आर्थिक रूप से मजबूत भारत के निर्माण के लिए आगे आयें : प्रणव - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 15 अगस्त 2016

आर्थिक रूप से मजबूत भारत के निर्माण के लिए आगे आयें : प्रणव

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नयी दिल्ली,14 अगस्त, राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने देश में विघटनकारी और असहिष्णु शक्तियों के उभार तथा समाज के कमजोर वर्गों पर हो रहे हमलों एवं धर्म के आधार पर लोगों को कट्टर बनाने की दुनिया में बढ़ रही प्रवृत्तियों पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए सांस्कृतिक विविधता और बहुलवाद को स्थापित कर आर्थिक रूप से मजबूत भारत के निर्माण के लिए आगे आने का लोगों से आह्वान किया है। श्री मुखर्जी ने आजादी की 70वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर आज राष्ट्र के नाम सम्बोधन में कहा कि पिछले चार वर्षों में उन्होंने कुछ अशांत,विघटनकारी शक्तियों को सिर उठाते हुए देखा है और कमजोर वर्गों पर हुए हमलों के कारण राष्ट्रीय मूल्यों को गहरा धक्का लगा है, जिससे सख्ती निपटे जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि दुनिया में भी आतंकवादी वारदातों में तेजी आई हैं और इसकी जड़ें धर्म के आधार पर लोगों को कट्टर बनाने में छिपी हैं। ये ताकतें धर्म के नाम पर निर्दोष लोगों की हत्या के अलावा भौगोलिक सीमाओं को भी बदलने की धमकी दे रही है, जो विश्व शांति के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकता है। इस तरह की अनेक अमानवीय, मूर्खतापूर्ण और बर्बरता पूर्ण घटनायें फ्रांस, बेल्जियम, अमेरिका, केन्या और अफगानिस्तान तथा बंगलादेश जैसे पड़ोसी देशों में भी खतरा पैदा कर रही हैं और पूरी दुनिया को एक स्वर में इसका मुकाबला करना ही होगा। विश्व शांति में भारत के योगदान का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि भारत ने अपने विशिष्ट सभ्यतागत योगदान द्वारा अशांत विश्व को बार-बार शांति और सौहार्द का संदेश दिया है। हाल के दिनों में समाज के कमजोर वर्ग के लोगों, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ बढ़ती हिंसा की घटनाओं पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि ये हमले राष्ट्रीय चरित्र के विरुद्ध हैं, जिनसे सख्ती से निपटा जाना चाहिए। ये घटनाएं कुछ असामाजिक तत्वों के पथ के भटकाव के परिणाम हैं और उन्हें पूरी उम्मीद है कि ऐसे तत्व हाशिये पर ही रहेंगे और देश का आर्थिक विकास निर्बाध रूप से होता रहेगा । राष्ट्रपति ने अपने चार वर्ष के कार्यकाल के अनुभव बांटते हुए कहा,“इन चार वर्षों में मैंने कुछ अशांत, विघटनकारी और असहिष्णु शक्तियों को सिर उठाते हुए देखा है लेकिन मुझे भरोसा है कि ऐसे तत्वों को निष्क्रिय कर दिया जाएगा और भारत की शानदार विकास यात्रा बिना रुकावट के आगे बढ़ती रहेगी।” उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान न केवल राजनीतिक और विधिक दस्तावेज है, बल्कि एक भावनात्मक सांस्कृतिक और सामाजिक करार भी है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नेतृत्व में 1947 में जब हमने आजादी हासिल की तब किसी को भी यह विश्वास नहीं था कि भारत में लोकतंत्र बना रहेगा, लेकिन सात दशकों के बाद भी सवा अरब भारतीयों ने अपनी सम्पूर्ण विविधता के साथ इसे मजबूत बनाये रखा।

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