पद्मावती के जौहर के ढाई सौ साल बाद जायसी ने लिखा था पद्मावत - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 31 जनवरी 2017

पद्मावती के जौहर के ढाई सौ साल बाद जायसी ने लिखा था पद्मावत

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भोपाल, 31 जनवरी, देश भर में चल रहे 'पद्मावती' फिल्म और कुछ इतिहासकारों द्वारा चित्तौड़ की रानी पद्मावती को काल्पनिक बताए जाने संबंधित विवाद के बीच इतिहास के क्षेत्र में देश की एक ख्यातिनाम संस्था का दावा है कि मलिक मुहम्मद जायसी की रचना पद्मावत का लेखन वास्तविक पद्मावती के अस्तित्व के लगभग ढाई सौ साल बाद हुआ था, ऐसे में पद्मावती को काल्पनिक बताया जाना सिरे से बेमानी है। देश में सिर्फ इतिहास के एक एकमात्र पुस्तकालय और अपनी तरह के अनूठे मध्यप्रदेश के मंदसौर के सीतामऊ स्थित नटनागर शोध संस्थान के संचालक डॉ मनोहर सिंह राणावत ने दूरभाष पर 'यूनीवार्ता' को बताया कि देश में राजपूतों का इतिहास सातवीं शताब्दी से शुरू होता है। दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 में चित्तौड़ पर आक्रमण किया था, उस समय वहां पद्मावती के पति राजा रतन सिंह का शासन था। लगभग छह महीने तक उसने चित्तौड़ के दुर्ग को घेरे रखा, जिस दौरान चित्तौड़ की सेना ने उसका प्रतिकार किया, लेकिन खिलजी की विशाल सेना के सामने राजा रतन सिंह की सेना बहुत छोटी थी। डॉ राणावत के मुताबिक लगभग छह महीने बाद जब दुर्ग के भीतर रसद समाप्त होने लगा, तब राजपूत महिलाओं के सामने मुगल शासक के सामने अपना सम्मान और आबरू बचाए रखने का संकट गहराने लगा। अंदर बसीं हजारों राजपूत महिलाओं ने अपने पतियों को बिना परिवार की चिंता किए आक्रांता के आक्रमण का सामना करने की निश्चिंतता देने के लिए सामूहिक जौहर का फैसला किया। उसी समय रानी पद्मावती के जौहर के प्रमाण मिलते हैं, जबकि पद्मावत का लेखन समय 1564 का है, जो उस समय से लगभग ढाई साल बाद का समय है। नटनागर शोध संस्थान के पास इन सभी तथ्यों से जुड़े शिलालेख और वास्तविक प्रमाण उपलब्ध हैं। इतिहास के क्षेत्र में कई किताबें लिख चुके डॉ राणावत ने बताया कि चित्तौड़ के किले में सामूहिक जौहर के तीन बार प्रमाण मिलते हैं, जिनमें से पहला अलाउद्दीन खिलजी के समय का है। इसके बाद वहां बहादुरशाह गुजराती और अकबर के काल में भी जौहर हुए। इसके पहले आशुतोष गोवारिकर की फिल्म 'जोधा-अकबर' का भी विरोध कर चुके वरिष्ठ इतिहासकार डॉ राणावत ने बताया कि अकबर का विवाह जयपुर की राजकुमारी हल्का बाई से हुआ था, जोधा से नहीं। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि फिल्मों में इतिहास को काल्पनिक बताए जाने का दावा करते हुए गलत तरीके से पेश किए जाने की प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए शासन को कदम उठाने की जरूरत है, नहीं तो देश का समृद्ध इतिहास अगली पीढी के सामने गलत ही पेश होता रहेगा। राजस्थान के उदयपुर में पिछले दिनों हुए एक सम्मेलन का संदर्भ देते हुए उन्होंने कहा कि जेएनयू की एक रिसर्च स्कॉलर ने सम्मेलन में इंटरनेट से सामग्री निकाल कर पूरा पेपर गलत पेश किया। जब उसका विरोध किया गया, तो उन्हें स्वयं विरोध का सामना करना पड़ा। देश के कई विश्वविद्यालयों में संदर्भ के लिए मान्य नटनागर शोध संस्थान की स्थापना देश के जाने-माने इतिहासकार और राज्यसभा सांसद डॉ रघुबीर सिंह ने 1974 में की थी। डॉ रघुबीर सिंह आजादी के समय राजपूतों की रियासत सीतामऊ के राजा थे। उन्होंने अपनी कोठी को ही पुस्तकालय का रूप दे दिया था। संस्थान की रघुबीर लाइब्रेरी, श्री केशवदास अभिलेखागार और श्री राजसिंह संग्रहालय ऐतिहासिक शोध और अध्ययन के विद्यार्थियों के लिए प्रदेश का सबसे बड़ा संदर्भ स्थान है। संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती की जयपुर में शूटिंग के दौरान पिछले दिनों राजपूतों से जुड़ी करणी सेना ने फिल्म में पद्मावती के चरित्र को अभद्र तौर पर पेश किए जाने के आरोप लगाते हुए भंसाली के साथ मारपीट की थी। उसके बाद से फिल्म की शूटिंग रोक दी गई है। देश भर में इसे लेकर विवाद पैदा हो गया था, इसी बीच इतिहासकार इरफान हबीब ने पद्मावती को एक काल्पनिक चरित्र बताकर विवादों को और हवा दे दी थी।




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