- देवनागरी लिपि में संताली साहित्य के सृजन को बढ़ावा मिलना चाहिये
अमरेन्द्र सुमन (दुमका), संताली साहित्य के जनक स्व0 बाबुलाल मुर्मू आदिवासी भारत के महान लोक साहित्यकार थे। संताली साहित्य किसी भी लिपि में व्यक्त हो उसे सर्जनात्मकता के आधार पर सम्मानित किया जाना चाहिये। संताल परगना में देवनागरी लिपि में संताली साहित्य के सृजन को बढ़ावा मिलना चाहिये तथा साहित्य अकादमी व ज्ञानपीठ से साहित्य की कसौटी के आधार पर उसका मूल्यांकन किया जाना चाहिए। लिपि के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव अमान्य है। स्व0 बाबूलाल मुर्मू आदिवासी पर आयोजित साहित्यिक परिचर्चा में आदिवासी जी के साहित्य पर प्रकाश डालते हुए विश्व भारती (शांति निकेतन) में हिन्दी की शिक्षिका डाॅ मंजूरानी सिंह ने उपरोक्त बातें कही। सिदो कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय, दुमका के हिन्दी विभाग में बाबूलाल मुर्मू ’आदिवासी’ के साहित्य के तुलनात्मक अध्ययन पर शोधछात्रा कंचन रानी को इस अवसर पर डाॅक्टर आॅफ फिलाॅसफी के लिए उत्तीर्ण घोषित किया गया। उन्होनें कहा झारखण्ड सरकार व सिदो कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय को इस दिशा में पहल करनी चाहिये। सूचना एवं जनसम्पर्क उप निदेशक अजय नाथ झा ने इस अवसर पर कहा कि लोक साहित्य में आदिवासी जी के योगदान को देखते हुए प्रत्येक वर्ष प्रमंडलीय सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग द्वारा एक साहित्यकार को आदिवासी सम्मान से सम्मानित किया जायेगा। इस अवसर पर विजय टुडू ने कहा कि आदिवासी जी के साहित्य का विभिन्न भाषाआंे में अनुवाद होना चाहिये। डाॅ धुनी सोरेन ने कहा कि आदिवासी जी संताल संस्कृति की अस्मिता के साहित्यकार थे। शोध छात्रा की निर्देशिका व गाईड डाॅ प्रमोदिनी हांसदा ने कहा कि संताली साहित्य में भाव और संवेदना अत्यन्त उत्कृष्ट कोटि के हैं। यह भाषा और साहित्य की दृष्टि से समृद्ध साहित्यों से किसी भी दृष्टि से कमतर नहीं है। परिचर्चा में अंग्रजी विभाग के प्रो0 अच्यूत चेतन ने कहा कि युवा वर्ग को साहित्य सृजन के लिए आगे आना चाहिये। हिन्दी विभागाध्यक्ष डाॅ हेमलाल शर्मा, विनय कुमार खिरोधर प्रसाद यादव, मानविकी संकाय के टीम लक्ष्मीकान्त पाण्डेय, अंग्रजी विभाग के प्रो0 प्रशांत कुमार व प्रसिद्ध संगीतकार अजय राय ने भी इस अवसर पर अपने-अपने विचार प्रकट किये। बड़ी संख्या में विश्वविद्यालय के छात्र-छात्रा व प्राध्यापक इस दौरान उपस्थित थे।
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