बुलन्दशहर 31 जनवरी, उत्तर प्रदेश राज्य विधानसभा के इस बार के चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल(रालोद) ने दमदार प्रत्याशियों को मैदान में उतारकर बहुजन समाज पार्टी(बसपा), भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) और समाजवादी पार्टी(सपा) कांग्रेस गठबंधन को पश्चिमी इलाके में कड़ी चुनौती दे रखी है। राजनीति के गलियारों में यह यक्ष प्रश्न चर्चा में है कि सूखे नल से यदि इस बार पानी निकला तो इससे तीनों दलों की मुश्किलें बढेंगी। ये चुनाव चौधरी अजित व चौधरी जयन्त का राजनीतिक भविष्य भी तय करेगा। किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह के समय में पहले बीकेडी फिर भारतीय लोक दल जिले की राजनीति की धुरी थी। समय बदला और पार्टी के नेतृत्व में भी बदलाव आया। पार्टी की चाल भी बदली जिसके चलते जिले की राजनीति मेें रालोद हाशिये पर आ गया। कई चुनाव के बाद यह पहला मौका है कि चौधरी अजित सिंह के नेतृत्व में रालोद जिले की सभी सात सीटों पर मजबूती के साथ चुनाव लड़ रहा है। वैसे रालोद ने पहली बार पूरे प्रदेश में दमदार उम्मीदवार उतारे हैं।
प्रत्याशियों में 22 पूर्व विधायक व तीन वर्तमान विधायक हैं। यह बात दीगर है कि रालोद के वर्तमान नौ विधायकों में से छह विधायक पाला बदलकर दूसरे दलों के टिकट पर मैदान में हैं। बीते कई चुनावों से साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के चलते लोकदल का पराम्परागत वोटर कहे जाने वाला मतदाता भाजपा के पाले में रहा है। मुजफ्फरनगर जिले के कवाल कांड ने इसे और हवा दी। भाजपा इस चुनाव में कैराना से पलायन के मुद्दे को भी हवा दे रही है। यही कारण है कि चौ0 अजित सिंह ने इस बार बड़ी होशियारी से चुनावी बिसात बिछायी है।उनके सामने रालोद को मिलने वाले वोटों के प्रतिशत में इजाफा करना, अधिक से अधिक सीटों पर अपने उम्मीदवारों को विजयी कराना सबसे बड़ा लक्ष्य है। यदि वोट प्रतिशत कम रह गया तो रालोद की राज्य स्तरीय मान्यता पर खतरा आयेगा। अपेक्षित संख्या में सीटों पर विजय मिली और विधानसभा त्रिशंकु बनी तो अपने विधायकों के अच्छी संख्या के दम पर छोटे चौधरी सत्ता के लिये मनमाफिक डील कर सकेंगे। इसी सोच के चलते उन्होंने ऐसे लोगों को टिकट दिया है जो चुनाव घोषणा के पूर्व तक किन्हीं अन्य दलों में थे। बुलन्दशहर में स्याना, बुलन्दशहर, सिकन्द्राबाद, शिकारपुर, अनूपशहर ऐसी सीट हैं जहां जाट मतदाता परिणाम को इधर-उधर करने की स्थिति मेें हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी अनेक मतदाता ऐसे हैं जिनका चौधरी चरण सिंह व उनकी पार्टी से भावनात्मक लगाव रहा है। ये मतदाता 2014 के लोकसभा चुनाव में चौ0 अजित व जयन्त की हार से दुखी हैं और नहीं चाहते कि विधानसभा के चुनाव में भी छोटे चौधरी की हार का मुंह देखना पड़े। इस बार के चुनाव में रालोद समर्थक अपने मतदाताओं के सामने जाकर यही प्रचार कर रहे हैं कि यदि रालोद के प्रत्याशियों की खस्ता हालत रही तो यह चौधरी साहब की पार्टी का आखिरी चुनाव हो सकता है। राज्यस्तरीय पार्टी की मान्यता भी चली जायेगी। समर्थक अपने मतदाताओं को पार्टी व प्रत्याशी से भावनात्मक ढंग से भी जोड़ने की कोशिश में लगे हैं। कहा जा रहा है कि त्रिशंकु विधानसभा होने पर रालोद के समर्थन के बिना कोई सरकार नहीं बन पायेगी, और रालोद के समर्थन से बनने बाली सरकार में चौ0 चरण सिंह के पौत्र जयन्त चौधरी कम से कम उप मुख्यमंत्री जरूर बनेंगे लेकिन यह तभी सम्भव होगा जब चौधरी साहब के अनुयायी रालोद के उम्मीदवारों को वोट देंगे।
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