विशेष आलेख : जवानों का अपमान कब तक सहेगा देश? - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

विशेष आलेख : जवानों का अपमान कब तक सहेगा देश?

जम्मू-कश्मीर में भारतीय सेना के जवानों के साथ पत्थरबाजों की बदसलूकी की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही है। कभी जवानों के कैंप पत्थरबाजी की जा रही है तो कभी राह चलते। पत्थरबाजों के नापाक हरकतों के चलते दर्जनों जवानों की जानें जा चुकी है, तो सैकड़ों घायल होकर अस्पताल में जीवन-मौत से जूझ रहे है। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है भारत की आन-बान, शान के लिए लड़ रहे जवानों का अपमान कब तक होगा? ऐसी कौन सी मजबूरी है जो जवानों को घाटी में बेचारा बना दिया है। आखिर वो कौन सी नापाक ताकत है जो हमारे जवानों के गिरेबान तक इतनी आसानी से अपनी पहुंच बना ली है? क्या वजह है जवानों के अपमान पर देश के नेता व सरकारे खामोश है?  

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बेशक, लगातार अपमान झेल रहे जवानों से आजित अगर भारतीय क्रिकेटर गौतम गंभीर ने अपने गुस्से का इजहार किया है तो उसका हर भारतीय को सम्मान करना चाहिए। साथ ही गंभीर के साथ कंधा से कंधा मिलाकर हर भारतीय युवाओं को आगे आकर जवानों के प्रति न सिर्फ सहानुभूति दिखाएं बल्कि सरकार को इस बात के लिए बाध्य करें  िकवह जवानों को खुली छूट दें कि पत्थरबाजों को सीधे गोली मार देनी चाहिए। क्योंकि ये पत्थरबाज घाटी की समस्या के लिए आंदोलन नहीं कर रहे है बल्कि पाकिस्तान के साजिश में आकर हमारी सेना का मनोबल गिरा रहे है। इसके लिए पाकिस्तानी आतंकी और सरकार पांच से दस हजार रुपये हर पत्थरबाज को दे रही है। माना घाटी में समस्या है, लेकिन यह समस्या देश के हर हिस्सों में है। इसका मतलब यह नहीे होता कि हर नागरिक पत्थरबाजी पर ही उतर आएं है। उसके लिए आंदोलन के तरह-तरह के रास्ते अख्तियार करने की व्यवस्था है। ऐसी कौन सी मांग है कि अपने को सुरक्षा प्रदान करने वाले पर ही हमले किए जा रहे है। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है, देश के बीर घाटी में बेचारे क्यों? जवानों के अपमान पर देश में इतना सन्नाटा क्यों? जवानों के अपमान पर कब खौलेगा देश का खून? जवानों को छुआ तो छोड़ेंगे नहीं, पालिसी कब लागू होगी? जवानों के हाल पर कब खड़ा होगा देश? 

इन्हीं पत्थरबाजों की हरकतों पर गौतम गंभीर ने ट्वीट में लिखा कि हमारे जवान को पड़ने वाले हर चांटे पर लगभग 100 जिहादियों को मौत के घाट उतारना चाहिए। जिस किसी को भी आजादी चाहिए, वह छोड़ कर जा सकता है, कश्मीर हमारा है। गंभीर का यह बयान स्वागत योग्य है। गौतम गंभीर ने ट्वीट में तिरंगे के मतलब समझाते हुए लिखा है कि शायद एंटी-नेशनल लोग भूल गये हैं कि हमारे तिरंगे का मतलब क्या है। केसरिया मतलब हमारे गुस्से की आग, सफेद मतलब जिहादियों के लिए कफन और हरा मतलब आतंक के लिए घृणा। खास यह है कि गौतम के ट्वीट के बाद वीरेंद्र सहवाग ने भी इस मुद्दे पर गंभीर का साथ दिया। सहवाग ने वीडियो को ट्वीट करते हुए लिखा कि अब तो बदतमीजी की हद हो गई। मतलब साफ ह ैअब इस देश के हर नौजवान को सेना के साथ खड़ा होना चाहिए। यह हैरतअंगेज नही ंतो और क्या है कि जारी वीडियों में जहां कुछ कश्मीरी पत्थरबाज सीआरपीएफ के जवान को लात मारता हुआ दिख रहा है। बावजूद इसके जवान ने उस पत्थरबाज को कुछ नहीं कहा। जवान उस समय इलेक्शन ड्यूटी से वापिस लौट रहा था, जिस समय उस पर हमला बोला गया। कहा जा सकता है ये पत्थरबाज पाकिस्तान के टुकड़ों पर पल रहे है। अलगाववादियों के जरिए कश्मीरी नौजवानों को भटकाकर उनके हाथ में पत्थर थमाया जा रहा है। 


खुफिया विभाग के हवाले से पता चला है कि अब सीमा पार से बैठे आका आतंकियों की ही तरह पत्थरबाजों को व्हाट्सअप के जरिए संचालित कर रहे हैं। बात यहीं नहीं खत्म होती खबर तो ये भी है कि अब व्हाट्सअप जैसे सोशल ग्रुपों पर कश्मीर की पत्थरबाजी की ऑनलाइन और लाइव रिपोर्टिंग की जा रही है। इन सबकी मोनिटरिंग सीमा पार से हो रहा है। यही वजह है कि कश्मीर में आए दिन सेना और पुलिस पर पत्थरबाजी की घटनाएं होती हैं। सवाल ये है कि इन पत्थरबाजों के हाथ में कौन थमाता है पत्थर और क्या है इस पत्थरबाजी का मसला? इसकी जांच-पड़ताल अब तक क्यों नहीं की गयी? सूत्रों की मानें तो भाड़े के इन पत्थरबाजों ने खुद कबूल किया कि पैसे लेकर वो कश्मीर में कहीं भी पत्थर या पेट्रोल बम फेंक सकते हैं। पत्थर फेंकने के बदले इन्हें पैसे, कपड़े और जूते मिलते हैं। ऐसे ही पत्थरबाजों की मिलीभगत से पिछले साल बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद तीन महीने तक पूरा कश्मीर सुलगता रहा था। इन पत्थरबाजों का कहना है कि वह आम लोगों की भीड़ में चुपचाप शामिल हो जाते हैं और उनके निशाने पर होती है भारतीय फोर्स। पत्थरबाजी के लिए उसे 5, 6, 7 हजार रुपये महीना तक मिलता है। साथ ही जूते कपड़े अलग से। पत्थर सेना, जम्मू कश्मीर पुलिस, विधायकों पर फेंके जाते हैं। बीच-बीच में पेट्रोल बम लगाने के अलग से 500 से 700 तक रुपये मिलते हैं। बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद हुई पत्थरबाजी में जाकिर भी शामिल था और उसने लगातार पत्थरबाजी की थी। इन पत्थरबाजों ने सेना की गाड़ी भी जलाई थी, जिसके चलते ये फरार चल रहे हैं। गाड़ी जलाना तो इनके लिए मामूली काम है। जाकिर ने तो अफजल गुरु की फांसी के बाद पुलिस के दो जवानों को जलाकर मार डाला था। जाकिर अहमद बट कश्मीर में पैसे लेकर 9 सालों से पत्थरबाजी कर रहा है। उसके हाथों से निकले पत्थरों ने सेना और पुलिस के जाने कितने जवानों को लहूलुहान किया है। गौरतलब है कि श्रीनगर लोकसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में वोटिंग के दौरान बडगाम और श्रीनगर के दूसरे इलाकों में हिंसा में 8 लोगों की मौत हो गई थी। इसके अलावा इसमें कुछ निर्वाचन अधिकारियों सहित 36 लोग घायल भी हुए थे। इस हिंसा के कारण यहां महज 6.5 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया, जो तीन दशक में राज्य का सबसे कम मतदान है। मतदान के बाद जवान वापसी कर रहे थे। इसी दौरान कुछ पत्थरबाजों ने उन पर लात-घुसों से हमला किया, जिसका वीडियों वायरल हो गया। 







(सुरेश गांधी)

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