टम विज्ञान आध्यत्म के करीब जा रहा है। इसलिये विकास की अवधारणा को नये सिरे से देखना होगा।
उन्होंने कहा कि भारत के परंपरागत दृष्टिकोण में हर कण का एक दूसरे से संबंध है। यानी एक कण पर पड़ने वाले प्रभाव का दूसरे पर भी असर अवश्य पड़ता है। इसलिये एक कण के बारे में कोई भी बात दूसरे को ध्यान में रख कर की जाती है। यही संसार की मर्यादा है। मर्यादा धर्मस्वरूप है। इसलिये झोपड़ी घरों में संचित ज्ञान निधि को मर्यादित ढंग से जनजीवन के काम में कैसे लाया जाये। इसका विचार जरूरी है। उन्होंने कहा कि नीतियों में मर्यादा का विवेक होना चाहिये। नीतियां मनुष्य को सेवा परायण एवं परोपकारी बनाने वाली होनी चाहिये। श्री भागवत ने लोगों के आचरण के बारे में भी मनुष्य में कर्तव्यबोध हो और जीवटता से संकटों में दूसरों की मदद की भावना हो। एक दूसरे की सुख संवेदना की भावना होगी तो कोई भी संकट हो समाज सरकार की मदद के बिना ही उसका सामना कर लेता है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ लोगों को कोई नयी बात नहीं सिखाता। वह केवल पुरातन परंपराओं को नये सिरे से प्रोत्साहन देता है। कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व केन्द्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी ने की। कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहसरकार्यवाह कृष्ण गोपाल, विदेश राज्य मंत्री जनरल वी के सिंह, वन एव पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री निर्मला सीतारमण, उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक आदि उपस्थित थे। कार्यक्रम का आयोजन केदारनाथ त्रासदी में अपने परिवार के आठ सदस्य गंवाने वाले और स्वयं काल के मुख से सुरक्षित बाहर आने वाले भाजपा सांसद एवं बिहार सरकार में पूर्व मंत्री अश्विनी चौबे के अखिल भारतीय उत्तराखंड त्रासदी मंच द्वारा किया गया।

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