अयोध्या मामले से जुड़े दो मामलों की पांच दिसम्बर को सुनवाई - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 4 दिसंबर 2017

अयोध्या मामले से जुड़े दो मामलों की पांच दिसम्बर को सुनवाई

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नयी दिल्ली, 03 दिसम्बर, अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाये जाने की 26वीं बरसी से ठीक एक दिन पहले यानी पांच दिसम्बर को उच्चतम न्यायालय इस संबंध में दो मामलों की सुनवाई करेगा। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर की विशेष पीठ विवादित स्थल के मालिकाना हक के लिए जहां दीवानी अपील की सुनवाई करेगी, वहीं उसे 1990 में कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश देने को लेकर उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के खिलाफ मुकदमा शुरू करने के अनुरोध पर भी विचार करना है। दोनों याचिकाएं विशेष पीठ के समक्ष पांच दिसम्बर को अपराह्न दो बजे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध हैं। याचिकाकर्ता राणा संग्राम सिंह ने अपने वकील विष्णु शंकर जैन के जरिये याचिका दाखिल करके श्री यादव के 2014 में एक जनसभा में दिये गये भाषण को आधार बनाया है। यह याचिका न्यायालय में पहली बार पांच दिसंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध हुई है। दूसरी अपील इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के 30 सितम्बर 2010 के उस फैसले के खिलाफ दायर की गयी है, जिसमें अयोध्या की विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बांटने का आदेश दिया गया था। उच्चतम न्यायालय ने नौ मई 2011 को लखनऊ पीठ के आदेश पर रोक लगा दी थी। राणा संग्राम सिंह की याचिका में कहा गया है कि छह फरवरी, 2014 को राज्य के मैनपुरी जिले में आयोजित एक जनसभा में श्री यादव ने कहा था कि उनके आदेश पर 1990 में पुलिस ने अयोध्या में कार सेवकों पर गोलियां चलाई थी। शीर्ष अदालत को इस कानूनी सवाल का निर्णय करना है कि क्या कोई मुख्यमंत्री भीड़ पर गोली चलाने का आदेश दे सकता है? अगर हां, तो किस कानूनी प्रावधान के तहत? क्या पुलिस को भीड़ पर गोली चलाने का अधिकार हैं?  गौरतलब है कि तीस अक्टूबर, 1990 को अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए हजारों कारसेवक जमा हुए थे। पुलिस ने निहत्थे कारसेवकों पर गोलियां चलाई थी, जिसमें कई कारसेवकों की मौत हो गई थी।  याचिकाकर्ता ने लखनऊ पुलिस में पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की गुहार लगाई थी, लेकिन पुलिस ने ऐसा करने से इन्कार कर दिया था। बाद में याचिकाकर्ता ने लखनऊ की निचली अदालत का दरवाजा खटखटाया, लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी। निचली अदालत के बाद उन्हें लखनऊ उच्च न्यायालय से भी राहत नहीं मिली थी।

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