500 और 1000 के नोटों की बन्दी : भारत पर अनन्तकाल तक शासन करने का फासिस्ट फरमान - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 14 नवंबर 2016

500 और 1000 के नोटों की बन्दी : भारत पर अनन्तकाल तक शासन करने का फासिस्ट फरमान

मोदी सरकार द्वारा 500 और 1000 के नोट बन्द करके 2000 का नोट जारी करने के निर्णय को प्रारम्भ में बहुत कम लोग समझ पाये। मगर जैसे ही जनता की सड़कों पर लम्बी कतारें नजर आने लगी राजनैतिक दलों ने प्रतिक्रिया देना शुरू की है। यद्यपि वास्तविकता को अभी तक भी सही तरीके से सामने नहीं लाया जा रहा है। इसे समझने के लिये सबसे पहले हमें इस बात को खुलकर स्वीकार करना होगा कि भारतीय #लोकतंत्र_की_आधारशिला————''#दलीय_लोकतंत्र''———है और दलीय लोकतंत्र की आधारशिला है ——————''#काला धन''————— है। ''काला धन'' की अधाराशिला पर सभी राजनैतिक दल/पार्टी और सभी जनप्रतिनिधि टिके हुए हैं या ''काला धन'' में डूबने को विवश हैं, क्योंकि किन्हीं अपवादों को छोड़कर बिना ''काला धन'' की अपार आपूर्ति के चुनावी समर जीतना असम्भव है।

अब जब हम यह मानते और स्वीकारते हैं कि दलीय लोकतंत्र की आधारशिला ——————''काला धन''————— है, तो इस बात को भी मानना होगा कि सभी राजनैतिक दलों के पास जो अकूत ''काला धन'' आता वह नगदी के रूप में अज्ञात स्थानों पर 500 एवं 1000 के नोटों के रूप में जमा रहता रहा है। जिसका स्रोत या लेखा—जोखा मांगने या जानने का आम जनता को सूचना अधिकार/#आरटीआई के कानून तहत भी हक नहीं है। इससे स्वतः प्रमाणित है कि यह राजनैतिक दलों की सामूहिक स्वीकारोक्ति है कि उनके पास #अपवित्र_स्रोतों से ''काला धन'' आता है और चुनावी समर में अपवित्र तरीके से ''काला धन'' खर्च किया जाता है। इस प्रकार ''काला धन'' हमारे लोकतंत्र की वास्तविक आत्मा और राजनैतिक दलों की दुखती रग बन चुका है। ऐसे में वर्तमान केन्द्र सरकार द्वारा इस दुखती रग पर वार करके शेष सभी दलों की आत्मा को मार दिया गया है। अंधभक्तों और शातिर लोगों द्वारा #राष्ट्रभक्ति की आड़ में इस निर्णय की प्रशंसा में गीत गाये जा रहे हैं। लेकिन इसके पीछे छिपी/निहित वास्तविकता को समझना बहुत जरूरी है।

लोकतंत्र की #आवश्यक_बुराई बन चुके ''काला धन'' की आधारशिला पर खड़े भारत के लोकतंत्र को बचाने के लिये चालाकी से परिपूर्ण इस निर्णय के छद्म मकसद को जानना और समझना प्रत्येक भारतीय नागरिक के लिये बहुत जरूरी है। बल्कि संविधान की और राष्ट्र की रक्षा हेतु अपरिहार्य है। तो यह जाना जाये की तत्काल अपुष्ट, किन्तु महत्वूपर्ण स्रोतों से छन—छन कर जो जानकारी सामने आ रही है, वह अत्यधिक भयावह और हिला देने वाली है। सूत्रों के अनुसार पिछले दिनों #सत्ताधारी_दल और उसके रिमोट संघ से सम्बद्ध अनेकों लोगों ने—

1. राजस्थान के अजमेर जिले में हजारों करोड़ रुपये की #जमीनें_खरीदी गयी हैं। अन्य राज्यों में भी ऐसा हुआ है।
2. देशभर में हजारों करोड़ रुपये का #सोना_खरीदा गया है।
3. देशभर में हजारों करोड़ रुपये #रियल_स्टेट में लगाये गये हैं।
4. हजारों करोड़ #विदेशों_में_जमा करवाया गया है।
और
5. अपनी हैसियत और सत्ता से नजदीकी का दुरुपयोग करते हुए हजारों करोड़ों की राशि को 2000 के नोटों में #बदलाया जा चुका/रहा है।

उक्त पांचों प्रकार के ''काले धन'' को बहुत आसानी से #सफेद_धन में बदलकर भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगियों द्वारा उत्तर प्रदेश, पंजाब आदि राज्यों के विधानसभा चुनावों और लोकसभा के अगले आम चुनावों में पानी की भांति बहाया जा सकेगा, बल्कि बहाया जायेगा। गरीब वोटरों को आसानी से अपने पक्ष में #दिग्भ्रमित किया जा सकेगा और, या #खरीदा भी जा सकेगा और चुनावों के असली हथियार ''काला धन'' से निहत्थी हो चुकी शेष सभी पार्टियाँ निरीह और असहाय अवस्था में चुनावी समर में अपनी हार को स्वीकारने को मजबूर होंगी। निश्चय ही 500 और 1000 के नोट बन्द करके 2000 का नोट जारी करने का निर्णय भारत पर अनन्त काल तक शासन करने और जनमत के समर्थन के नाम पर अपनी पुरातनपंथी अमानवीय #फासिस्ट और #मनुवादी विचारधारा को जबरन थोपने के दूरगामी अमोघ अस्त्र के रूप में चला गया है! जिसे सभी दलों की सामूहिक एकता के बिना, केवल आम जनता के भरोसे असफल करना असम्भव है। अन्यथा भारत के दलीय लोकतंत्र को धराशाही होने से बचाना असम्भव है!

@फिर भी इस आलेख को लिखने की सार्थकता तब ही सिद्ध होगी, जबकि लोकतंत्र को ज़िंदा रखने को प्रतिबद्ध प्रत्येक पाठक/राष्ट्रभक्त इस लेख में अंतर्निहित सत्य की पुष्टि करने वाले 5 बिंदुओं में निहित #षड्यंत्र के अपने आसपास बिखरे पड़े सबूतों को उजागर करने वाले प्रमाण जुटाने में सक्रिय सहयोगी बनकर, अपना #संवैधानिक_फर्ज अदा करने का साहस दिखायेगा। आज के संदर्भ में यह साहसिक पहल राष्ट्रभक्ति, राष्ट्रशक्ति, राष्ट्रीयता और राष्ट्र को बचाने के समर/युद्ध में अपने-अपने योगदान/बलिदान का वक्त है! जो भी फर्ज निभायेगा शहीदों से कम गौरव नहीं पायेगा।

आखिर कब तक सिसकते रहोगे?
बोलोगे नहीं तो कोई सुनेगा कैसे??






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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

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