‘राम आस्था है’। ‘राम श्रद्धा है’। ‘राम धर्म है’। ‘राम ईश्वर हैं’। ‘राम जन-जन है’। ‘राम स्वाभिमान है’। ‘राम सत्य है’। ‘राम गांधी के जुबां पर थे’। ‘राम राज्यों की कल्पना में हैं’। ‘राम हर मन की आस्था में हैं’। ‘राम देश की एकता के प्रतीक हैं’। ‘भगवान राम एक आदर्श सुपुत्र, आदर्श भाई, आदर्श सखा, आदर्श पति और आदर्श राष्ट्रभक्त हैं’। ‘राम तो अगम हैं और संसार के कण-कण में विराजते हैं’। ‘राम मर्यादा पुरूषोत्तम हैं’। ‘करूणानिधि हैं’। ‘मनुष्य के आदर्श और सुंदरतम अभिव्यक्ति हैं’। ‘वे मनुष्य ही नहीं, प्राणीमात्र के मित्र हैं, अभिरक्षक हैं और विश्वसनीय हैं’। ‘वे दूसरों के दुख से द्रवित होने वाले दयानिधि हैं’। ‘उनके स्वयं के जीवन में भी इतने दुख-दर्द हैं, फिर भी वे सत्य और आदर्श की प्रतिमूर्ति बने रहते हैं’
राम जी से हमें शिक्षा व प्रेरणा मिलती है कि हमें परिवार में कैसे रहना है, कैसे गुजर-बसना करना है। कहते है भक्तों को सही राह दिखाने के लिए समय-समय पर धरती पर अवतार लेते है ईश्वर। पर यह हमेसा केवल कथा-कहानियों और मान्यताओं में नहीं बल्कि इसके ठोस प्रमाण है। “जब कभी महात्मा गांधी ने किसी का नाम लिया तो राम का ही क्यों लिया? कृष्ण और शिव का भी ले सकते थे। दरअसल, राम देश की एकता के प्रतीक हैं। गांधी राम के जरिए हिन्दुस्तान के सामने एक मर्यादित तस्वीर रखते थे।” वे उस राम राज्य के हिमायती थे। जहां लोकहित सर्वोपरि था। क्योंकि वे मर्यादा का पालन हमेशा करते थे। उनका जीवन बिल्कुल मानवीय ढंग से बीता बिना किसी चमत्कार के। आम आदमी की तरह वे मुश्किल में पड़ते हैं। उस समस्या से दो चार होते हैं, झलते हैं लेकिन चमत्कार नहीं करते। जबकि कृष्ण हर क्षण चमत्कार करते हैं। लेकिन राम उसी तरह जुझते हैं जैसे आज का आम आदमी। पत्नी का अपहरण हुआ तो उसे वापस पाने के लिए रणनीति बनाई। लंका पर चड़ाई की तो सेना ने एक-एक पत्थर जोड़कर पुल बनाया। रावण को किसी चमत्कारिक शक्ति से नहीं बल्कि समझदारी के साथ परास्त किया। राम कायदे कानूनों से बंधे हैं। जब धोबी ने सीता पर टिप्पणी की तो वे उन आरोप का निवारण चले आ रही कानूनी नियमों से करते हैं। जो आम जनता पर लागू होता था। वे चाहते तो नियम बदल सकते थे। पर उन्होंने नियम कानून का पालन किया। सीता का परित्याग किया। यानी राम ने साक्षात परमात्मा होकर भी मानव जाति को मानवता का संदेश दिया। उनका पवित्र चरित्र लोकतंत्र का प्रहरी, उत्प्रेरक और निर्माता भी है। इसीलिए तो भगवान राम के आदर्शों का जनमानस पर इतना गहरा प्रभाव है और युगों-युगों तक रहेगा।
हिन्दुस्तान की सांस्कृतिक विरासत हैं राम
कहा जा सकता है राम सिर्फ एक नाम नहीं हैं। राम हिन्दुस्तान की सांस्कृतिक विरासत हैं। राम हिन्दुओं की एकता और अखंडता का प्रतीक हैं। राम सनातन धर्म की पहचान है। धर्मस्वरूप राम -सबको जोड़ता है, मिलाता है! राम ने अपने व्यक्तित्व के द्वारा आदि से अंत तक धर्म का सही स्वरूप उपस्थित किया है। रामनवमी भगवान राम का जन्मदिन है। करोड़ों हिन्दू आज के दिन व्रत रखकर विशेष पूजा-अर्चना के जरिए मर्यादा पुरुषोत्तम राम का स्मरण करते है। वे इस संसार को राक्षसों से मुक्त करने के लिए अयोध्यापति दशरथ के घर आएं। उनका सारा जीवन मानव समाज की सेवा को समर्पित रहा। युगों बाद भी राम से जुड़े आदर्श आज हिन्दुओं के ही नहीं बल्कि सारे मानव समाज के आदर्श हैं। एक राजा ने तीन विवाह कर कुल को कलह में झोक दिया। भाई भरत ने भाई की पादुकाओं से ही राज चलाया। सीता हरण की पीड़ा, लंका के दहन से रावण के घमंड का चूर होना, अंतिम समय में लक्ष्मण का रावण से ज्ञान प्राप्त करना आदि कुछ ऐसे उदाहरण है, जिसमें आज की राजनीति, समाज और संयुक्त परिवार बहुत कुछ सीख सकते हैं। राम के नाम, रूप, धाम, लीला, आचरण में सिर्फ और सिर्फ एक-दुसरे को जोड़ने की दिव्य शैली विद्यमान है। चाहे बाललीला हो या वनलीला, या फिर जनकपुर की यात्रा, वन यात्रा में फूलों भरा मार्ग हो या कांटों भरा, भगवान राम ने अपने चरित्र से सबकों तारा है, या यूं कहें मिलाया है। भारतीय संतों व चिंतकों ने विश्वास व्यक्त किया है कि जब धर्म की सारी मर्यादाएं टूट जायेंगे तो भी राम का चरित्र सारे समाज को मिलाने के लिए सदा सर्वदा प्रस्तुत रहेगा। राम ने कभी छोटे-बड़े उंच-नीच का भेदभाव नहीं किया। महल का, कुटियों के लिए थोड़ा भी भेदभाव चुभ जाता था राम को। उत्तम भोजन, कीमती वस्त्र और सुंदर निवास का सुख सबको सुलभ हो, राम यही चाहते थे। चक्रवर्ती सम्राट दशरथ के लिए यह कार्य असम्भव न था। कौशल्या साम्राज्ञी थी उत्तरकौशल की। सर्वगुण सम्पन्न राम सबको प्रिय लगते थे ही। दशरथ-कौशल्या के राम प्राणाधार थे। ममतामयी मां भला कैसे इंकार कर सकती थी-पुत्र के इस प्रस्ताव को। ‘अब तो बंधु सखा संग लेहि बोलाईं और अनुज सखा संग भोजन करही‘। यह नित्य का नियम था राम का। छोटों को बड़ों से और अमीरों को गरीबों से जोड़ने का यह पहला अभियान था, बाल राम का। उसके बाद से तो फिर नियम ही निमय बनने लग गए, वह नियम जो आज भी प्रासंगिक है।
अवतार लेने से लेकर वन गमन तक लोगों को जोड़ा
अवतार लेने से लेकर साकेत गमन तक राम ने दो कुलों, वंशों, किनारों, समूहों को जोड़ने का उपक्रम किया है। अर्थात श्रीराम जी सदा एक-दुसरे को जोड़ते रहे। चाहे वह निरपराध अहिल्या श्रापमुक्त कर वर्षों बाद पति-पत्नि का मिलन कराने का हो, या धनुष यज्ञ के दौरान मिथिलेश व अवधेश को मिलाने का। ‘भजेउ राम सम्भु धनु भारी। फिर तो -सिय जय माल, राम उर मेली।। अब तो मिले जनक दशरथ, अति प्रीति। सम समधी देखे हम आजू।। निमिकुल और रघुकुल का विरोध मिटाकर, उत्तम नाता जोड़कर, उन्हे राम ने समधी बना दिया। परशुराम को शांत कर ब्राम्हण और क्षत्रिय के बीच का संघर्ष, आक्रोश, अश्रद्धा को राम ने समाप्त कर दिया। वनपथ के दौरान राम ने निषाद को हृदय से लगाकर उपेक्षा, हीनभावना, निम्नकुल के प्रति छुआछूत जैसे विचार व भेदभावों को राम ने मिटा दिया। राम ने वनचरों को सभ्य बनाकर उन्हें श्रेष्ठ लोगों से मिला दिया। वन से लौटने के बाद राम का अयोध्या में पशु कुलाधम का मानवकुल श्रेष्ठ से मिलन, सर्वोपरि मिलन है। राम के व्यक्तित्व की पराकाष्ठा है कि वह दोनों को एक दूसरे के इतना निकट ला दिए। वह चाहते तो अकेले रावण को मारकर सीता को प्राप्त कर सकते थे। लेकिन उन्होंने लंका प्रवेश के दौरान चाहे सेतु निर्माण हो या रावण द्वारा दण्डित और देश से निष्कासित विभीषण की सलाह, समाज द्वारा उपेक्षित एवं तिरस्कृत वानर सुग्रीवादि और वनवासियों की सेवा श्रम सहायता लेकर ही श्रीरामजी ने रावण कुल का अंत किया।
हनुमानजी को भक्ति एवं शक्ति और उपासकों को अनुरक्ति एवं युक्ति देकर, दोनों को जोड़ने का काम रामजी ने ही किया है। श्रीरामजी के कर्म, धर्म, व्यहार, परमार्थ इस बात के गवाह है कि हर अवस्था, हर दशा, हर परिस्थिति और प्रत्येक देश काल में राम का क्रियाकलाप चरितार्थ हुआ है। यह अदभुत नही ंतो और क्या है कि जनकपुर में सीताजी को पाकर, दो कुलों (वंशों) को जोड़ा तो वनवास काल में सीता को खोकर अनेक कुलों को एक-दुसरे से मिलाया। राम घर-बन कहीं भी रहे बस एक-दुसरे को जोड़ते ही रहे। आत्मा को परमात्मा की प्राप्ति श्रीराम कृपा से ही संभव है। भौतिक विज्ञान से अध्यात्म विज्ञान का सामंजस्य श्रीरामजी के व्यक्तित्व से ही सहज सम्भव हुआ है। आज जो राम को यथार्थ रूप में जानता, भजता और पाता है वही जुड़ता और जोड़ता है सबसे। कहने का अभिप्राय है अलगाव, बिलगाव और बिखराव आदि टूटन और घुटन से बचने के लिए राम के आचरण को ही अपनाना होगा। जातिवाद, क्षेत्रवाद, रूढिवाद, भाषावाद और आतंकवाद जैसे अनेकों समाजघातीवाद, जो सिर उठा रहें हैं, उनके आक्रोश को भी राम का व्यक्तित्व ही समाप्त कर सकता है।
चेतना और सजीवता के प्रमाण है राम
लेकिन आज हिन्दु धर्म के ही कुछ लोगों ने राम को राजनीति का साधन बना दिया है। अपनी ही सांस्कृतिक विरासत पर सवाल उठाते हैं। राम के अस्तित्व का प्रमाण मांगते हैं। राम सिर्फ दो अक्षर का नाम नहीं, राम तो प्रत्येक प्राणी में रमा हुआ है, राम चेतना और सजीवता का प्रमाण है। अगर राम नहीं तो जीवन मरा है। इस नाम में वो ताकत है कि मरा-मरा करने वाला राम-राम करने लगता है। इस नाम में वो शक्ति है जो हजारों-लाखों मंत्रों के जाप में भी नहीं है। राम को शास्त्र-प्रतिपादित अवतारी, सगुण, वर्चस्वशील वर्णाश्रम व्यवस्था के संरक्षक राम से अलग करने के लिए ही ‘निर्गुण राम’ शब्द का प्रयोग किया। श्रीराम नाम के दो अक्षरों में ‘रा’ तथा ‘म’ ताली की आवाज की तरह हैं, जो संदेह के पंछियों को हमसे दूर ले जाती हैं। ये हमें देवत्व शक्ति के प्रति विश्वास से ओत-प्रोत करते हैं। इस प्रकार वेदांत वैद्य जिस अनंत सच्चिदानंद तत्व में योगिवृंद रमण करते हैं उसी को परम ब्रह्म श्रीराम कहते हैं। आदि कवि वाल्मीकि ने उनके संबंध में कहा है कि वे गाम्भीर्य में समुद्र के समान हैं। समुद्र इव गाम्भीर्ये धैर्यण हिमवानिव। राम का उल्टा होता है म, अ, र अर्थात मार। मार बौद्ध धर्म का शब्द है। मार का अर्थ है- इंद्रियों के सुख में ही रत रहने वाला और दूसरा आंधी या तूफान। राम को छोड़कर जो व्यक्ति अन्य विषयों में मन को रमाता है, मार उसे वैसे ही गिरा देती है, जैसे सूखे वृक्षों को आंधियां।
आदर्श पुत्र ही नहीं, आदर्श पति और भाई भी थे राम
भगवान राम आदर्श व्यक्तित्व के प्रतीक हैं। परिदृश्य अतीत का हो या वर्तमान का, जनमानस ने रामजी के आदर्शों को खूब समझा-परखा है रामजी का पूरा जीवन आदर्शों, संघर्षों से भरा पड़ा है। राम सिर्फ एक आदर्श पुत्र ही नहीं, आदर्श पति और भाई भी थे। जो व्यक्ति संयमित, मर्यादित और संस्कारित जीवन जीता है, निःस्वार्थ भाव से उसी में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आदर्शों की झलक परिलक्षित हो सकती है। राम के आदर्श लक्ष्मण रेखा की उस मर्यादा के समान है जो लांघी तो अनर्थ ही अनर्थ और सीमा की मर्यादा में रहे तो खुशहाल और सुरक्षित जीवन। वर्तमान संदर्भों में भी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के आदर्शों का जनमानस पर गहरा प्रभाव है। त्रेतायुग में भगवान श्रीराम से श्रेष्ठ कोई देवता नहीं, उनसे उत्तम कोई व्रत नहीं, कोई श्रेष्ठ योग नहीं, कोई उत्कृष्ट अनुष्ठान नहीं। उनके महान चरित्र की उच्च वृत्तियां जनमानस को शांति और आनंद उपलब्ध कराती हैं। संपूर्ण भारतीय समाज के जरिए एक समान आदर्श के रूप में भगवान श्रीराम को उत्तर से लेकर दक्षिण तक संपूर्ण जनमानस ने स्वीकार किया है। उनका तेजस्वी एवं पराक्रमी स्वरूप भारत की एकता का प्रत्यक्ष चित्र उपस्थित करता है। राम के चरित्र में पग-पग पर मर्यादा, त्याग, प्रेम और लोक व्यवहार के दर्शन होते हैं। राम ने साक्षात परमात्मा होकर भी मानव जाति को मानवता का संदेश दिया। उनका पवित्र चरित्र लोकतंत्र का प्रहरी, उत्प्रेरक और निर्माता भी है। इसीलिए तो भगवान राम के आदर्शों का जनमानस पर इतना गहरा प्रभाव है और युगों-युगों तक रहेगा। राम का जीवन वैसे तो एक राजघराने की कहानी है, पर यह भ्ज्ञी बताती है कि सीमाएं लांघने पर कैसे-कैसे अनर्थ और उत्पात खड़े हो सकते है। राम ने मर्यादाओं में रहकर ही असत्य पर सत्य को विजय दिलवाई। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम समसामयिक है। भारतीय जनमानस के रोम-रोम में बसे श्रीराम की महिमा अपरंपार है।
‘राम नाम सत्य है’
भगवान श्री विष्णुजी के बाद श्री नारायणजी के इस अवतार की आनंद अनुभूति के लिए देवाधिदेव स्वयंभू श्री महादेव 11वें रुद्र बनकर श्री मारुति नंदन के रूप में निकल पड़े। यहां तक कि भोलेनाथ स्वयं माता उमाजी को सुनाते हैं कि मैं तो राम नाम में ही वरण करता हूं। जिस नाम के महान प्रभाव ने पत्थरों को तारा है। लोकजीवन के अंतिम यात्रा के समय भी इसी ‘राम नाम सत्य है’ के घोष ने जीवनयात्रा पूर्ण की है। और कौन नहीं जानता आखिर बापू ने अंत समय में ‘हे राम’ किसके लिए पुकारा था। आदिकवि ने उनके संबंध में लिखा है कि वे गाम्भीर्य में उदधि के समान और धैर्य में हिमालय के समान हैं। राम के चरित्र में पग-पग पर मर्यादा, त्याग, प्रेम और लोकव्यवहार के दर्शन होते हैं।
प्रेम भक्ति से मिलते हैं श्रीराम
राम नाम उर मैं गहिओ जा कै सम नहीं कोई।। जिह सिमरत संकट मिटै दरसु तुम्हारे होई।। अर्थात जिनके सुंदर नाम को ह्रदय में बसा लेने मात्र से सारे काम पूर्ण हो जाते हैं। जिनके समान कोई दूजा नाम नहीं है। जिनके स्मरण मात्र से सारे संकट मिट जाते हैं। ऐसे प्रभु श्रीराम को मैं कोटि-कोटि प्रणाम करता हूं। कलयुग में न तो योग, न यज्ञ और न ज्ञान का महत्व है। एक मात्र राम का गुणगान ही जीवों का उद्धार है। संतों का कहना है कि प्रभु श्रीराम की भक्ति में कपट, दिखावा नहीं आंतरिक भक्ति ही आवश्यक है। गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं, ज्ञान और वैराग्य प्रभु को पाने का मार्ग नहीं है बल्कि प्रेम भक्ति से सारे मैल धूल जाते हैं। छूटहि मलहि मलहि के धोएं। धृत कि पाव कोई बारि बिलोएं। प्रेम भक्ति जल बिनु रघुराई। अभि अंतर मैल कबहुं न जाई।। अर्थात् मैल को धोने से क्या मैल छूट सकता है। जल को मथने से क्या किसी को घी मिल सकता है। कभी नहीं। इसी प्रकार प्रेम-भक्ति रूपी निर्मल जल के बिना अंदर का मैल कभी नहीं छूट सकता। प्रभु की भक्ति के बिना जीवन नीरस है अर्थात् रसहीन है। प्रभु भक्ति का स्वाद ऐसा स्वाद है जिसने इस स्वाद को चख लिया, उसको दुनिया के सारे स्वाद फीके लगेंगे।
रामनवमी व्रत
रामनवमी का व्रत हमें भगवान श्रीराम से जुड़ने का अवसर प्रदान करता है। इस व्रत के माध्यम से भक्त भगवान को अपना मन समर्पित कर देता है और तब प्राणी को आराम का अनुभव होता है। श्रीराम आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। क्योंकि उनकी कार्यप्रणाली का ही दूसरा नाम-प्रजातंत्र है। उनकी कार्यप्रणाली को समझने से पहले श्रीराम को समझना होगा। श्रीराम यानी संस्कृति, धर्म, राष्ट्रीयता और पराक्रम। सच कहा जाए तो अध्यात्म गीता का आरंभ श्रीराम जन्म से आरंभ होकर श्रीकृष्ण रूप में पूर्ण होता है। एक आम आदमी बनकर जीवनयापन करने के लिए जो तत्व, आदर्श, नियम और धारणा जरूरी होती है उनके सामंजस्य का नाम श्रीराम है। एक गाय की तरह सरल और आदर्श लेकर जिंदगी गुजारना यानी श्रीराम होना है। एक मानव को एक मानव बनकर श्रेष्ठतम होते आता है-इसका साक्षात उदाहरण यानी श्रीराम। नर से नारायण कैसे बना जाए यह उनके जीवन से सीखा जा सकता है।
नैतिकता से मिलती है सकारात्मक ऊर्जा
एक तरफ उनका आदर्श हमारे मन को जीवन की ऊंचाइयों पर पहुंचाता है, वही दूसरी तरफ उनकी नैतिकता मानव मन को सकारात्मक ऊर्जा देती है। उनका हर एक कार्य हमारे विवेक को जगाता है और हमारा आत्मविश्वास बढ़ाता है। गोस्वामी तुलसीदास कहते हैं, उनके सौंदर्य व तेज को देख माता के नेत्र तृप्त नहीं हो रहे थे और देवलोक भी अवध के सामने फीका लग रहा था। आस्था और विश्वास के प्रतीक के रूप में भगवान श्रीराम की जो छवि है वह अद्वितीय है। भगवान को पाने के दोनों मार्ग- भक्ति और ज्ञान-हैं। भगवान को दोनों ही प्रिय हैं। भक्ति मार्ग मे थोड़ी रुकावट तो होती है लेकिन जो आदमी भक्ति करता है और जब वह चरम पर पहुंचता है तो वह भी महाज्ञानी हो जाता है। बाल्मीकि और वेदव्यास ने ज्ञान मार्ग को चुना तो वह समाज को ऐसी रचनाएं दे गये कि सदियों तक उनकी चमक फीकी नहीं पड़ सकती और कबीर, तुलसी, सूर, और मीरा ने भक्ति का सर्वोच्च शिखर छूकर यह दिखा दिया है कि इस कलियुग में भी भगवान भक्ति में कितनी शक्ति है। किसी की किसी से तुलना नहीं हो सकती पर संत कबीर जी ने तो कमाल ही कर दिया। उन्होंने अपनी रचनाओं में भक्ति और ज्ञान दोनों का समावेश इस तरह किया कि वर्तमान समय में ऐसा कोई कर सकता है यह सोचना भी कठिन है।
राम नाम
इस देश में राम से बड़ा तो कोई हो नहीं सकता पर आदमी में हवस होती है कि वह अपने मरने के बाद भी पुजता रहे और जब तक राम का नाम लोगों के हृदय पटल पर अंकित है तब तक अन्य कोई पुज नहीं सकता। गरीबी, बेकारी और तंगहाली गुजारते हुए इस देश में राम की महिमा अब भी गाई जाती है। कहते हैं कि रामनवमी के दिन ही गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना का श्रीगणोश किया था। श्रीराम ने अपने जीवन का उद्देश्य अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करना बनाया। इसीलिए नवमी को शक्ति मां सिद्धिदात्री के साथ शक्तिधर श्रीराम की पूजा की जाती है। देखा जाय तो अवतार शब्द का अर्थ है ऊपर से नीचे उतरना। अवतार लेने से अभिप्राय है ईश्वर का प्रकट रूप में हमारी आंखों के सामने लीला करना। श्रीरामचरित मानस में जिन राम की लीलाओं का वर्णन किया गया है, वह अवतारी हैं। धर्मग्रंथों में अवतारों के पांच भेद बताए गए हैं, जो इस प्रकार हैं- पूर्णावतार, अंशावतार, कलावतार, आवेशावतार, अधिकारी अवतार। जिनमें से रामावतार को ग्रंथों में पूर्णावतार माना गया है। उनके अवतार का मुख्य उद्देश्य मर्यादा की स्थापना था, अतः श्रीराम मार्यादा-पुरुषोत्तम कहलाए। सिर्फ भगवान राम का नाम जपते रहने में नहीं, वरन इसके साथ सात्विक भाव से अपने कर्म में रमना ही प्रभु राम की सच्ची भक्ति है। राम हमारे सत्कर्मो, परिश्रमशीलता, मर्यादा, प्रेम और परोपकारी भाव में हैं। राम का अर्थ है- रम जाना। लीन हो जाना। जीवन की सारी लौकिकता के मध्य रहकर भी उससे निस्पृह हो जाना और अपनी चेतना को अपने लक्ष्य पर केंद्रित कर देना।
जिसे राम ने छोड़ा, उसका डूबना तय
भगवान श्रीराम स्वयं कहते हैं- सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते। अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद् व्रतं मम।। अर्थात मेरा यह संकल्प है कि जो एक बार मेरी शरण में आकर मैं तुम्हारा हूं, कहकर मुझसे अभय मांगता है, उसे मैं समस्त प्राणियों से निर्भय कर देता हूं। मैं तुम्हारा हूं सिर्फ कहने से नहीं होता। किसी का होने के लिए उस जैसा होना पड़ता है। राम के गुणों को अपनाकर ही उनका बना जा सकता है। तभी राम उसे अभय प्रदान करते हैं। तब राम हमें भव-सागर में डूबने के लिए नहीं छोड़ते। जो राम को छोड़ देता है, यानी उनके गुणों से किनारा कर लेता है, उसका डूबना तय है। देखा जाय तो जब नल के हाथ से फेंके हुए पत्थरों से समुद्र पार कर लंका जाने के लिए सेतु बनाया जाने लगा, तब राम ने नल से इस चमत्कार का रहस्य पूछा। नल ने बताया- भगवान, यह आपके नाम के प्रताप से हो रहा है। तब भगवान ने अपने हाथ से एक पत्थर उठाकर उसे समुद्र में फेंका पर वह डूबने लगा। रामचंद्रजी ने नल से पूछा- जब मेरे नाम के बल से पत्थर समुद्र पर तैर सकता है तब मेरे स्वयं के हाथों फेंका गया पत्थर कैसे डूब गया? नल ने विनयपूर्वक उत्तर दिया- प्रभु, जिसे आप छोड़ देंगे, वह तो अवश्य डूबेगा ही। अतः हमें राम के गुणों को अपनाकर उनका आज्जान करना चाहिए।
रामनवमी मुहूर्त
5 अप्रैल को इस बार श्रीरामनवमी पर पुष्य नक्षत्र रहेगा। इस बार रामनवमी को अधिक शुभ माना जा रहा है। भगवान श्रीराम का जन्म नवमी पर पुष्य नक्षत्र में हुआ था। इस बार भी नवमी पर पुष्य नक्षत्र पड़ रहा है। इसलिए श्रद्धालुओं के लिए यह दिन विशेष रहेगा। यह योग मंगलवार रात 2.34 बजे से शुरू होकर बुधवार दोपहर 1.40 बजे तक रहेगा। 5 अप्रैल को रामनवमी, महानवमी व्रत, हनुमान जी को ध्वजा दान, श्री सीताराम पूजन-दर्शन व 6 अप्रैल को दशमी, देवी विसर्जन होगा। भरत के लिए आदर्श भाई, हनुमान के लिए स्वामी, प्रजा के लिए नीति-कुशल व न्यायप्रिय राजा, सुग्रीव व केवट के परम मित्र और सेना को साथ लेकर चलने वाले व्यक्तित्व के रूप में भगवान राम को पहचाना जाता है। उनके इन्हीं गुणों के कारण उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम से पूजा जाता है। सही भी है, किसी के गुण व कर्म ही उसकी पहचान बनाते हैं।
दयालु व बेहतर स्वामी
भगवान राम ने दया कर सभी को अपनी छत्रछाया में लिया। उनकी सेना में पशु, मानव व दानव सभी थे और उन्होंने सभी को आगे बढ़ने का मौका दिया। सुग्रीव को राज्य, हनुमान, जाम्बवंत व नल-नील को भी उन्होंने समय-समय पर नेतृत्व करने का अधिकार दिया।
मित्र
केवट हो या सुग्रीव, निषादराज या विभीषण। हर जाति, हर वर्ग के मित्रों के साथ भगवान राम ने दिल से करीबी रिश्ता निभाया। दोस्तों के लिए भी उन्होंने स्वयं कई संकट झेले।
बेहतर प्रबंधक
भगवान राम न केवल कुशल प्रबंधक थे, बल्कि सभी को साथ लेकर चलने वाले थे। वे सभी को विकास का अवसर देते थे व उपलब्ध संसाधनों का बेहतर उपयोग करते थे। उनके इसी गुण की वजह से लंका जाने के लिए उन्होंने व उनकी सेना ने पत्थरों का सेतु बना लिया था।
भाई
भगवान राम के तीन भाई लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न सौतेली मां के पुत्र थे, लेकिन उन्होंने सभी भाइयों के प्रति सगे भाई से बढ़कर त्याग और समर्पण का भाव रखा और स्नेह दिया। यही वजह थी कि भगवान राम के वनवास के समय लक्ष्मण उनके साथ वन गए और राम की अनुपस्थिति में राजपाट मिलने के बावजूद भरत ने भगवान राम के मूल्यों को ध्यान में रखकर सिंहासन पर रामजी की चरण पादुका रख जनता को न्याय दिलाया।
संतान
दाम्पत्य जीवन में संतान का भी बड़ा महत्वपूर्ण स्थान होता है। पति-पत्नी के बीच के संबंधों को मधुर और मजबूत बनाने में बच्चों की अहम् भूमिका रहती है। राम और सीता के बीच वनवास को खत्म करने और सीता को पवित्र साबित करने में उनके बच्चों लव और कुश ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
राम नाम की महिमा
सेतुबंध बनाया जा रहा था तब सभी को संशय था कि क्या पत्थर भी तैर सकते हैं। क्या तैरते हुए पत्थरों का बांध बन सकता है तो इस संशय को मिटाने के लिए प्रत्येक पत्थर पर राम का नाम लिखा गया। हनुमान जी भी सोच में पड़ गए कि बिना सेतु के मैं लंका कैसे पहुंच सकता हूं। लेकिन राम का नाम लेकर वे एक ही फलांग में पार कर गए समुद्र। भगवान राम के जन्म के पूर्व इस नाम का उपयोग ईश्वर के लिए होता था अर्थात ब्रह्म, परमेश्वर, ईश्वर आदि की जगह पहले ‘राम’ शब्द का उपयोग होता था, इसीलिए इस शब्द की महिमा और बढ़ जाती है तभी तो कहते हैं कि राम से भी बढ़कर श्रीराम का नाम है। राम’ शब्द की ध्वनि हमारे जीवन के सभी दुखों को मिटाने की ताकत रखती है। यह हम नहीं ध्वनि विज्ञान पर शोध करने वाले वैज्ञानिक बताते हैं कि राम नाम के उच्चारण से मन शांत हो जाता।
(सुरेश गांधी)



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