बात आज़ादी के दो दशक बाद की है..केन्द्र में इंदिरा गांधी की हुकूमत थी..आजाद भारत के सबसे विवादित राजघराना सिंधिया परिवार की विजयमाते सिंधिया सत्ता में सक्रिय थी...इंदिरा गांधी अचानक से इस घराने पर अंकुश कसने लगी और रातोंरात राजसात करने की आदेश दे दी...ग्वालियर राजघरानें पर यह गद्दारी की सबसे बड़ी कार्रवाई थी...आधे से अधिक घरानें के लोग नेपाल कुच कर गया था...लेकिन अचानक से पाशा पलटा...और तत्कालीन संघ के अनुषांगिक इकाई जनसंघ ने विजय राजे सिंधिया के साथ आ गया...और इंदिरा के इस फैसले का विरोध करने लगा...विजयराजे सिंधिया ने उसके बाद जनसंघ को अपने पैसे और यहाँ तक की धुआँधार छवि से सिंचना शुरू की...देश में आपातकाल लगा..जिसमें राजमाते सिंधिया को भी जेल जाना पड़ा...जनता पार्टी की सरकार आयी...पुनः 1980में इंदिरा ने वापसी करते हुए सरकार बनायी...अब इंदिरा और राजमाता सिंधिया के बीच करी टक्कर का मुकाबला होने लगा...दोनों एक दूसरे के धुरविरोधी थे....लेकिन राजनीति में मलाई खाने के लिए कुछ भी संभव है...और इसके लिए कोई किसी भी हद तक गिर सकता है....इसका उदाहरण देते हुए विजयमाते ने अपने पुत्र माधवराव को अंदर ही अंदर कांग्रेस में शिफ्ट कर दी...और खुद अपधे बेटियों के साथ जनसंघ(भाजपा) में आगयी...जिससे भविष्य में भी कोई सरकार किसी भी तरह से उस घरानें को गद्दारी के नाम पर परेशान ना करें...!!
अविनीश मिश्र
लेखक माखनलाल यूनिवर्सिटी में अध्ययनरत है।

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