कल मैं असम के एक छोटे शहर के एक संभ्रांत परिवार के युवक के व्यवसाय प्रतिष्ठान का वास्तु (Vastu) देखने के लिए गया था। विगत लगभग महीने भर से फोन करने के बावजूद मैं उनके अनुरोध को पूरा नहीं कर पाया था। आखिर कल कई अन्य परिवारों के साथ ही उक्त युवक की ज्वेलरी की दुकान का वास्तु (Vastu) देखने गया। वहां जाकर मुझे याद आया कि उनकी दुकान जिस मकान में है, उस मकान का निर्माण उनके पिता ने करवाया था तथा मकान के निर्माण के दौरान उन्होंने मुझे वास्तु देखने के लिए बुलाया था। उनकी मकान के दक्षिण-पश्चिम में सेप्टिक टैंक (Septic Tank) तथा दक्षिण-पूर्व में हैंडपंप (Handpump) बैठाने की योजना थी। मुझे अब भी अच्छी तरह याद है कि मैंने उन्हें सेप्टिक टैंक तथा हैंडपंप का स्थान बदलने की सलाह दी थी, लेकिन उन्होंने स्थानाभाव के कारण वैसा करना संभव न होने की बात कही थी। मैंने उनसे काफी जोर देकर कहा कि दक्षिण-पूर्व में हैंडपंप होने से काफी आॢथक नुकशान होता है तथा दक्षिण-पश्चिम में सेप्टिक टैंक होने से परिवार में लड़ाई-झगड़े, कोर्ट केस, दुर्घटना तथा अकाल मृत्यु सरीखी घटनाएं घटती हैं। मेरे काफी जोर देकर कहने के बावजूद उन्होंने किसी प्रकार का परिवर्तन करना गंवारा नहीं किया। शायद उनका वास्तु में विश्वास नहीं था अथवा स्थानाभाव के कारण वे ऐसा नहीं करना चाह रहे थे। मेरा काम उन्हें सही सलाह देना था, जो मैंने किया, लेकिन करना तो उन्हें ही था। मैं अपनी बात कह वापस लौट आया था।
चंद महीनों के बाद अचानक एक रोज उनका देहावसान हो गया, जबकि उन्हें किसी प्रकार की बीमारी नहीं थी। दुकान पर जाने पर युवक ने मुझे बताया कि उनकी ज्वैलरी की दुकान भी काफी नुकशान पर चल रही है। कभी-कभी दो-तीन दिनों तक बिक्री नहीं होती। ग्राहक आते भी हैं तो सामान देखकर दाम पूछने के बाद वापस लौट जाते हैं और दूसरी दुकानों से माल खरीद लेते हैं। उनकी बात सुनकर मुझे काफी दुख हुआ। उनके पिता इलाके के काफी समृद्ध व्यक्ति थे तथा उनके पास सैकड़ों बीघा जमीन थी। उन्होंने कई लोगों व सामाजिक संस्थाओं को मुफ्त में जमीन भी दी थी। लेकिन प्रकृृति (वास्तु) की अनदेखी करने के कारण आज उनका समृद्ध परिवार पैसों की भारी तंगी व व्यावसायिक नुकशान झेलने पर विवश था। कल तक लोगों को दिल खोलकर दान देने वाला परिवार आज पैसों की तंगी से जुझने पर मजबूर था। मैंने उनसे उनके पिता को बताई बातों का उल्लेख करते हुए कहा कि प्रकृृति के नियमों के विपरीत चलने का परिणाम काफी घातक होता है। जिस भगवान (Bhagwan), अल्ला (Allah), गॉड (God) को आज तक किसी ने नहीं देखा, लोग उसकी पूजा, नमाजी और प्रार्थना करने में जीवन बीता देते हैं, लेकिन जिस धरती पर मनुष्य रहता है, जिसकी छाती से उत्पन्न हुआ अन्न और पानी तथा जिसके वायुमण्डल से ऑक्सीजन ग्रहण कर जीवन जीता है, उस धरती की पल-पल अनदेखी करता है और यही मनुष्य की अशांति, समस्याओं, मुश्किलों का मुख्य कारण है। मनुष्य कितना भी ताकतवर, समृद्ध, साधन संपन्न क्यों न हो, उसे धरती के नियमों को मानकर चलना ही होगा, वर्ना उसका भी हश्र उक्त युवक के परिवार सरीखा होना तय है। आज फैंसीबाजार में एक बड़े व्यवसायी के घर का वास्तु देखने गया था, जिनका फैंसीबाजार में अपना चार मंजिला मकान है तथा आठगांव में बड़ा व्यवसाय प्रतिष्ठान भी है। पिछले दिनों में कई वास्तुविदों को बुलाकर वास्तु सलाह लेने के बाद लगभग हफ्ते भर पहले उन्होंने मुझे भी आमंत्रित किया था। काम की व्यस्तता के कारण हफ्ते भर बाद आज उनके घर जा पाया था। मैंने उन्हें मकान में कुछ परिवर्तन करने की सलाह दी। अब वे भी अपने मकान में वास्तु सुधार करने को मजबूर हो गये हैं। अत: धरती पर रहने वाले मनुष्यों को आज नहीं कल धरती के नियमों के अनुसार चलना ही पड़ेगा। धरती के नियमों की अनदेखी करने वालों का वैसा ही हश्र होना निश्चित है, जैसा ऊपर उल्लेख किये दोनों परिवारों का हुआ है।
--राजकुमार झांझरी--
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