बिहार में सामाजिक और सांस्कृतिक विकास के लिए कार्य करने वाली संस्था मिथिलालोक फांउडेशन के चेयरमैन और बिटिश लिंग्वा के प्रबंध निदेशक डॉ़ बीरबल झा को सांस्कृतिक एवं सामाजिक योगदान के लिए 'पाग पुरुष पुरस्कार' से सम्मानित किया जाएगा। डॉ़ झा को यह सम्मान मुंबई में 16 सितंबर को डी़ जी़ खेतान इंटरनेशनल ऑडिटोरियम में मैथिली पत्रिका 'मिथिला दर्पण' की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में दिया जाएगा। कार्यक्रम के संयोजक संजय झा ने बताया कि यह पुरस्कार डॉ़ झा को मिथिला के विकास एवं पाग को राष्ट्रीय-अंर्तराष्ट्रीय पहचान दिलाने के लिए दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि मिथिला की सांस्कृतिक पहचान 'पाग' को लोग लगभग भूल गए थे, लेकिन डॉ. झा के प्रयासों के कारण आज मिथिला सहित देश में एक बार फिर से मिथिला की संस्कृति के प्रतीक पाग की चचार् फिर होने लगी है। हाल ही में केंद्र सरकार ने पाग पर डाक टिकट जारी कर मिथिला के सांस्कृतिक प्रतीक पर अपनी मुहर लगाई है और इस पर देश-विदेश में फैले मिथिलावासी गर्व कर रहे हैं। पुरस्कार की घोषणा से प्रसन्न डॉ़ झा ने कहा कि यह सम्मान केवल उनका नहीं, बल्कि प्रत्येक मिथिलावासी का है। उन्होंने कहा कि यह पुरस्कार केवल उनका नहीं, बल्कि सभी मिथिलावासियों की मेहनत और अपनी सांस्कृतिक पहचान को पुनजीर्िवत करने के प्रयास का फल है। उन्होंने कहा कि पुरस्कार पाने के बाद जवाबदेही और भी बढ़ जाती है।
डॉ. झा का मिथिलालोक फाउंडेशन विगत कुछ वषोर्ं से 'पाग बचाउ अभियान' देशभर में चला रहा है। इस अभियान से अब तक लगभग एक करोड़ से ज्यादा लोग जुड़ चुके हैं। डॉ. बीरबल झा का जन्म मधुबनी के एक सुदूर गांव में 22 जनवरी 1972 को एक अत्यंत गरीब परिवार में हुआ था। बीरबल जब एक साल के ही थे, तभी उनके पिता का देहांत हो गया था। उनकी मां जयपुरा देवी ने खेतों में काम कर अपने बच्चों को पाला। डॉ. झा को उनके बचपन ने ही मुसीबतों से लड़ना सिखा दिया। उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव की सरकारी स्कूल से हुई। इसके बाद वह आगे की पढ़ाई करने के लिए पटना आ गए। उन्होंने किसी काम को छोटा नहीं समझा। आगे चलकर उन्होंने पटना विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि ली। उन्होंने देश में अंग्रेजी प्रशिक्षण संस्थान ब्रिटिश लिंग्वा के माध्यम से अपनी एक अलग पहचान बनाई। डॉ. झा का कहना है, “शिक्षा ही एक ऐसा हथियार है, जो हमें मानव जीवन संग्राम में सफल बनाती है। वक्त का तकाजा है कि शिक्षा वैल्यू एडेड होनी चाहिए।” डॉ. झा ने बिहार सरकार के साथ मिलकर 3० हजार से ज्यादा महादलित को स्पोकेन इंग्लिश स्किल का प्रशिक्षण देकर उनकी जिंदगी संवारने का काम किया है। उन्होंने अंग्रेजी एवं व्यक्तित्व विकास पर दर्जनों किताब लिखी हैं।
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