व्यंग्य : टॉयलेट से ताजमहल तक - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 1 दिसंबर 2017

व्यंग्य : टॉयलेट से ताजमहल तक

हमारी सरकार टॉयलेट बनाने पर आमादा है। यूं कहे कि सरकार ने टॉयलेट बनाने का ठेका ले रखा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जहां जाते है, वहां शुरू हो जाते है - भाईयों और बहनों और मित्रों ! टॉयलेट बनाया कि नहीं ? ”शौच है वहां सोच है“ सरकार का जब ध्येय होगा तो एक दिन पूरा देश शौचालय में तब्दील होते देर नहीं लेगा। लगता तो यह भी है कि सरकार सत्ता में टॉयलेट बनवाने के लिए ही आई है। प्रधानमंत्री के आह्वान पर सरकारी अध्यापक बच्चों को पढाना छोडकर घर घर टॉयलेट है कि नहीं यह पड़ताल करने में लग गये है। जैसलमेर जैसे इलाके में सरकार ने टॉयलेट तो बनवा दिये लेकिन टॉयलेट की टंकी में पानी देना भूल गयी। इस कारण विवश होकर लोगों ने टॉयलेट को किराणा की दुकान ही बना डाला। सरकार की कृपा से टॉयलेट में भी दुकान अच्छी-खासी चल रही है। बहुत से टॉयलेट ऐसे है जिनके दरवाजे नहीं है, छत नहीं है। ऊपर से भगवान देख रहा है। सरकार है कुछ भी कर सकती है। सत्ता में आने से पहले जो रोजगार देने, महंगाई कम करने, भ्रष्टाचार मिटाने, महिला सुरक्षा, राम मंदिर निर्माण, कालाधन भारत लाने जैसे तमाम वायदे किये थे, अब लगता है सरकार ने टॉयलेट के होल में सारे फ्लेश कर दिये है। सुबह से लेकर शाम तक, शाम से लेकर रात तक, रात से लेकर सुबह तक, सुबह से फिर शाम तक टॉयलेट निर्माण करो। सरकार का एक ही इरादा - बस ! टॉयलेट बनवाओ। यहां तक कि रात में भी नेता लोग सोते हुए भी ये रट लगाये हुए है - टॉयलेट बनाओ। भारत के विश्वगुरु बनने का रास्ता टॉयलेट के अंदर से ही जाता है। कभी कभार यह भ्रम मस्तिष्क में भ्रमर की गूंज की भांति गूंजन करता है कि मोदी सरकार ने ही टॉयलेट का अविष्कार किया है ! इससे पहले तो शायद सृष्टि लोक और भारत वर्ष में टॉयलेट का अस्तित्व ही नहीं था। सरकार ने “टॉयलेट टॉयलेट” शब्द इतनी बार रिपीट किया कि सरकार के दिमाग में भी टॉयलेट घुस गया। तभी टॉयलेट सरीकी हरकते सरकार कर रही है। कभी गांधी बनने का स्वांग रचकर चरखा चलाते हुए अपने फोटो का कैलेंडर छपवा रही तो कभी गांधी को चतुर बनिया भी कहती नहीं हिचक रही है। इसका पुख्ता ज्वलंत उदाहरण यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा ताजमहल को पर्यटन पुस्तिका से हटा देना है। गंगा-जमुनी संस्कृति की दुहाई देने वाले योगी के काले चश्मे के पीछे आंखे क्या गुल खिलाती है ये उदाहरण जग-जाहिर कर देता है। हुजूर ! तनिक तो देश की एकता और सर्व धर्म समान मुल्क का ख्याल किया होता। विदेशी पर्यटक भारत में आपके बनाये गये टॉयलेट देखने के लिए थोड़ी न आते है ! वे तो आते है ताज के सफेद दूधिया स्तननुमा संगमरमर से तराशे गये गुंबद को जी-भर के निहारने और अपने दिल के कैमरे में कैद करने के लिए। आपने जब से पर्यटन पुस्तिका में से ताजमहल को हटा दिया है हमें तो भयंकर अतिसार के कारण टॉयलेट आ रही है। सरकार को अब तो समझ लेना चाहिए ये टॉयलेटनुमा फैसले देश की एकता और धरोहर के भविष्य के लिए खतरा बन रहे है। 



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--देवेंद्रराज सुथार--
संपर्क - गांधी चौक,  आतमणावास,  
बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान। 343025

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