आलेख : अपने बच्चों को डॉक्टर इंजीनियर से पहले इंसान बनाएं - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 27 अगस्त 2017

आलेख : अपने बच्चों को डॉक्टर इंजीनियर से पहले इंसान बनाएं

हमारे आज के समाज के नैतिक मूल्य कितने बदल गए हैं, इस बात का एहसास तब होता है जब आज के समाज में व्यक्ति को उसके चरित्र से नहीं उसके पद और प्रतिष्ठा से आंका जाता है। आज धनवान व्यक्ति पूजा जाता है और यह नहीं देखा जाता कि वो धन कैसे और कहाँ से आ रहा है। ऐसे माहौल में मेहनत से धन कमाने वाला अपने आप को ठगा हुआ सा महसूस करता है।


आज पूरी दुनिया ने बहुत तरक्की कर ली है सभी प्रकार के सुख सुविधाओं के साधन हैं लेकिन दुख के साथ यह कहना पड़ रहा  है कि भले ही विज्ञान के सहारे आज सभ्यता अपनी चरम पर है लेकिन मानवता अपने सबसे बुरे समय  से गुजर रही है। भौतिक सुविधाओं धन दौलत को हासिल करने की दौड़ में हमारे संस्कार कहीं दूर पीछे छूटते जा रहे हैं। आज हम अपने बच्चों को डाक्टर इंजीनियर सीए आदि कुछ भी बनाने के लिए मोटी फीस देकर बड़े बड़े संस्थानों में दाखिला करवाते हैं और हमारे बच्चे डाक्टर इंजीनियर आदि तो बन जाते हैं लेकिन एक नैतिक मूल्यों एवं मानवीयता से युक्त इंसान नहीं बन पाते। हमने अपने बच्चों को गणित की शिक्षा दी, विज्ञान का ज्ञान दिया, अंग्रेजी आदि भाषाओं का ज्ञान दिया  , लेकिन व्यक्तित्व एवं नैतिकता का पाठ पढ़ाना भूल गए।

हमने उनके चरित्र निर्माण के पहलू को नजरअंदाज कर दिया। एक व्यक्ति के व्यक्तित्व में चरित्र की क्या भूमिका होती है इसका महत्व भूल गए। आज के समाज में झूठ बोलना,दूसरों की भावनाओं का ख्याल नहीं रखना,अपने स्वार्थों को ऊपर रखना, कुछ ले दे कर अपने काम निकलवा लेना,आगे बढ़ने  के लिए 'कुछ भी करेगा ' ये सारी बातें आज अवगुण नहीं  "गुण" माने जाते हैं। दरअसल हमारा समाज आज जिस  दौर से गुजर रहा है ,वहां  नैतिक मूल्यों की नईं  नई परिभाषाएँ गढ़ी जा रही हैं। एक समय था जब हमें यह सिखाया जाता था कि झूठ बोलना गलत बात है लेकिन आज ऐसा नहीं है। बहुत ही सलीके से कहा जाता है कि जिस सच से हमारा  नुकसान हो उससे तो झूठ बेहतर है और अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए सफेद झूठ बोलने से भी परहेज़ नहीं किया जाता। रिश्ता चाहे प्रोफेशनल हो या पर्सनल,झूठ आज सबसे बड़ा सहारा है।

एक और बदलाव जो हमारे नैतिक मूल्यों में आया है,वो यह है कि हमें यह सिखाया जाता है कि हमेशा दिमाग से सोचना चाहिए दिल से नहीं। यानी किसी भी विषय पर या रिश्ते पर विचार करने की आवश्यकता पड़े, तो दिमाग से काम लो दिल से नहीं। कुल मिलाकर हमारे विचारों में भावनाओं की कोई जगह नहीं होनी चाहिए और जो दिल से सोचते हैं आज की दुनिया में उन्हें 'एमोशनल फूलस' कहा जाता हैं। तो जो रिश्ते पहले दिलों से निभाए जाते थे आज दिमाग से चलते हैं। हमारे आज के समाज के नैतिक मूल्य कितने बदल गए हैं, इस बात का एहसास तब होता है जब आज के समाज में व्यक्ति को उसके चरित्र से नहीं उसके पद और प्रतिष्ठा से आंका जाता है। आज धनवान व्यक्ति पूजा जाता है और यह नहीं देखा जाता कि वो धन कैसे और कहाँ से आ रहा है। ऐसे माहौल में मेहनत से धन कमाने वाला अपने आप को ठगा हुआ सा महसूस करता है। समाज के इस रुख को देखते हुए पहले जो युवा अपनी प्रतिभा और योग्यता के दम पर आगे बढ़ने में गर्व महसूस करते थे आज आगे बढ़ने के लिए अनैतिक रास्तों का सहारा लेने से भी नहीं हिचकिचाते। ऐसी अनेक बातें हैं जो पहले व्यक्ति के चरित्र को और कालांतर में हमारे समाज की नींव को कमजोर कर रही हैं।


जब समाज में नैतिक मूल्यों को ही बदल दिया जाए, उन्हें नए शब्दों की चादर ओड़ा दी जाए, एक नई पहचान ही दे दी जाए, तो समस्या गंभीर हो जाती है। किसी ने कहा था कि, यदि धन का नाश हो जाता है तो उसे फिर से पाया जा सकता है, यदि स्वास्थ्य खराब हो जाता है, तो उसे भी फिर से हासिल किया जा सकता है लेकिन यदि चरित्र का पतन हो जाता है तो मनुष्य  का ही पतन हो जाता है। लेकिन आज हम देखते हैं कि लोग चरित्र भी पैसे से खरीदते हैं। "ब्रांड एंड इमेज बिल्डिंग" आज धन के सहारे होती है। ऐसे में हम एक नए भारत का निर्माण कैसे करेंगे? वो 'सपनों का भारत' यथार्थ में कैसे बदलेगा? जिस युवा पीढ़ी पर भारत निर्माण का दायित्व है उसके नैतिक मूल्य तो कुछ और ही बन गए हैं? अगर हम वाकई में एक नए भारत का निर्माण करना चाहते हैं तो सबसे पहले हमें अपने पुराने नैतिक मूल्यों की ओर लौटना होगा। जो आदर्श और जो संस्कार हमारी संस्कृति की पहचान हैं उन्हें अपने आचरण में उतारना होगा। अपनी उस सनातन सभ्यता को अपनाना होगा जिसमें  "वसुधैव कुटुम्बकम्" केवल एक विचार नहीं है,एक जीवन पद्धति है, उस परम्परा का अनुसरण करना होगा जहाँ हम यह प्रार्थना करते हैं,

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः
सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् ।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥




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--डॉ नीलम महेंद्र--

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