विशेष : सियासत की साज़िश में ग़रीब - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 2 मई 2017

विशेष : सियासत की साज़िश में ग़रीब

poverty-and-politics
प्रद्योत कुमार,बेगुसराय। आज अपना देश वाद और विवाद के दौर से गुजर रहा है।विवाद तो आप सहज ही समझ गए होंगे,समस्या पर विवाद,समस्या के समाधान पर विवाद नहीं क्यों? अगर समस्या हल हो जायेगी तो तो फिर विवाद किस पर?समस्या पैदा करना और उस पर विवाद करना यही तो वर्तमान मान राजनीति की चालाकी है और सबसे बड़ी बात तो ये है मित्रों कि वाद पर ही विवाद होता है,वाद ही तो समस्या है जैसे माओवाद,नक्सलवाद,क्षेत्रवाद, अलगाववाद,उग्रवाद,जातिवाद,लिंगवाद,धर्मवाद,नीतिवाद और प्रांतवाद।इन्ही वादों को मुद्दा रूपी समस्या बनाकर आप नेताओं को,विचारकों को,तथाकथित बड़े पत्रकारों को और सम्बंधित विशेषज्ञों को रोज़ ही विवाद करते देखते,सुनते या पढ़ते होंगे लेकिन क्या कभी आपको इन सम्याओं का समाधान होते मिला है?शायद नहीं,क्यूँ?क्यूंकि वर्तमामान राजनीति का यही एकमात्र आधार है।इन्हीं वादों में से एक वाद को विवाद के लिए हमेशा हवा देते रहना ही वर्तमान राजनीति की कहानी है यानि विवाद के लिए एक वाद को ज़िंदा रखना है।अभी आप नक्सलवाद को ही लीजिए सरकार के पास हर एक चीज़ मौजूद है,संसाधन है इसको समाप्त करने के लिए लेकिन नहीं करती है।इसके पीछे भी एक मजबूत कारण है वो ये कि क्या कभी आपने गौर किया है चाहे नक्सल मारे पुलिस को या पुलिस मारे नक्सल को मरता है कोई ग़रीब का बेटा ही,एक अपने अस्तित्व के हक़ के लिए लड़ता है तो दूसरा अपने पेट के लिए भूख दोनों में कॉमन है।क्या कभी सुना है आपने कोई नेता का बेटा नक्सली युद्ध में शहीद हो गया है या बॉर्डर पे लड़ता हुआ शहीद हो गया है शायद नहीं और एक बात दावे से कह सकता हूँ कि अगर ऐसा हो गया तो इन वादों में से एक वाद सदा के लिए विवाद की सूची से ख़त्म हो जाएगा।


एक छोटा सा उदाहरण मैं देना चाहूंगा वो ये कि मेरे शहर बेगुसराय में कुछ वर्षों पहले एन एच 31 पर पावर हाउस के पास बीच सड़क पर ट्रेफ़िक कंट्रोल के लिए एक गोलम्बर का निर्माण किया गया,हाइवे पर जगह कम होने की वजह से वहां अक्सर दुर्घटना होती थी आम जनता की,कोई बात नहीं एक दिन जनता के भाग्य से किसी बड़े हाकिम की दुर्घटना हो गई साहेब अहले सुबह उस गोलम्बर का नामोनिशान मिटा दिया गया,ये है सियासत।सियासत ने ऐसी तरकीब लगा रखी है कि ग़रीब ही ग़रीब को मारता,मरता है।आज कश्मीर में या और अन्य जगहों पर यही तो हो रहा है।हे गरीब के सपूतों क्यों इन वादों के लफड़े पे पड़ कर अपने ही ग़रीब भाई की हत्या कर रहे हो,क्यों एक ग़रीब माँ की गोदें सूनी कर रहे हो?क्यों एक परिवार की रोटी छीन रहे हो?हे "वादियों" सियासत की साज़िश को अब भी समझ कर संभल जाओ,एक सम्भलोगे तो दोनों घर आवाद रहेगा।

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