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शुक्रवार, 8 दिसंबर 2017

विशेष : यह फ़िल्म सत्य घटना पर आधारित है

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सच्ची घटनाओ पर आधारित फिल्मों का अपना अलग आकर्षण रहा है। इस श्रेणी की अधिकांश फिल्मे पर्याप्त दर्शक जुटा ही लेती है।  जहाँ दर्शक के मुँह फेरने की आशंका होती है वहाँ सयाना निर्देशक कोई विवादित संवाद या सीन लीक कर उसे जनचर्चा का हिस्सा बना देता है। बीते दो तीन दशकों में इस श्रेणी में बनने वाली फिल्मों में खासी वृद्धि देखने को मिली है। 1937 में प्रदर्शित ' अछूत कन्या ' ( अशोक कुमार , देविका रानी ) यूँ तो काल्पनिक थी परन्तु पहली बार किसी फिल्म ने तात्कालीन सामाजिक  समस्या , छुआछूत को परदे पर उतारने का साहस किया था। कायदे से सच घटना पर बनने वाली पहली फिल्म ' डॉ कोटनिस की अमर कहानी ( 1946 )  को माना जाना चाहिए। द्वितीय विश्व युद्ध में एक भारतीय डॉ द्वारकानाथ चीनी सैनिकों का इलाज करने चीन गए थे। उनकी मुलाक़ात वहां एक चीनी युवती चिन लिंग से हुई और वे विवाह बंधन में बंध  गए। डॉ कोटनिस चीनियों को प्लेग से बचाते हुए स्वयं प्लेग का शिकार हुए। ख्वाजा अहमद अब्बास की लिखी कहानी पर वी शांताराम ने इस कालजयी फिल्म का निर्देशन किया।  इस फिल्म का दिलचस्प पहलु यह भी है कि डॉ कोटनिस की भूमिका स्वयं वी शांताराम और चीनी लड़की की भूमिका उनकी धर्मपत्नि जयश्री ने निभाई थी। 

अस्सी के दशक के पूर्व मध्यप्रदेश के अंचल के कुछ क्षेत्रों में महिलाओ की खरीद फरोख्त की दबी छुपी बाते उजागर हुई थी। इस कुप्रथा को सही साबित करने के लिए 'इंडियन एक्सप्रेस ' के खोजी पत्रकार अश्विनी सरीन ने एक भील युवती को बीस हजार रूपये में खरीद कर मीडिया के सामने प्रस्तुत कर दिया था। इस सच घटना पर लिखे विजय तेंदुलकर के नाटक पर भारतीय अमेरिकन डॉयरेक्टर जग मुंधरा ने ' कमला ' ( 1985 ) बनाई। नायिका  दीप्ती नवल ने भील युवती के चरित्र को जीवंत किया था। नायक थे अनूठी हेयर स्टाइल रखने वाले मार्क जुबेर। उस दौर की तमाम सिने पत्रिकाओं और प्रमुख समाचार पत्रों ने इस फिल्म के नारी पात्रों  (दिप्ती नवल , शबाना आजमी , सुलभा देशपांडे ) कीमुक्त कंठ से सराहना की थी। यह फिल्म ऐसा यथार्थ दिखा रही थी जो तथाकथित सभ्य समाज के माथे पर कलंक था। 

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हिंदी फिल्मों की लायब्रेरी में सत्य घटनाओ पर बनी फिल्मे तलाशने जाए तो अच्छी फिल्मों की संख्या पचास पचपन से आगे नहीं जाती।  इसमें भी ज्यादातर फिल्मे अपराध और अपराधियों के जीवन पर बनाई गई है। कुछ बेहतरीन फिल्मों में - ' भाग मिल्खा भाग ' ' गांधी ' परजानिया ' मांझी द मॉउंटेनमेन ' सरकार ' प्रमुख है। यद्धपि अक्षय कुमार अभिनीत ' रुस्तम ' और ' एयरलिफ्ट ' भी सत्य घटना पर आधारित थी परन्तु नायक को श्रेष्ठ बताने के फेर में वास्तविकता की अतिश्योक्ति हो गई थी।  विकसित देशों खासतौर अमेरिका में भी इस श्रेणी की फिल्मों और डॉक्यूमेंट्री के प्रति जबरदस्त रुझान रहा है। यहां डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का प्रदर्शन भी सिनेमा घरों में किया जाता है। हाल ही में अमेरिका के प्रमुख मनोरंजन टीवी चैनल एच बी ओ ने भारत के अब तक अनसुलझे आरुषि -हेमराज हत्याकांड पर चार घंटे की विचारोत्तेजक  डॉक्यूमेंट्री का प्रसारण किया है। समाचार चैनलों में भी मनोरंजन तलाशने वाले भारतीय दर्शकों का एक बड़ा वर्ग शायद ही इस संजीदा डॉक्यूमेंट्री को डाइजेस्ट कर पाया होगा। हालांकि हॉलीवुड इस क्षेत्र में भी हमारा सीनियर है। 9 /11 हादसे के बाद डॉक्यूमेंट्री फिल्म मेकर माइकेल मूर निर्मित '' फेरेनहीट 9 /11'' ट्विन टावर हादसे की इतनी गहराई से पड़ताल करती नजर आती है कि दर्शक सहम जाता है। हॉलीवुड की सत्य घटनाओ पर बनी फिल्मों की सूचि ज्यादा लम्बी है। फिर भी उल्लेखनीय फिल्मों में ' शिंडलर्स लिस्ट ' कैच मी इफ यू कैन 'ट्वेल्व ईयर अ स्लेव 'लिकन ' आर्गो ' पर्ल हार्बर ' आती है। इसी श्रेणी की दुनिया की सर्वश्रेष्ठ अमेरिकन फिल्म '' जे एफ के '' मानी जाती है। अमेरिका के अब तक के सबसे लुभावने और लोकप्रिय राष्ट्रपति जॉन ऍफ़ केनेडी के जीवन और हत्या के घटनाक्रम पर आधारित इस फिल्म को महानतम फिल्म माना जाता है। हड़बड़ी में बकवास फिल्मे बनाकर उन्हें पीरियड फिल्म का नाम देने वाले बॉलीवुड निर्माताओं को सर रिचर्ड एटेनबरो की रिसर्च और मेहनत से सबक लेना चाहिए। ' गाँधी ' फिल्म के लिए तथ्य जुटाने में उन्होंने बीस वर्ष लगाये थे और भारत की दर्जनों यात्राए की थी। निसंदेह वास्तविक घटनाओ और व्यक्तियों पर बनी फिल्मे बहुत सारा धन , बहुत धैर्य और बहुत शोध मांगती है। 




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रजनीश जैन , 
शुजालपुर सिटी  
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