- जो राष्ट्र व समाज शराब का शिकार है। उसके सामने विनाश मुंह बाए खड़ा है। इतिहास में शराब से विनाश के अनेक परिणाम मिलते है। जिस पराक्रमी जाती में श्री कृष्ण का जन्म हुआ वह समूल नष्ट हो गयी। 21 में 16 मानव सभ्यताओ के नष्ट होने का कारण शराब मानी जाती है। रोम यूनान मिस्र की सभ्यताए शराब के कारण मिट्टी में मिल गयी। जाट, मराठा, राजपूत और मुस्लिम शाशकों के पतन का कारण शराब मानी जाती है। शराब के ठेके लोकतन्त्र का कलंक और शराब का अभिशाप है। यदि देश में शराब बंदी लागू नही होगी तो हमारी स्वतंत्रता गुलामी बनकर रह जायेगी।” शराब बंदी सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक, धार्मिक, स्वास्थ्य तथा कानून व्यवस्था सहित हर दृष्टी से उपयोगी और अवस्यक है।” यह सच है कि शराब नागरिको के तन, मन, धन, चिंतन और चरित्र को स्वाहा कर अपराध अनाचार की डगर पर ले जाती है। युद्ध, अकाल, महामारी, बाढ़ और भूकम्प कभी-कभी प्राण लेते है जबकि शराब से हर वर्ष लाखो लोग मरते है।
योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद यूपी में शराब पर बैन की मांग दिन पर दिन तेज होती जा रही है। गाजीपुर में तो महिलाओं ने रिहाइशी इलाके में खुले शराब की दुकान को जला तक दिया। लखीमपुर खीरी में भी लोगों ने रिहाइशी इलाके में शराब की दुकान के खिलाफ मोर्चा खोला। यहां के लोगों का साफ मानना है कि शराब केवल सेहत ही नहीं, आनेवाली पीढ़ी को भी तबाह करके रख देगी। कासगंज में महिलाओं ने शराब के ठेके पर पहुंचकर जमकर तोड़फोड़ की और प्रशासन को अपना संदेश सुना दिया कि वो किसी कीमत पर यहां पर शराब की दुकान को बर्दाश्त नहीं करेंगी। बुलंदशहर के अलग अलग हिस्सों में लोगों ने शराब के पांच ठेकों में आग लगा दी, जबकि 9 ठेकों में जमकर तोड़फोड़ की है। कुल मिलाकर शराब बंदी को लेकर यूपी में महिलाएं सड़क पर हैं। कहीं शराब की बोतले तोड़कर महिलाओं ने ठेके में लगाई आग, तो कहीं पूरा का पूरा ठेका ही फूंक दिया। नारा है अब न रहेंगे पीने वाले, अब न रहेगा मधुशाला! शहर-शहर जारी है शराब के खिलाफ महिलाओं का हंगामा। पूरब से पश्चिम तक सड़कों पर जहां कहीं भी शराब की दुकानें है वहां सिर्फ और सिर्फ तोड़-फोड़ कर महिलाओं ने कोहराम मचा रखा है।
बेशक, यूपी में अगर अपराध का बोलबाला है तो उसकी बड़ी वजह कहीं न कहीं शराब ही है। शराब पीकर शराबी सरेराह कहीं महिलाओं की इज्जत लूट रहे है तो कहीं गैंगरेप जैसी जघन्य वारदात को अंजाम। खासकर शराब पीने वाले पियक्कड़ कहीं घरों की खुशहाली तार-तार कर रहे हैं तो कहीं शराब की वजह से पूरा घर तबाह हो गया है। बड़े-बूढ़े-बच्चे-नौजवान सब शराब की जद में हैं। ऐसे में हाईवे से शराब की दुकाने हटाने के सुप्रीम कोर्ट का फरमान क्या आया महिलाओं की मानों लाटरी लग गयी है। सालों से दबी आक्रोश की चिंगारी उस वक्त के शोले में बदल गयी जब हाइवे की दुकानें आबादी में खुलने लगीं। इससे महिलाओं के गुस्से की आग भड़क उठी हैं। उनका भड़कना स्वाभाविक है। क्योंकि मजूरी और वेतन घर आने से पहले शराब के ठेकों की भेंट चढ़ गए। जब कभी इसका विरोध किया तो शराब का रौद्र रुप उन्हीं के तन पर पर कहर बनकर टूट पड़ता है। परिणाम यह होता है कि नशे में धूत पति के रोज-रोज के किचकिच व झगड़े से न सिर्फ परिवार उजड़ गए, बल्कि घर को सम्भालते-सम्भालते वह खुद ही टूट चुकी है। जेवर-जमीन सब गिरवी रख दिए गए या बिक चुके है। इसका सबसे बड़ा असर पति-बेटे-बेटियों पर ही पड़ा है। बच्चों की पड़ाई बर्बाद हो चुकी है। उनकी कमाई का भी बड़ा हिस्सा दवाई में ही खर्च हो जा रहा है।
कमाई खर्च हो रहा शराब में, परिवार में कलह बढ़ा
गौर करने वाली बात यह है कि यूपी में दारू का नशा इस तरह सिर चढ़ कर बोलने लगा है कि अधिकांश घरों में कमाई का आधा हिस्सा उसी में जाने लगा। ऐसे में आर्थिक हालत ऐसी हो गयी कि कई घरों में खाने -पीने तक के लाले पड़ने लगे है। पत्नी अलग से परेशान रहने लगी है। उनके समक्ष बच्चों को पालना भी मुश्किल हो गया है। घर में रोज के लड़ाई-झगड़े और किच-किच से महिलाएं तंग हैं। यही वजह है कि इलाहाबाद बैंक चैराहे के पास एक देसी शराब की दुकान की ओपनिंग होनी थी। ओपनिंग होने से पहले ही महिलाएं शराब की दुकान पर पहुंच गई और वहां तोड़-फोड़ कर दी। दुकान पर लगे बैनर को फाड़ दिया और जहां देशी शराब लिखा था उसपर पानी और कीचड़ फेंकती रही। अंदर रखी शराब की बोतलों को बाहर फेंक दिया। महिलाओं का आरोप था कि यहां पास में ही कोचिंग सेंटर है और 6-7 स्कूल हैं। ऐसे में शराब की दुकान कैसे खुल सकती है।
दुसरे राज्यों में भी विरोध
मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के बरेली में जहां शराब की दुकाने खुलवाने को लेकर बवाल हो गया वहीं लाठी चार्ज के बीच लोगों ने पथराव करते हुए गाड़ियां जला दीं। इसमें करीब एक दर्जन लोग घायल हो गए हैं। कुल मिलाकर जारी विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा। एंटी लिकर वुमेन ब्रिगेड ने कई स्थानों पर शराब की दुकानों पर हमला कर जबरन दुकाने बंद करवा दी है। हापुड़, बुलंदशहर, मऊ, संभल, गोंडा में शराब की दुकानों को बंद करने को लेकर महिलाओं ने प्रदर्शन भी किया। बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट ने भी शराब को लेकर हाल ही में एक आदेश जारी किया है। इसके अनुसार नेशनल हाइवे के 500 मीटर के दायरे में शराब की दुकानों पर पाबंदी लगा दी गई है। इसके बाद से ही राज्य सरकारों और शराब के कारोबारियों में हड़कंप का माहौल है। राज्य सरकारें और शराब कारोबारी इस आदेश से बचने के लिए भी कई उपाय खोज रहे हैं। वहीं गोवा में शराब व्यापारियों ने पर्यटन के नाम पर छूट की मांग की है। जबकि बिहार में शराबबंदी के एक साल पूरे हो गए है। वहां 2015 के विधानसभा चुनाव से पूर्व सीएम नीतीश कुमार ने महिलाओं की मांग पर कहा था कि सत्ता में आने के बाद वे बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू करेंगे। सरकार बनने के बाद उन्होंने शराबबंदी लागू भी की। और जैसे ही लोगों ने जाम छलकाना बंद किया उनकी जिंदगी भी संवर गई। नीतीश कुमार सबसे पहले एक अप्रैल 2016 को पूरे राज्य में देशी शराब पर प्रतिबंध लगाई थी। पांच दिन बाद ही सरकार फैसला पलटते हुए राज्य में पूर्ण शराबबंदी लागू कर दी। हालांकि इसके बावजूद भी राज्य में अवैध शराब का कारोबार खूब फल रहा है। एक साल के दौरान 5,14,639 लीटर विदेशी, 3,10,292 लीटर देशी शराब और 11,371 बीयर जब्त की गयी।
गांधी थे शराब के विरोधी
गौरतलब है कि सम्राट अशोक भी शराब के विरोधी थे, इसलिए शराब बंद होना चाहिए। आधुनिक युग में गांधीजी शराब के विरोधी थे व प्राचीन इतिहास काल में सम्राट अशोक. कुछ लोग शराब के पक्षधर हैं, लेकिन शराब पीना मौलिक अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इसकी पुष्टि की है। बिहार में शराबबंदी से समाज में खुशहाली आयी है। शराब से घर परिवार बरबाद हो रहा था। शराबबंदी के बाद कई घरों में खुशहाली लौट आई है। शराब की वजह से जो घर उजड़ गए थे वे फिर से बस गए है। वैसे लोगों ने फिर से एक नई जिंदगी की शुरुआत की है। नीतिश का दावा है कि अब समाज को शराबबंदी से नशामुक्ति की ओर ले जायेंगे। वैसे भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद से यूपी में शराबबंदी को लेकर आवाज उठने लगी है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि स्टेट और नेशनल हाइवे के किनारे की शराब की दुकानें बंद होंगी। यही नहीं हाइवे किनारे के होटलों में भी शराब नहीं बिकेगी। इसी को लेकर महिलाएं शराबबंदी को लेकर धरना दे रही हैं। महिलाओं का कहना है कि शराबबंदी के सामाजिक स्तर पर कई फायदे है। इससे न सिर्फ सूबे में अपराध का ग्राफ घटेगा, बल्कि बलातकार, हत्या, चेारी जैसी घटनाओं में कमी आयेगी। महिला उत्पीड़न के मामले तो घटेंगे ही, सड़क दुर्घटना में भी कमी आयेगी। दूध-दही की बिक्री बढ़ेंगी।
क्या कहता है नियम?
हालांकि सरकारी नियमों के मुताबिक किसी स्कूल, कॉलेज या धार्मिक स्थल से 100 मीटर के दायरे में शराब की दुकान नहीं खोली जा सकती है। दुकानें खोलने का विरोध कर रही महिलाओं को यूपी की नई सरकार से उम्मीद है कि वो इनकी बात सुनेगी। महिलाओं ने अब नीतीश सरकार की तर्ज पर यूपी में भी पूर्ण शराबबंदी की मांग शुरू कर दी है।
शराबबंदी में क्या मुश्किल है?
शराब पर पूर्ण रूप से पाबंदी लगाना किसी भी राज्य सरकार के लिए इतना आसान भी नहीं है, क्योंकि राजस्व का एक बड़ा हिस्सा उसे शराब की बिक्री से ही मिलता है। यूपी के सरकारी खजाने को कुल राजस्व का 20 फीसदी शराब की बिक्री से ही मिलता है, वर्ष 2016-17 में शराब से यूपी के खजाने में 19 हजार 250 करोड़ रुपये आने की उम्मीद है। जाहिर है राजस्व कि तौर पर मिल रही इतनी बड़ी रकम को छोड़ने के लिए बहुत बड़ी इच्छाशक्ति चाहिए। पड़ोसी राज्य बिहार में ही नीतीश कुमार ने साबित कर दिखाया है कि पूर्ण शराबबंदी से भी सरकार चलाई जा सकती है।
जागों योगी सरकार
महिलाओं के बढ़ते आक्रोश को देखते हुए योगी सरकार को कुछ न कुछ करना होगा। क्योंकि अब तक उनकी तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया, लेकिन अब आपस से उम्मीदें बढ़ी है। इस धंधे को सरकारी आय बढ़ाने का सबसे बड़ा साधन कहने से काम नहीं चलने वाला। क्योंकि सरकार की कमाई भले बढ़ रही है। बड़ी-बड़ी कम्पनियां, ठेकेदार भले मालामाल हो रहे हैं, लेकिन इससे उनका परिवार उजड़ रहा हैं। सरकार और कारोबारियों की कमाई के लिए महिलाएं कब तक अत्याचार झेलती रहेंगी?
नशे की जद में युवा
प्रदेश में शराब की दुकानों को लेकर लोगों में जो गुस्सा है उसका कारण वाजिब है, क्योंकि प्रदेश की युवा पीढ़ी शराब के नशे में डूब रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे में आए आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश में हर चैथा जवान शख्स शराब के नशे में डूब रहा है। यही नहीं, प्रदेश का हर दूसरा युवा तंबाकू का सेवन कर रहा है। हर दस साल पर केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय का नैशनल फैमिली हेल्थ सर्वे आता है। 2015-2016 आंकड़े बताते हैं कि यूपी में 15 साल से 49 साल की उम्र के 22.1 फीसदी लोग शराब का सेवन करते हैं। गांव में शराब और तंबाकू का सेवन करने वालों की संख्या अधिक है। साढ़े सात फीसदी महिलाएं तंबाकू का सेवन करती हैं, जबकि 53 फीसदी युवा तंबाकू चबाते हैं। पूरी दुनिया में 2015 में जितने लोगों की मौत हुई उनमें से हर 10 में से एक आदमी की मौत की वजह स्मोकिंग थी। इनमें भी 50 फीसदी से अधिक मौतें सिर्फ चार देशों में हुईं, जिनमें भारत भी शामिल है। मेडिकल मैगजीन ‘द लैनसेट’ में प्रकाशित ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (जीबीडी) के अध्ययन के मुताबिक 2015 में पूरी दुनिया में 64 लाख लोगों की मौत हुई, जिनमें 11ः लोगों की मौत का कारण धुम्रपान था। इनमें से 52.2ः लोगों की मौत चीन, भारत, अमेरिका और रूस में हुई। पुरुषों के धूम्रपान करने में चीन, भारत और इंडोनेशिया तीन अग्रणी देश हैं। 2015 में विश्व में धूम्रपान करने वाले पुरुषों में से करीब 51.4 फीसदी लोग इन्हीं देशों के हैं। यूपी में 32 करोड़ लीटर देसी शराब की खपत सालाना है। 8500 करोड़ बोतल अंग्रेजी शराब की खपत है। 28.5 करोड़ बोतल बीयर की बिकती हैं। यानी यूपी में 14 हजार करोड़ की शराब बिक्री होती है। घरेलू हिंसा से बढ़कर कोई बड़ा अपराध नहीं है। इसकी बड़ी वजह शराब ही है।
योगी जी बंद करें शराब
अब महिलाएं मुख्यमंत्री योगी से शराब पर पूरी तरह प्रतिबंध की मांग भी करने लगी हैं। कानपुर, लखीमपुर खीरी, बनारस, इलाहाबाद, मुरादाबाद, मेरठ समेत पूरे यूपी में महिलाओं ने शराब बंदी को लेकर कोहराम मचा रखा है। इसका असर यूपी के समीपवर्ती राज्यों पर भी पड़ा है जहां महिलाएं दारू के खिलाफ मोर्चा खोल चुकी हैं। महिलाएं विरोध जता रही हैं और दुकानें बंद करवा रही हैं और जो नहीं बंद कर रहे है उनकी दुकाने तोड़फोड़ कर आग के हवाले कर दे रही है। महिलाओं का ऐलान है कि योगी के राज में अब नहीं बिकने देंगे शराब। महिलाओं का कहना है कि जहां ठेके खोले जा रहे है वह आबादी वाला क्षेत्र है। उसके आसपास मंदिर व शिक्षण संस्थान तो है ही उनके घर-परिवार के लोग भी नशे में बर्बाद होंगे। साथ ही महिलाओं के साथ बदतमीजी भी हो सकती है। खासकर नशे में गाड़ियां चलाने से दुर्घटनाएं भी बेहिसाब बढ़ती जा रही हैं। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है क्या सरकार के पास शराब ही आय का मुख्य स्रोत बचा है? क्या दवा-राशन की दुकानों और स्कूलों से ज्यादा दारू के ठेके खोलना जायज है? आखिर क्या वजह है कि दवा की दुकान रात दस बजे तक ही खुलती है लेकिन दारू रात ग्यारह-बारह बजे तक बेचने की छूट है। दुकानों के भीतर ही पीने की व्यवस्था करना क्यों आवश्यक है? बस्तियों से दूर उसकी नियंत्रित और सीमित बिक्री क्यों नहीं की जा सकती। आय के दूसरे स्रोत नहीं ढूंढे जा सकते।
--रश्मि जायसवाल--



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