विशेष आलेख : चिनफिंग इज चाइना - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 1 दिसंबर 2017

विशेष आलेख : चिनफिंग इज चाइना

चीन विरोधाभासों से भरा देश है, जहाँ एक कम्युनिस्ट शासन व्यवस्था के माध्यम से पूंजीवादी अर्थव्यवस्था का सफल संचालन हो रहा है, चीनी शासक वर्ग इसे चीनी विशेषताओं वाले समाजवाद के रूप में पेश करता है. इसी अटपटे रास्ते पर चलते हुए आज चीन विश्व अर्थतंत्र का ड्राइविंग मशीन बन चुका है. चीन की सफलता चमत्कारी है, पिछले दशकों में चीन ने जिस तरह से अपनी कामयाबी के झंडे गाड़े हैं उनसे दुनिया को अचंभित किया है लेकिन अब इसका इरादा सब को पीछे छोड़ देने का है.  हाल ही में संपन्न  चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के (सीपीसी) 19वें महाधिवेशन में इस बात पर मुहर लग चुकी है कि यह “शी जिनपिंग काल” है और उनके सपने ही चीन के सपने हैं. अब वे केवल चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय केंद्रीय कमेटी के महासचिव, चीनी राष्ट्रपति और चीनी केंद्रीय सैन्य आयोग के अध्यक्ष जैसी असीमित शक्तियों वाली पदों से ही लैस नहीं हैं बल्कि उन्हें चेयरमैन माओ के बराबरी का खिताब मिल चुका है. उनके नाम और उनके विचारों को सीपीसी के संविधान में शामिल कर लिया गया है, जिसके बाद से बकौल चीनी मीडिया वे हमेशा के लिए जनता के सेवक, युग के अग्रणी और राष्ट्रीय रीढ़ बन चुके हैं.

18 से 24 अक्टूबर के बीच आयोजित चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के 19वें कांग्रेस के दौरान यह साफ़ हो गया है कि चीन अपनी पहचान को पीछे रखते हुए सिर्फ आर्थिक विकास पर ध्यान देने वाली अपनी नीति से अब आगे बढ़ना चाहता है. देश की तमाम शक्तियों को अपने आप में केन्द्रित कर चुके शी चिनफिंग के इस दौर में चीन दुनिया के मंच पर अपनी खास भूमिका देखता है. शी चिनफिंग जिस नये युग के शुरू होने और चीनी राष्ट्र के महान पुनरुत्थान की कर रहे हैं उसका सम्बन्ध भी दुनिया के रंगमंच पर अपनी भूमिका निर्णायक रूप से बढ़ाने से हैं. 

चेयरमैन चिनफिंग 
शी चिनफिंग को 2012 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की कमान मिली थी फिर 2013 में वे राष्ट्रपति बने जिसके बाद से लगातार वे अपनी ताकत बढ़ाते गये हैं. दरअसल अपने पहले पांच वर्ष के कार्यकाल को शी और उनके समर्थकों ने इस बात को स्थापित करने में लगा दिया कि सामूहिक नेतृत्व के  मॉडल की वजह से समस्याएँ पैदा होती है. इससे गुटबाजी एवं भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है इसलिए चीन में नये युग की शुरुआत के लिये मजबूत और केंद्रीकृत नेतृत्व की जरूरत है. इसी दौरान भ्रष्टाचार के खिलाफ उनका बहुचर्चित अभियान भी चलाया गया. इस अभियान से उन्होंने बड़ी संख्या में नेताओं, उच्च अधिकारियों और रिटायर्ट सैन्य अफसरों को जेल पहुंचाया दिया लेकिन यह केवल भ्रष्टाचार विरोधी अभियान भर नहीं था इसके जरिये उन्होंने अपने विरोधियों और प्रतिद्वंदियों को भी काबू में किया है.इन्हीं के चलते शी चिनफिंग को अपने हाथों में अपार ताकत हासिल करने में कामयाबी मिली है. चीन ने आने वर्षों में उनके द्वारा पेश किये गये रास्ते पर आगे बढ़ने का निर्णय लिया है. अब उनकी तुलना सीधे तौर पर चेयरमैन माओ से की जाने लगी है. चीनी राष्ट्रवाद उनका खास कार्यक्रम है और अपने पूर्ववर्तियों के मुकाबले मसीहा बनने से उन्हें कोई परहेज नहीं है. अपने ‘टू फाइव्स’ (पांच वर्ष के दो कार्यकाल) पूरा  करने के बाद वे अपनी जगह छोड़ने वाले हैं या नहीं फिलहाल उन्होंने इसका कोई निशान नहीं छोड़ा है. 2022 में शी का दूसरा कार्यकाल पूरा होने के बाद क्या होने वाला है इसको लेकर कोई स्पष्टता नहीं है. घरेलू स्तर पर दूर-दूर तक उनका कोई प्रतिद्वंदी नजर नहीं आता है. अब वे “कोर लीडर” हैं और अपने बारे में निर्णय सिर्फ उन्हीं को लेना है. 

अगर इससे पहले चीन में माओ और उसके बाद देंग युग था तो 2012 के बाद के दौर को शी युग कहा जाएगा. हालांकि शी चिनफिंग को माओ की तरह पेश किया जा रहा है लेकिन वे सुधारवादी नेता तंग श्याओ-फिंग के रास्ते पर आगे बढ़ रहे हैं. दरअसल ये देंग शियाओ पिंग ही थे जिन्होंने माओ की मृत्यु के बाद चीन की अर्थव्यवस्था में खुलेपन की नीति को स्वीकार किया था 1978 में उन्होंने सुधार व खुलेपन की नीति पेश की थी. इसे ही चीनी विशेषताओं वाला समाजवाद कहा जाता है. शी भी चीनी विशेषताओं वाले समाजवाद की बात कर रहे हैं  बस इसमें उन्होंने नया युग जोड़ दिया है. हालांकि उनके काम करने का तरीका माओ की तरह है, माओ की तरह वे भी ऐसे सर्वोच्च नेता की अवधारणा पर यकीन करते हैं जो सर्वशक्तिशाली हो और जिसमें सभी शक्तियां निहित हों. माओ के बाद चीन को एक बार फिर अपना चेयरमैन मिल चुका है. 

चीनी माडल 
चीन का माडल अपने आप में अलग और अनोखा है, इसे वे चीनी विशेषताओं के साथ समाजवाद कहते हैं जिसकी राजनीतिक व्यवस्था तो कम्युनिस्ट पार्टी के तौर-तरीके से संचालित होती है लेकिन अर्थव्यवस्था का संचालन पूँजीवाद के नियम-कायदों से होता है. यहाँ अर्थव्यवस्था में खुलेपन की वकालत की जाती है लेकिन सियासत में खुलेपन और कम्युनिस्ट पार्टी के नियंत्रण पर सवाल उठाने वालों के प्रति कोई रियायत नहीं बरती जाती है, नागरिकों के अभिव्यक्ति की आजादी सीमित है, खुली आवाजों पर पाबंदी है और जनता के पास राजनैतिक चुनाव का कोई विकल्प नहीं है. चीनी में कम्युनिस्ट पार्टी का शासन है जो लोकतांत्रिक केंद्रवादी सिद्धांत पर चलती है. पार्टी के 90 मिलियन सदस्य बताये जाते हैं लेकिन इसकी पूरी शक्ति सात सदस्यीय स्थायी समिति (पीबीएससी) में निहित है और अगर स्थायी समिति के चेयरमैन शी जैसे नेता हों तो फिर सारी ताकत एक ही व्यक्ति में केन्द्रित हो जाती है. आज जब पश्चिम की उदारवादी लोकतांत्रिक व्यवस्था अपनों के ही सवालों में उलझी है, चीन ने अपने आप को एक वैकल्पिक माडल के रूप में प्रस्तुत किया है. लेकिन इसी के साथ ही चीन ने दुनिया को कभी भी यह यकीन दिलाने में कोताही नहीं बरती है कि वो अपने माडल का निर्यात नहीं करता है और वो बस चीन का ही माडल है. 

चीनी सपना 
चीन ने जिस तेजी से अपनी अर्थव्यवस्था का विकास किया है उसे चमत्कार ही कहा जायेगा. दरअसल इसके लिये उसने गजब के धैर्य का परिचय दिया है और बहुत ही ठहराव और फोकस तरीके से अपने आपको इस दिशा में आगे बढ़ाया है. देंग शियाओ पिंग का एक मशहूर कथन है “बिल्ली काली है या सफ़ेद इसका तब तक कोई मतलब नहीं, जब तक कि वह चूहे पकड़ रही हो” जाहिर है उनका पूरा जोर तरीके पर नहीं लक्ष्य पर रहा है. आज चीनी अर्थव्यवस्था विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुकी है. शंघाई की चमक विश्व के सबसे विकसित देशों के शहरों को टक्कर देती है, सुधारवादी नीतियों के लागू होने के बाद असमानता बढ़ी है लेकिन इस दौरान बड़ी संख्या में लोग गरीबी से बाहर भी निकले हैं, सैन्य क्षमता है और वैश्विक स्तर उनकी धमक बढ़ी है. अगले साल चीन में सुधार और खुलेपन की नीति लागू करने की 40वीं वर्षगांठ है और शी चिनफिंग घोषणा कर चुके हैं कि चीनी विशेषता वाला समाजवाद एक नये काल में प्रवेश कर चुका है जो कि चीन के विकास की नयी ऐतिहासिक दिशा साबित होगी. शी चिनफिंग महान चीनी राष्ट्र के पुनरुत्थान का सपना पेश कर रहे हैं जिसमें चीन के आर्थिक मजबूती के साथ दुनिया के मंच पर उसे एक महाशक्ति के रूप में स्थापित करने की बात भी शामिल है. अपनी इस अभिलाषा को वे 'चीनी ड्रीम' यानी सभी चीनियों की अभिलाषा के रूप में पेश कर रहे हैं. इसके लिये वे 'व्यापक नवीनीकरण' की वकालत कर रहे हैं जिसमें खुलेपन के विस्तार और शासन क्षमता के आधुनिकीकरण जैसी बातें शामिल हैं. 2021 में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी अपनी स्थापना की 100वीं वर्षगांठ मनाएगी, शी चिनफिंग ने इससे पहले यानी 2020 तक चीन में व्यापक रूप से एक ऐसे खुशहाल समाज के स्थापना की बात की है जहाँ कोई अभाव नहीं होगा. इसी तरह से 2035 तक वे चीन को विश्व सैन्य शक्ति के रूप में देखना चाहते हैं और 2050 तक चीन को पूर्णरूप से विकसित बनाने का लक्ष्य रखा गया है.

दुनिया पर असर 
चीन अब अपनी महत्वाकांक्षाओं  को छुपाता नहीं है, उसने अपने मंसूबों को खोल दिया है. सीपीसी के 19वें महाधिवेशन में चीन के नए चैरमैन ने ऐलान कर दिया है कि “अब वक्त आ गया है कि हम दुनिया के केंद्रीय मंच पर अपनी जगह लें और मानवजाति को अपना महान योगदान दें”. जाहिर है चीन वैश्विक मंच पर अपने आपको केन्द्रीय भूमिका में देखना चाहता है. शी के पहले कार्यकाल से ही चीन ने दुनिया के मंच पर अपनी ताक़त का मुजाहिरा करना शुरू कर दिया था, इस दौरान वे चीन को विश्व की उभरती हुई महाशक्ति के रूप में पेश करते रहे हैं फिर वो चाहे दक्षिणी चीन सागर में बनावटी द्वीप बनाने का मामला हो या फिर बेल्ट ऐंड रोड प्रोजेक्ट या फिर राष्ट्रपति ट्रंप के पेरिस जलवायु समझौते और व्यापार समझौतों से हटने के बाद शी का भूमंडलीकरण के अगुवा के रूप में सामने आना. इस दौरान चीन के राजनीतिक एवं आर्थिक हितों का वैश्विक स्तर पर फैलाव हुआ है. सीपीसी का 19वां महाधिवेशन एक ऐसे समय हुआ है जब दुनिया एक खास मोड़ पर खड़ी नजर आ रही है ट्रंप के नेतृत्व में अमेरिका विश्व के अगुवाई को लेकर अनिच्छुक नजर आ रहा है, यूरोपी देशों में आपसी सहमती टूट रही है, भारत अपने रास्ते से भटकता हुआ नजर आ रहा है और इन सबसे बढ़कर पश्चिम का उदारवादी लोकतान्त्रिक माडल संकट में नजर आ रहा है ऐसे में चीन के पास इन सब का फायदा उठाने का ऐतिहासिक मौका है बशर्ते वो बेलगाम ना हो.  एक चीनी कहावत है “हजारों मील लंबी यात्रा की शुरुआत एक कदम से होती है.”” चैयरमैन चिनफिंग के नेतृत्व में चीन नये युग की तरफ कदम बढ़ा चूका है.  





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जावेद अनीस 
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