अयोध्या प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार फिर से निर्णय दिया है कि इससे जुड़े 13 लोगों पर आपराधिक प्रकरण के अंतर्गत सुनवाई की जाएगी। न्यायालय के बारे में किसी प्रकार की टिप्पणी करना नहीं चाह रहे, फिर जहां आस्था की बात हो, वहां भारत की जनता के मन में यह प्रश्न आ सकता है कि देश के करोड़ों हिन्दुओं के आराध्य भगवान श्रीराम के काम के प्रति समर्पित होना, क्या वास्तव में अपराध है? देश की जनता आज संभवत: यही सोच रही होगी कि यह अपराध कैसे हुआ। भारत का यह अकाट्य सच है कि मोक्षदायिनी अवध की भूमि पर भगवान श्रीराम का अवतरण हुआ था। हमारे धार्मिक दस्तावेज भी इसको ठोस रुप से प्रमाणित करते हैं। यह प्रमाण वर्तमान में भारत के बहुसंख्यक हिन्दू समाज की आस्था का कारण है। आस्था मन की गहराइयों से संबंध रखती है। जब कोई व्यक्ति या संस्था इस पर टिप्पणी करती है तो स्वाभाविक रुप से आस्था पर आघात होता हुआ दिखाई देता है। अयोध्या के नाम पर आस्था पर आघात करने का यह सुनियोजित खेल लम्बे समय से भारत में लगातार चल रहा है।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय वास्तव में सर्वमान्य ही है, चूंकि यह कानून का मामला है, और कानून का पालन करना हम सबकी प्रथम जिम्मेदारी भी है। लेकिन मनों में जो सवाल उठ रहे हैं उसका निराकरण कौन करेगा? वास्तव में अयोध्या मामले में हमें समाधान की ओर बढ़ना चाहिए, लेकिन क्या यह समाधान का रास्ता हो सकता है? इसका जवाब भी तलाश करना चाहिए? पूरे प्रकरण का अध्ययन किया जाए तो यही दिखाई देता है कि राजनीतिक कारणों के चलते इसे विवादित बना दिया है, जबकि अयोध्या के बारे में सब कुछ प्रमाणित है, दूसरे पक्ष के पास प्रमाण के नाम पर केवल आक्रांता बाबर का नाम है। अयोध्या के बारे में किए जा रहे विवाद के हल के लिए सोमनाथ से अच्छा उदाहरण नहीं कहा जा सकता। सोमनाथ के मंदिर की भी इस प्रकार की स्थितियां रहीं। देश को ेस्वतंत्रता मिलने के बाद भारत की प्रथम गठित सरकार ने गुलामी के चिन्हों को हटाने और उनके जीर्णोद्धार करने का संकल्प लिया था, उसी के परिणाम स्वरुप गुजरात के सोमनाथ मंदिर का कायाकल्प हो सका था। हम जानते हैं कि सोमनाथ मंदिर भी मुगल आक्रांता की बर्बरता का शिकार हुआ था, लेकिन सरकार ने सोमनाथ मंदिर को बनवाकर उसे भव्य रुप प्रदान किया। इसी प्रकार भगवान श्रीराम के मंदिर के बारे में भी सरकारी स्तर पर प्रयास किया जा सकता है और यही करना भी चाहिए।
यह बात सच है कि हिन्दू समाज ने केवल अपने आराध्य देवों के स्थल से प्रेरणा ली है, उसके पूर्वजों ने इन पवित्र स्थलों को हमेशा अपनी धार्मिक यात्राओं का केन्द्र बनाकर अपनी आस्था का प्रकटीकरण किया। चाहे वह भगवान श्रीराम की जन्म स्थली अयोध्या हो या भगवान कृष्ण की जन्म भूमि मथुरा की बात हो या फिर भारत के अन्य धार्मिक स्थानों की, सभी के प्रति आस्था का उमड़ना भारत की शाश्वत परंपरा को प्रकट करता है। हम यह जानते ही होंगे कि जब देश का हिन्दू समाज किसी अत्याचार का प्रतिकार करने की स्थिति में नहीं था, तब विदेशी शासकों ने भारत को धार्मिक और सांस्कृतिक रुप से और कमजोर करने का जबरदस्त प्रयास किया। इसी षड्यंत्र पूर्वक प्रयासों की कड़ी में विदेशी हमलावर बाबर ने अयोध्या के मंदिर को तोड़कर हिन्दुओं को नीचा दिखाने का काम किया, लेकिन वर्तमान में देश में क्या हो रहा है। बाबर के इस भारत विरोधी कृत्य को समर्थन क्यों मिल रहा है। यह बात भी सही है कि सच की हमेशा विजय होती है और अयोध्या मामले में सच यही है कि वह भगवान राम की जन्म स्थली है। उस पर भगवान श्री राम का पावन मंदिर बनाने की मांग पूरी तरह से उचित है। देश में कहीं भी राम मंदिर हों, लेकिन अयोध्या में राम मंदिर न हो, यह बात गले नहीं उतर सकती। इसलिए सर्वप्रथम तो अयोध्या में राम मंदिर बनना ही चाहिए। इसके लिए भारत के मुसलमान समाज को भी हिन्दुओं का साथ देना चाहिए और जहां तक हो सके वार्ता के माध्यम से हल निकाला जाना चाहिए। अयोध्या का सबसे बड़ा सच तो यह है कि वहां पहले से ही राम मंदिर है और रहेगा। हर तर्क की कसौटी पर यही सामने आएगा कि अयोध्या में राम मंदिर ही था। हम जानते ही है कि जब सच जानने के लिए श्रीराम की जन्म स्थान की खुदाई की गई, तब भी पाषाण के रुप में अनेक प्रमाण उपस्थित हो गए जो इस बात की गवाही देने के लिए पर्याप्त माने जा सकते थे कि यहीं पर राममंदिर था। हम यह भी जानते हैं कि राम भारत की धड़कनों में समाए हैं। जिस दिन भारत से राम निकल जाएंगे, उस दिन भारत मृत प्राय: ही हो जाएगा। इसलिए इस सच को सभी वर्गों को स्वीकार करना चाहिए।
इसके साथ ही एक और सच को भी आपके समक्ष प्रस्तुत करने का मन कर रहा है, वह यह कि देश को विदेशी आक्रांताओं से स्वतंत्रता मिलने से पहले भी देश के हिन्दू समाज ने राम मंदिर के लिए संघर्ष किया और अपने प्राणों की आहुति दी। अब तक किए गए लगभग 490 संघर्षों में तीन लाख से ज्यादा हिन्दुओं ने बलिदान दिया। इसमें सबसे पहले यह कहना मुझे जरुरी लगता है कि जो मामले आस्थाओं से जुड़े होते हैं, वे सरकारी नियंत्रण या कानून की मर्यादाओं से बाहर होने चाहिए। अयोध्या का राम मंदिर भारत की आस्था का सवाल है। जिस प्रकार भारत की सरकार ने सोमनाथ में भगवान शिव के मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था, आज उसी प्रकार के प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। वर्तमान में हर स्तर पर हमारे देश में समस्याओं के निराकरण की एक मुहिम सी चलती दिखाई देती है। चाहे वह भ्रष्टाचार का मामला हो या फिर सामाजिक असमानता की गहरी होती खाई की बात हो। सरकारी स्तर पर इसे मिटाने की कार्यवाही प्रारंभ होती हुई दिखाई देने लगी है। जब देश में सारे विवादों को निपटाने का प्रयास किया जा रहा हो, तब अयोध्या मामले में भी सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर कार्यवाही किए जाने की जनता अपेक्षा करती है। हिन्दू समाज तो प्रारंभ से ही यह मांग करता रहा है कि अयोध्या भगवान श्रीराम की पावन जन्म भूमि है और उस स्थान पर मंदिर का निर्माण होना चाहिए, इसके बाद अब तो मुसलमान भी इस सत्य को स्वीकारने लगे हैं कि अयोध्या में मंदिर निर्माण ही समस्या का एक मात्र हल है। अभी हाल ही में कुछ मुसलमान राम मंदिर बनाए जाने की मांग को लेकर अयोध्या में पहुंचे थे।
समस्त विश्व में भगवान श्रीराम की पावन जन्म स्थली अयोध्या धार्मिक दृष्टि से हिन्दू समाज के लिए अत्यंत महत्व का स्थान है। अपने श्रद्धा भाव को प्रकट करने के लिए समाज के सामने उस स्थान पर भव्य श्रीराम मंदिर का होना अति आवश्यक है। विश्व में केवल अयोध्या एक ऐसी भूमि है, जहां मंदिर निर्माण किया जाना अति आवश्यक है। जिसके जिए देश के सभी समाजों को एक दूसरे की आस्था का आदर करते हुए अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए। गुजरात में भगवान सोमनाथ के मंदिर का जिस प्रकार से जीर्णोद्धार किया गया था, अयोध्या के लिए वह एक प्रेरणा बन सकता है। इस प्रकरण में राजनीति नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि यह देश के बहुत बड़े समाज की आस्था से जुड़ा हुआ मामला है। इसका हल सरकार को निकालने का प्रयास करना चाहिए।
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