विशेष : बच्चों की पढ़ाई या मम्मी-पापा का टार्चर? - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 9 अप्रैल 2017

विशेष : बच्चों की पढ़ाई या मम्मी-पापा का टार्चर?


  • स्कूलों में फीस के नाम पर डकैती कब तक? 

यूपी में शहर हो या देहात तक में निजी स्कूलों में फीस स्ट्रक्चर एवं निजी प्रकाशनों के किताबों के नाम पर बालकों को लूटा जा रहा है। निजी स्कूलों की बढ़ रही मनमानी के कारण वर्तमान में आम आदमी का अपने बच्चों को शिक्षा दिलाना मुश्किल हो रहा है। कई स्कूलों में बेतहासा फीस बढ़ाने के विरोध में लगातार विरोध-प्रदर्शन भी तेज हो गया है। एसोएचएम रिपोर्ट की मानें तो निजी स्कूलों में पिछले तीन-चार सालों में 150 फीसदी तक फीस वृद्धि की गयी है? ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है क्या योगी सरकार खत्म करेगी शिक्षा में माफियाराज? स्कूलों में फीस के नाम पर डकैती कब तक? क्या जबरन फीस वसूलने वाले स्कूलों पर कार्रवाई करेगी योगी सरकार? क्या यूपी के स्कूलों में गुजरात माॅडल लागू होगा? निजी स्कूलों में बच्चों की पढ़ाई या मम्मी-पापा का टार्चर? आखिर क्यों स्कूल अब शिक्षा केंद्रों की जगह किसी दुकान का सा रूप लेते जा रह हैं? 



school-and-torture
बेशक, हाल के दिनों में स्कूलों में फीस, किताब व ड्रेस के नाम पर जो रवैया प्रबंधकों का देखने को मिल रहा है, उससे तो यही कहा जा सकता है स्कूल हैं या बिजनेस। बच्चों के अभिभावकों को फीस, कापी-किताब, एडमिशन के नाम पर ऐसे लूटा जा रहा है जैसे सरेराह कट्टे की नोंक पर माफिया राहगीरों को लूटते हैं। यह सिलसिला एक-दो नहीं बल्कि शहर से लेकर देहात तक के निजी शिक्षण संस्थानों में खूलेआम धड़ल्ले से चल रहा है। स्कूल प्रबंधन और अभिभावकों के  बीच फीस वृद्धि को लेकर छिड़ी जंग थमने का नाम नहीं ले रही है। शिक्षा का धंधा करने वाले कुछ स्कूल तो इतने बेरहम हो गए हैं कि वो किसी भी हद तक जा सकते हैं। कुछ स्कूलों के प्रबंधकों ने बाकायदा बोर्ड लगा दिया है बच्चों को पढ़ाना हो तो घर-जेवर गिरवी रख दो, लेकिन फीस में छूट की पैरवी न करो। हद तो तब हो गयी जब गाजियाबाद के एक स्कूल में पढ़ने वाली 13 साल की प्रियांशी ने खुदकुशी सिर्फ इसलिए कर ली, क्योंकि उसकी टीचर फीस ना देने पर घर पहुंच गई। जब टीचर और उनके पिता में तकझक हुई तो पुलिस आई और पिता को ही उठा ले गई। प्रियांशी इसका सदमा सह नहीं सकी और जान दे दी। हालांकि यह सिलसिला सालों से चल रहा है, लेकिन अब यूपी में जब योगी सरकार आई है तो अभिभावकों की उम्मीदें बढ़ गयी है। जनता को भरोसे की आस जगी है कि योगी जी कुछ न कुछ जरुर करेंगे। 

फिरहाल, हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट की रुलिंग है कि निजी स्कूल फीस बढ़ाना चाहते हैं, तो उन्हें कारण बताना होगा। अगर स्कूल ने सरकार से कम दाम पर जमीन ली तो फीस बढ़ाने के पहले शिक्षा निदेशक से पूछना होगा। बावजूद इसके वन टाइम फीस के नाम पर कई स्कूल मनमानी कर रहे हैं। इसके साथ ही स्कूलों में हर साल फीस में भी मनमानी बढ़ोतरी हो रही है। अलग-अलग हेड्स में फीस की वसूली हो रही है। दरअसल स्कूलों ने प्रतिबंधित कैपिटेशन फीस का नाम बदल कर वन टाइम फीस कर दिया है। स्कूलों की दलील है कि टीचर्स को ऊंची सैलरी देने होती है, ऐसे में वन टाइम फीस जरूरी हो जाती है। स्कूलों की ओर से स्कूल बिल्डिंग के नाम पर भी भारी फीस ली जाती है। बताना चाहेंगे कि बिल्डिंग के नाम पर 6000 रुपये से ज्यादा फीस संभव नहीं है। हाल यह है कि स्कूलों में कहीं नए एडमिशन के लिए फॉर्म के नाम पर लूट हो रही है तो कहीं पुराने छात्र को नई कक्षा में प्रवेश देने के नाम पर रिएडमिशन के नाम पर लूटा जा रहा है। कहा जा सकता है ऐसे स्कूल शिक्षा को व्यवसाय के रूप में देखते हैं, बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं। अलग अलग मदों में धन उगाही ही, इनकी प्राथमिकता है। सरकारी स्कूलों की जर्जर शिक्षा व्यवस्था का ये बखूबी फायदा उठा रहे हैं। यही वजह है कि अभिभावक अपने बच्चों को इन स्कूलों में भेजने के लिए विवश है।

बता दें, स्कूलों में एडमिशन फॉर्म भरने के लिए अलग अलग डेट में अलग अलग फीस ली जाती है। फॉर्म भरने के लिए कई तिथियां निर्धारित की जाती हैं। प्रत्येक तारीख बीतने के बाद वही एडमिशन फॉर्म महंगा होता जाता है। एड्मिशन के लिए बच्चों का टेस्ट होता है जिसका परिणाम नेट पर या स्कूल के नोटिस बोर्ड पर लगा दिया जाता है। टेस्ट में असफल होने का कारण बताने का जहमत स्कूल प्रशाशन नहीं लेता। प्रवेश पाने वाले बच्चों से फीस के नाम पर अलग अलग मदों में भारी भरकम धन वसूला जाता है। पुनः प्रवेश के लिए अभिभावकों को अलग से रुपये जमा करने पड़ते हैं। जिसमे शिक्षण शुल्क बढ़ जाता है। यह शुल्क अलग अलग कक्षाओं के लिए अलग अलग है। इस शुल्क के अलावा वार्षिक शुल्क, भवन निर्माण, परिचय पत्र, स्लेबस और स्कूल में उनकी ही सुविधा के लिए लगे सॉफ्टवेर का भी शुल्क अभिभावकों को भरना पड़ता है। इसके अलावा किताब कॉपी, यूनिफॉर्म, आदि का खर्चा मिलाकर के जी के बच्चे पर प्रवेश के समय ही 5 से 15 हजार रूपये का खर्च आता है, जो कि एक आम आदमी के बजट से कोसों दूर है। यह अलग बात है कि निजी स्कूलों की मनमानी के चलते तकरीबन 9 साल पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में गर्मियों की छुट्टी में ली जाने वाली फीस पर प्रतिबन्ध लगते हुए कहा था कि इस दौरान जब स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती है तो उसकी फीस क्यों ली जाती है। प्राइवेट स्कूल और कालेज अभिवावकों को इस बाबत मजबूर नहीं कर सकते कि वह एक विशेष दुकान से ही अपने बच्चों कि कॉपी-किताबें खरीदें। यही नहीं स्कूल और कालेज में हर साल बदली जाने वाली ड्रेस पर रोक लगते हुए 5 साल से पहले ड्रेस न बदले जाने के आदेश प्राइवेट स्कूल और कालेजों के प्रबन्धन तन्त्र को दिए थे। बावजूद इसके स्कूल और कालेजों के प्रबन्धतन्त्र अपनी मनमानी पर आमादा हैं। इसके अलावा प्राईवेट स्कूल अभिभावक वर्ग को लुटने का कोई मौका नहीं छोड़ते। एक शैक्षणिक स्तर में ऐसे अनेक मौके स्कूल संचालको द्वारा तैयार किए जाते हैं। जिसके माध्यम से लाखों रूपया उनकी जेब में पहुंच जाता है। इसी में से एक है एग्जाम फीस सीधी भाषा में इसे पेपर फीस कह सकते हैं। एक वर्ष में करीब 3 से 4 बार इसी एग्जाम फीस के नाम पर भारी भरकम वसूली की जाती है जो अभिभावकों का सरेआम शोषण है। 
शहरीय इलाकों के कान्वेंट स्कूल पूरी तरह मनमानी पर उतर आए हैं। मनमाने ढंग से फीस निर्धारित करने वाले निजी स्कूल संचालकों ने नया सत्र प्रारंभ होते ही ड्रेस, जूता, मोजा के साथ ही किताबें और पाठ्यक्रम भी बदल दिया है। स्कूल संचालकों ने कहीं कापी-किताबों और ड्रेस के लिए दुकानों से सेटिंग कर रखी है तो कहीं खुद स्कूल से बांट रहे हैं। फीस बढ़ाकर तो जेब भरी ही जा रही है, कापी-किताब और ड्रेस से भी मोटी कमाई की जा रही है। इन स्कूल संचालकों पर जिला प्रशासन का किसी तरह का कोई अंकुश नहीं है। कुल मिलाकर शहर के निजी और कॉन्वेंट स्कूलों में अच्छी शिक्षा और व्यवस्था का लालीपॉप देकर अभिभावकों को ठगा जा रहा है। फीस निर्धारण में मनमानी करने वाले स्कूल संचालकों ने चालू शिक्षासत्र में 20-30 प्रतिशत फीस में इजाफा कर दिया है। जनरेटर के नाम पर प्रतिमाह फीस वसूलने वाले अधिकांश स्कूलों में बिजली गुल होने के बाद बच्चे गर्मी से बिलबिलाते रहते हैं। शहर के अधिकांश कान्वेंट स्कूल ऐसे हैं, जिनमें प्रतिवर्ष नए पाठ्यक्रम की पुस्तकें लागू कर दी जाती हैं, और वह भी एक निश्चित दुकान से खरीदने को मजबूर किया जाता है। महंगी पुस्तकों को बदलने और ड्रेस चेंज करने के पीछे और कुछ नहीं बल्कि अभिभावकों का आर्थिक शोषण करना लक्ष्य होता है। 


वास्तव में निजी स्कूलों पर किसी का अंकुश नहीं रह गया है। पिछले वर्षों में फीस बढ़ोतरी को लेकर अभिभावकों का दबाव भी कम हो गया है। बीएसए कार्यालय से इन स्कूलों को अंग्रेजी विषय की मान्यता तो दी जाती है, मगर उनका नियंत्रण इन पर नहीं होता है। अधिकांश स्कूल ऐसे हैं जिन्होंने सीबीएसई से मान्यता ले रखी है। इस बोर्ड के अफसरों के नहीं बैठने से पठन-पाठन और परीक्षा में भी भारी अनियमितता बरती जा रही है। करीब 72 फीसदी लोगों का मानना है कि नए सत्र में स्कूलों ने 10 फीसदी से ज्यादा शुल्क बढ़ा दिया है। जबकि गुजरात में ज्यादा फीस वसूलने वाले निजी स्कूलों पर लगाम लगने जा रही है। राज्य सरकार के नए नियम के मुताबिक कोई भी स्कूल 27,000 रुपये से ज्यादा सालाना फीस नहीं ले सकता है। और, अगर कोई स्कूल इससे ज्यादा लेना चाहता है तो पहले उसे इसकी मंजूरी हासिल करनी होगी। गुजरात सरकार ने प्राइमरी, सेकेंडरी और हायर सेकेंडरी स्कूलों के लिए फीस की सीमा तय कर दी है। इसके मुताबिक कोई भी प्राइमरी स्कूल सालाना 15,000 रुपये, सेकेंडरी स्कूल 25,000 रुपये और हायर सेकेंडरी स्कूल 27,000 रुपये सालाना से ज्यादा फीस नहीं वसूल सकेंगे। इससे स्कूल जाने वाले बच्चों के पेरेंट्स काफी खुश हैं।





सुरेश गांधी 

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