विशेष : खुद की संस्कृति बनाना और उसे अपनाना पड़ेगा मंहगा: मलंगिया - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 18 नवंबर 2017

विशेष : खुद की संस्कृति बनाना और उसे अपनाना पड़ेगा मंहगा: मलंगिया

Mahendra-malangiya
दीपेन्द्र दीपम की एक्सक्लुसिव रिपोर्ट  रिपोर्ट, मशहूर नाटककार महेंद्र मलंगिया ने कहा कि, देश के अंदर कई तरह की क्षेत्रीय भाषाएं है लेकिन उसका इस्तेमाल कम हो रही है जो दुखद है। उन्होंने कहा कि जो उसे उठाने की बात करते हैं वे खुद उसमें ज्यादा से ज्यादा हिंदी-अंग्रेजी इस्तेमाल करते हैं। वे कहा कि इससे इतना तो स्पष्ट हो गया है कि इन भाषाओं की विसंगतियां  ऐसे रूप में लोगों के दिलों-जेहन में न कल थी, न आज हैं। बस, आवाज देने वालों ने ही पश्चिम सभ्यता को इसका जिम्मेवार ठहराया हैं। उन्हें भी अपने क्षेत्र की सभ्यता-संस्कृति की सही से कुछ जानकारी मालूम नहीं है। ऐसे में उन्हें जो विरासत में मिली है क्या वे उसे नहीं छोड़ रहे हैं? कई क्षेत्रीय भाषाओं के गिरने के पीछे उनके ही इलाकों की नई पीढ़ी है। उनके द्वारा नई-नई सभ्यता व संस्कृति को उगाई गई है। नटुआ नाच के जगह डीजे, थियेटर आदि ये सब क्या है? इस सभ्यता व संस्कृति को नई पीढ़ी ने ही दिया। उनके बीच ये जीवन का आधार व अधिकार तक बन चुका है। जबकि, कालांतर में उनके दायरे बौने पड़े हैं। इतना सब कुछ होने के बावजूद भी उसके अतीत धूंधले नहीं है। उसे (क्षेत्रीय भाषा) अंतराष्ट्रीय पटल पर लेकर जाना गौरव हो सकती है और सुकून दे सकती है। जिस तरह से उसे तोड़ने के लिए हुआ है उसी तरह से उसे जोड़ने के लिए हो रहा है। श्री मलंगिया ने दावा किया है कि नई संस्कृति को अपनाना केवल पछतावा ही होगा। इस से कुछ भी हाथ नहीं लगेगा। श्री मलंगिया राष्ट्रीय लोक उत्सव- 2017 को संबोधित कर रहे थे। उत्सव के बतौर मुख्य अतिथि श्री मलंगिया ने कहा कि मां-बाप के लिए बच्चा दुलारा ही होता है। उस बच्चे की परवरिश या लार-प्यार मतभेद नहीं होते हैं। ठीक वैसे ही सभ्यता व संस्कृति होती है। संस्कृति मां, तो सभ्यता पिता की तरह हैं। कलतक जो गोर (पांव) हुआ करता था अब वह आधुनिकता में गर (देखना) बन गया। मिथिला, अवध, भोजपुर, नेपाली, मगही आदि क्षेत्रों में सुबह से शाम और रात व दिन तक की समयों में समन्वय स्थापित करने के लिए रंग मंच ही काफी हद तक कारगर था। उन मंचों पर भूमिका दिखने से लेकर आदि आने वाली अड़चनों का हवाला देते श्री मलंगिया ने साफ-साफ कहा कि जब तक उसे साथ लेकर महिला-पुरूष आगे बढ़ने का काम नहीं करेंगे तब तक आधुनिक युवा पीढ़ी नहीं बढ़ेंगे। उसके (प्राचीन काल की सभ्यता-संस्कृति) साथ नई और दूसरी, तीसरी पीढ़ी चलेंगे यही इसकी (उत्सव) की सफलता होगी। 

भटसिमर में हुआ राष्ट्रीय उत्सव- 2017 का दूसरा आयोजन: भटसिमर स्थित नीलमणी सांस्कृतिक मंच पर केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी, नारी उदगार व अछिनजल की संयुक्त पहल का आयोजन राष्ट्रीय लोक उत्सव- 2017। उनमें विविध भारतीय क्षेत्रीय लोक कलाओं के वह सब रंग मंच बने थे। अंतराष्ट्रीय स्तर पर क्षेत्रीय कला दिखने की आस जगी है। इसकी अलख जगाने युवा पीढ़ी उतरेंगे। क्षेत्रीय भाषा आधारित कलाओं में सन 19 के दशकों के गीत-संगीत, गजल, नृत्य, वाद्य, दैवीय, शक्ति आदि की कल्पना आधुनिकता की रंग में रंगने लगा। 

क्या है मलंगिया:
श्री मलंगिया जीवन के 65 वसंत देख चुके हैं। ये मैथिली, भोजपुरी व नेपाली भाषा के लिए राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छाए है। आयोजित लोक उत्सव के मंच पर क्षेत्रीय भाषाओं के टूटने से बचाने के मद्देनजर युवा पीढ़ी को संदेश दिया गया। युवाओं के जन चेतना जागाने में किस तरह तंत्र, मंत्र, वाद्य यंत्र होने चाहिए आदि संसाधनों के जरिये लोगों को भी बता कर उसे जागरूक किया जाएगा। उत्सव- 17 के मंच पर आदि घोषणा की गई। पश्चिमी देशों की तुलना भारत की सभ्यता-संस्कृति से होती है तो उनमें भारत का दर्जा ऊंची है।आदि-अनादि काल भी इसके गवाह रहे हैं। यही कि, किस तरह उनके सभ्यता-संस्कृति की गाथा वाद्य, तंत्र, मंत्र से सुनहरी थी। वैश्विक पटल पर भारत विदुषी भारती, पराक्रमी भरत की नगरी रही है। उनके जैसे नाम वैसे ही उनके ज्ञान मशहूर रहे है। उन दौर की सभ्यता व संस्कृति नई पीढ़ी के नई सभ्यता-संस्कृति के रंग में खुद को घुलने लगी। पश्चिमी देशों की सभ्यता व संस्कृति फलने-फूलने लगी।

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