इराक युद्ध में शामिल होने का फैसला गलत था : ब्रिटिश रिपोर्ट - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।


गुरुवार, 7 जुलाई 2016

इराक युद्ध में शामिल होने का फैसला गलत था : ब्रिटिश रिपोर्ट

britain-to-join-the-iraq-war-is-a-mistake-of-tony-blair-british-report
लंदन: साल 2003 में इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन को अपदस्थ करने के लिए अमेरिका के नेतृत्व में हुए हमले में ब्रिटेन का शामिल होना अंतिम उपाय नहीं था और यह दोषपूर्ण खुफिया जानकारी पर आधारित था। इराक युद्ध को लेकर हुई एक जांच की रिपोर्ट में बुधवार को यह बात कही गई जिसमें जंग में शामिल होने के तत्कालीन प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर के फैसले को दोषपूर्ण ठहराया गया है। साल 2009 में शुरू की गई आधिकारिक जांच के अध्यक्ष जॉन शिलकॉट ने कहा कि ब्रिटेन ने इराक पर हमले में शामिल होने से पहले सभी शांतिपूर्ण विकल्पों को नहीं तलाशा था। पूर्व वरिष्ठ नौकरशाह ने कहा, ''हमने निष्कर्ष निकाला है कि निरस्त्रीकरण  के लिए शांतिपूर्ण विकल्प तलाशने से पहले ब्रिटेन ने इराक पर हमले में शामिल होने का फैसला किया। उस समय सैन्य कार्रवाई अंतिम उपाय नहीं थी।'' उन्होंने यह भी कहा कि इराक के जनसंहार के हथियारों के बारे में फैसले जिस निश्चितता के साथ पेश किये गये, वे न्यायोचित नहीं थे और संघर्ष के बाद की योजना पूरी तरह अपर्याप्त थी। इराक युद्ध पर उनकी 12 खंड, 26 लाख शब्दों की रिपोर्ट तत्कालीन प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन द्वारा जांच का आदेश दिए जाने के सात साल बाद आई है। इराक युद्ध में 2003 से 2009 के बीच करीब 180 ब्रिटिश सैनिक मारे गए थे।

हुसैन को इराक के राष्ट्रपति पद से हटाने के लिए अमेरिका के साथ जंग में शामिल होने के ब्रिटेन के फैसले के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले तत्कालीन प्रधानमंत्री ब्लेयर पर शिलकॉट ने अपनी रिपोर्ट में सख्त फैसला दिया। शिलकॉट की बहुप्रतीक्षित रिपोर्ट के दायरे में 2001 से 2009 के बीच करीब एक दशक में ब्रिटिश सरकार के नीतिगत फैसलों को शामिल किया गया है। जांच रिपोर्ट में ब्लेयर द्वारा 28 जुलाई, 2002 को तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश को भेजे गये एक नोट का उल्लेख है जिससे संकेत मिलता है कि जंग छेड़ने के फैसले पर कितनी जल्दी काम शुरू हो गया। यह नोट इराक पर हमले से कुछ महीने पहले भेजा गया। ब्लेयर ने लिखा, ''जो भी हो, मैं आपके साथ रहूंगा। लेकिन यह कठिनाइयों को साफतौर पर आंकने का समय है। इस पर योजना और रणनीति अंततोगत्वा कठोरतम हैं।'' इस बीच बुधवार को रिपोर्ट जारी किए जाने के बाद प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने संसद में कहा कि 2002 में इराक पर हमले के अमेरिका के फैसले में शामिल होने के ब्लेयर के निर्णय से सबक सीखे जाने चाहिए ताकि सुनिश्चित हो कि जंग हमेशा अंतिम उपाय होता है। रिपोर्ट के नतीजों पर अगले सप्ताह दो दिवसीय संसदीय चर्चा की घोषणा करते हुए कैमरन ने हाउस ऑफ कॉमंस में सांसदों से कहा, ''कुछ सबक होते हैं जो हमें सीखने चाहिए और खुलकर सीखते रहने चाहिए। देश को जंग में झोंकना हमेशा अंतिम उपाय होना चाहिए और तभी ऐसा किया जाना चाहिए जब सभी विश्वसनीय विकल्पों को तलाश लिया गया हो।'' उधर ब्लेयर ने दावा किया कि बुधवार को जारी रिपोर्ट उन्हें किसी ‘झूठ या छल-कपट’से बरी करती है।

लेबर पार्टी के 63 वर्षीय नेता ब्लेयर ने कहा कि वह किसी भी गलती की पूरी जिम्मेदारी लेंगे लेकिन उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि शिलकॉट की 'इराक जांच' स्पष्ट करती है कि कोई जालसाजी नहीं की गई या खुफिया जानकारी का अनुचित उपयोग नहीं किया गया। उन्होंने कहा, ''मैं बिना किसी बहाने के किसी भी गलती की पूरी जिम्मेदारी लूंगा। उसी समय मैं बताऊंगा कि फिर भी मैं क्यों मानता हूं कि सद्दाम हुसैन को हटाना सही था और मैं क्यों नहीं मानता कि आज पश्चिम एशिया या दुनिया में कहीं भी हम जो आतंकवाद देखते हैं, उसकी वजह यही है।'' ब्लेयर ने कहा, ''सद्दाम हुसैन के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के मेरे फैसले से लोग सहमत हैं या नहीं, लेकिन मैंने इसे अच्छे के लिए किया था और मुझे यह देश के हित में लगा।''

कोई टिप्पणी नहीं: