वयोवृद्ध साहित्यकार प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव का लम्बी बीमारी के बाद 31 जुलाई, 2016 को लखनऊ में निधन हो गया। वे 86 वर्ष की अवस्था थे और पिछले काफी समय से अस्वस्थ चल रहे थे। 31 जुलाई की देर शाम उन्हें वेंटीलेटर पर ले जाया गया, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। उनका अंतिम संस्कार 01 अगस्त को दारागंज घाट, इलाहाबाद में सम्पन्न हुआ। यह सूचना उनके पुत्र एवं साहित्यकार डॉ. हेमंत कुमार (मो. 7783901150, 9451250698) ने दी है। 11 मार्च, 1929 को जौनपुर के खरौना गांव में जन्में प्रेम स्वरूप श्रीवास्तव उत्तर प्रदेश के शिक्षा विभाग में विभिन्न पदों पर कार्यरत रहे और जीवन की अंतिम बेला तक साहित्य सेवा में रत रहे। आपने पिछले छः दशकों में प्रुचर मात्रा में साहित्य का सृजन किया। आपकी रचनाएं हिंदी की चर्चित पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहीं।
आपने कहानियों, नाटकों, लेखों, रेडियो नाटकों, रूपकों के साथ प्रचुर मात्रा में बाल साहित्य रचा है। आपकी विभिन्न विधाओं में 50 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं। आपकी पुस्तकें प्रकाशन विभाग, भारत सरकार, नेशनल बुक ट्रस्ट सहित अनेक संस्थाओं से प्रकाशित हैं, जिनमें से “वतन है हिन्दोस्तां हमारा” (भारत सरकार द्वारा पुरस्कृत), “अरुण यह मधुमय देश हमारा”, “यह धरती है बलिदान की”, “जिस देश में हमने जन्म लिया”, “मेरा देश जागे”, “अमर बलिदान”, “मदारी का खेल”, “मंदिर का कलश, ”“हम सेवक आपके”, “आंखों का तारा” काफी चर्चित रही हैं। इसके अतिरिक्त आपने तीन सौ से अधिक वृत्त चित्रों का लेखन कार्य। इन सेवाओं के लिए आपको भारत सरकार सहित अनेक संस्थाओं से पुरस्कृत/सम्मानित किया गया।
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