प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गौरक्षकों के बारे में जिस प्रकार से गोरखधंधे में शामिल होने वाला बयान दिया है। उससे देश में एक बार फिर से गौरक्षा को लेकर बहस होने लगी है। आज के संभ्रम भरे वातावरण में इस प्रकार के विषयों पर बहस होना आवश्यक भी है, क्योंकि कभी कभी बिना बहस के उसकी सार्थकता सामने नहीं आ पाती। हम जानते हैं कि देश में गौमाता को काटने के लिए जितने भी कत्ल खाने संचालित किए जा रहे हैं। उनके लिए पूरे देश भर से नए नए तरीकों से गौवंश की तस्करी की जाती है। इनको रोकने के लिए देश भर में गौभक्त समाज द्वारा कार्यवाही की जाती है। यह अभिनंदनीय विषय है कि वर्तमान में केवल अपने लिए जीने वाले व्यक्तियों के समूह में से कुछ लोग गौहत्या रोकने के लिए तत्पर रहते हैं।
हम यह भी जानते हैं कि गौवंश किसी न किसी रुप से भारत के समाज के लिए, गांव के लिए समृद्धि का प्रतीक है। भारतीय समाज की यह अकाट्य मान्यता है कि गाय में सभी देवी देवताओं का वास होता है। सत्य यह भी है कि जिस व्यक्ति ने जीवन में कभी भी गाय की सेवा की है, उसे उसका परिणाम अच्छा ही मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण गौपालन करके गोपाल के नाम से जाने लगे, और समाज के लिए पूजनीय बन गए। इसी प्रकार भारत का संत समाज भी गौरक्षा के लिए सतत प्रयत्नशील हो रहा है। गाय का पूरा जीवन ही गांव का सम्पूर्ण अर्थशास्त्र है। वर्तमान में पंचगव्य चिकित्सा के माध्यम से कई रोगी व्यक्ति स्वस्थ जीवन की सार्थकता को साकार करते हुए दिखाई देते हैं। कहा जाता है कि गाय का रखरखाव सही तरीके से किया जाए तो वह एक एकड़ की खेती के लिए पर्याप्त खाद तो उपलब्ध करा ही सकती है, साथ ही एक परिवार का पालन पोषण भी कर सकती है। कुल मिलाकर गाय बचेगी तो ही देश बचेगा। देश बचाने का तात्पर्य केवल भूमि के टुकड़े को बचाना भर नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, हमारा ग्राम्य जीवन, हमारी परंपराओं को बचाने का माध्यम हैं। भारत देश में गाय की उपयोगिता को समझना आज के परिवेश में बहुत ही जरुरी है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जो कहा है उसकी व्यापक समीक्षा की जानी चाहिए। यह बात सही है कि कुछ लोग गौरक्षा के नाम पर गोरखधंधा कर रहे हैं। कई जगह ऐसे समाचार भी मिलते हैं, जिसमें गौवंश से भरे ट्रक को कुछ समय बाद छोड़ दिया जाता है। लेकिन इसमें केवल समाज के ही कुछ लोग शामिल हैं, इसके अलावा भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था भी जिम्मेदार है। पुलिस की कार्यवाही के बाद भी गौवंश से भरे ट्रकों को छोड़ दिया जाता है। इसके पीछे आर्थिक लेन देन का कारण भी हो सकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साफ कहा है कि प्रदेश की सरकारें गोरक्षा के नाम पर गोरखधंधा करने वालों पर कार्यवाही करे। लेकिन इसके अलावा मेरा यह भी कहना है कि जो संस्थाएं शुद्ध अंत:करण से गौरक्षा में लगी हैं, उनका मनोबल बढ़ाने के लिए भी सरकारों को प्रयास करना चाहिए, जिससे सही मायनों में गौवंश की रक्षा हो सके।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मैं कहना चाहता हूं कि जमीनी हकीकत यह है कि गौमाता को ट्रकों में भर कर कत्लखानों में धड़ल्ले से ले जाया जाता है। कभी कभार उत्साही युवक ऐसे ट्रकों को पकड़ कर गौमाता को बचा लेते हैं, लेकिन आपने तो ऐसे उत्साही युवकों का उत्साह भी खत्म कर दिया है। अब शायद ही कोई उत्साही युवक ट्रकों से गौमाता को मुक्त करवाएं। यदि किसी युवक ने हिम्मत की तो उसे अपराधी मान कर जेल में डाल दिया जाएगा। ऐसे में अब गाय की रक्षा हो सकेगी, इस पर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है। प्रधानमंत्री को संपूर्ण देशवासियों की भावनाओं का ख्याल रखना चाहिए। आज भी देशवासी आपको आशा की किरण मानते हैं। आप चाहें 80 फीसदी गौरक्षकों को अपराधी कहें, लेकिन आमजन का मानना यही है कि 70-80 फीसदी गौरक्षक असली हो सकते हैं, फर्जी नहीं।
गौमाता की महिमा के बारे में बहुत कहा जा सकता है। गाय धरती पर एकमात्र ऐसा प्राणी है जो आक्सीजन ग्रहण करता है। साथ ही आक्सीजन ही छोड़ता है। यह इतनी शुद्ध आक्सीजन होती है कि पेड़ पौधे भी नहीं देते। गाय के मूत्र में पोटैशियम, सोडियम, नाइट्रोजन, फॉस्फेट, यूरिया एवं यूरिक एसिड होता है। दूध देते समय गाय के मूत्र में लैक्टोस की मात्रा होती है, जो हृदय रोगों के लिए लाभकारी है। गौमाता का दूध चिकनाई रहित परन्तु शक्तिशाली होता है। उसे कितना भी पीने से मोटापा नहीं बढ़ता तथा स्त्रियों के प्रदर रोग में भी लाभदायक होता है। गौ-मूत्र सुबह खाली पेट पीने से कैंसर ठीक हो जाता है। इसके अलावा बहुत सारे गुण हैं, जो मानव जीवन और धार्मिक मान्यताओं को पुष्ट करता है। अमरीकन वैज्ञानिक जेम्स मार्टिन के अनुसार गाय का गोबर एवं खमीर को समुद्र के पानी के साथ मिला कर ऐसा केमिकल बनाया जो बंजर भूमि को हरा-भरा कर देता है। सूखे तेल के कुए में फिर से तेल आ जाता है।
महान देश भक्त पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने कहा है कि यदि हम गौओं की रक्षा करेंगे तो गौएँ भी हमारी रक्षा करेंगी। वर्तमान में भी हम भारत देश को अहिंसा का पुजारी मानते हैं। आज अहिंसावादी भारत देश हिंसक और बहुत बड़े मांस निर्यातक देश बन गया है। इसके लिए प्रतिदिन भारी मात्रा में गाय काटी जा रही हैं। अगर यह सिलसिला इसी प्रकार अविराम गति से चलता रहा तो एक दिन गाय देखने को भी नहीं मिलेगी। यह बड़ी विडम्बना है कि एशिया का सबसे बड़ा कत्लखाना अन्य इस्लामिक देशों में नहीं बल्कि भारत के महाराष्ट्र प्रान्त में है। जहाँ हजारों गायें रोज कटती है। दूसरी अलकबीर गोवधशाला आंध्रप्रदेश में है। यहाँ रोज 6 हजार गौएँ, इससे दुगुनी भैसें तथा पड़वे काटे जाते हैं। इसका लगभग 20,000 टन मांस विदेशों में निर्यात होता है।
देश के महान वैज्ञानिकों ने अपने शोधों से यह साबित कर दिया है कि पृथ्वी पर भूकंप अधिकांशत: ईपी वेव्स के कारण ही आते हैं। ये वेव्स गाय एवं अन्य प्राणियों को क़त्ल करते समय उत्पन्न दारुण वेदना एवं चीत्कार से निकलती है। कटती गायों की चीत्कार से पृथ्वी की रक्षा कवच कही जाने वाली ओजोन परत में 2 करोड़ 70 लाख वर्ग किलोमीटर का छिद्र हो गया है। यदि गायों की हत्या इसी प्रकार चलती रही तो वर्ष 2020 तक प्रलय की सम्भावना निश्चित है। इस सब बातों से यह तय है कि गायों की रक्षा न की गई तो भारत ही नहीं पूरा विश्व ही समाप्त हो जाएगा। इसलिए वैश्विक जगत की रक्षा के लिए यह आवश्यक है कि गौमाता की रक्षा के लिए अभी से तैयारी करना चाहिए।
हम गौरक्षा के लिए किए आंदोलनों पर नजर डालें तो हमें ज्ञात हो जाएगा कि 7 नवम्बर 1966 को गौभक्तों ने संसद पर जबरदस्त प्रदर्शन किया। उस समय की केन्द्र सरकार ने गाय काटने वालों का अप्रत्यक्ष समर्थन करते हुए जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड की तरह निर्दोष शांत गौभक्तों पर गोली चलाई। उसके बाद भी गौहत्या बंदी को लेकर कई निवेदन सरकारों को भेजें गए लेकिन सभी कुडेदानों की शोभा बढ़ाने वाले साबित हुए। अत: सरकार से निवेदन द्वारा सकारात्मक परिणाम की आस छोड़कर सभी गौभक्तों को कुछ ठोस कदम उठाने होंगे, जिससे गौमाता की रक्षा हो सके।
सुरेश हिन्दुस्थानी
झोकन बाग, झांसी, उत्तरप्रदेश
फोन-०९४५५०९९३८८

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