तीन तलाक मामला: खुर्शीद रखेंगे तटस्थ लिखित विचार - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

बुधवार, 3 मई 2017

तीन तलाक मामला: खुर्शीद रखेंगे तटस्थ लिखित विचार

triple-talaq-case-khurshid-to-submit-neutral-opinion
नयी दिल्ली, 03 मई, उच्चतम न्यायालय ने तीन तलाक, बहुुविवाह और निकाह हलाला के मामले में प्रतिवादी बनाने एवं एक विशेषज्ञ के तौर पर तटस्थ मंतव्य देने संबंधी वरिष्ठ अधिवक्ता एवं पूर्व कानून मंत्री सलमान खुर्शीद का अनुरोध आज स्वीकार कर लिया। श्री खुर्शीद ने मुख्य न्यायाधीश जगदीश सिंह केहर, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ के समक्ष मामले का विशेष उल्लेख करते हुए कहा कि वह मुस्लिमोंं में तीन तलाक, बहुुविवाह प्रथा और निकाह हलाला के मामले में तटस्थ विचार रखना चाहते हैं और न्यायालय से अनुरोध है कि वह इसकी अनुमति दे। न्यायायल ने कहा कि इस मामले में लिखित पक्ष रखने की समय सीमा तो समाप्त हो चुकी है। इस पर श्री खुर्शीद ने शीर्ष अदालत से केवल दो दिन देने का अनुरोध किया और कहा कि वह दो दिन के भीतर ही अपना लिखित पक्ष रख देंगे। न्यायालय ने उनका अनुरोध स्वीकार कर लिया। इस मामले में पांच सदस्यीय संविधान पीठ 11 मई से नियमित सुनवाई करेगी। केन्द्र सरकार ने गत 11 अप्रैल को शीर्ष अदालत में नयी दलीलें दी थीं जिसमें उसने कहा था कि इस तरह की प्रथाएं मुस्लिम समुदाय की महिलाओं की गरिमा और उनके सामाजिक स्तर पर प्रभाव डाल रही हैं और उन्हें संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों से वंचित कर रही हैं। सरकार ने अपने पहले के रुख को दोहराते हुए कहा कि ये प्रथाएं मुस्लिम महिलाओं को न सिर्फ अपने समुदाय के पुरुषों की तुलना में बल्कि दूसरे समुदाय की महिलाओं की तुलना में भी असमान और असुरक्षित बनाती हैं। गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने 30 मार्च को अपनी टिप्पणी में कहा था कि तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुविवाह प्रथाएं भावनओं से जुड़े अहम मुद्दे हैं। सरकार ने इन्हें असंवैधानिक घोषित करने की मांग करते हुए कहा था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में छह दशक से कोई बदलाव नहीं हुए हैं और मुस्लिम महिलाएं अचानक तलाक के डर से बेहद सहमी रहती हैं। ऑल इंडियन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने इन मुद्दों पर न्यायालय द्वारा निर्णय किये जाने का यह कहते हुए विरोध किया कि ये प्रथाएं पवित्र कुरान से आईं हैं और न्याय क्षेत्र के बाहर हैं। उल्लेखनीय है कि मुस्लिम महिलाओं ने तीन तलाक को चुनौती दी हैं जहां पति आमतौर पर तीन बार तलाक बोलकर वैवाहिक संबंध विच्छेद कर लेते हैं और कई बार तो तलाक फोन के जरिये या संदेश भेजकर ही दे दिया जाता है।

कोई टिप्पणी नहीं: