दरभंगा 25 जनवरी, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुरेंद्र कुमार सिंह ने शास्त्रार्थ को ज्ञान का भंडार बताया और कहा कि विलुप्त हो चुकी इस ऐतहासिक परम्परा को बहाल रखने की जरूरत है। प्रो. सिंह ने आज यहां कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के 58वें स्थापना दिवस के अवसर पर सर कामेश्वर सिंह की स्मृति में आयोजित शास्त्रार्थ सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि शास्त्रार्थ में ज्ञान का भंडार निहित है। इस विलुप्त हो चुकी ऐतिहासिक परम्परा को बहाल रखने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि प्राच्य विषयों के अलावा आधुनिक विषयों में भी शास्त्रार्थ किया जाना बेहतर होगा ताकि किसी भी अनसुलझे विषय पर सूक्ष्मता से शास्त्रीय मंथन हो सके और उसका लाभ भी बखूबी आमजनों तक पहुंचाया जा सके। कुलपति ने कहा कि आधुनिक शिक्षा प्रणाली में भी इस विधा की खूब महत्ता है। विषय विशेष पर आज जो ग्रुप डिस्कशन यानी सामूहिक वार्तालाप कराई जाती है वह भी इसी शास्त्रार्थ का एक लघु रूप है। इतना ही नहीं, छात्र सवाल पूछते हैं और फिर शिक्षक उसका जवाब देते हैं, इसे भी पौराणिक शास्त्रार्थ परम्परा की ही उपज कहा जा सकता है। उन्होंने कहा कि शास्त्रार्थ में भी तो विद्वानों द्वारा जिज्ञासाओं को ही शांत किया जाता है। इस मौके पर विधान पार्षद डॉ. दिलीप कुमार चौधरी ने कहा कि विलुप्त हो चुकी शास्त्रार्थ परम्परा को फिर शुरू करना बहुत बड़ी बात है। इसके लिए जो प्रयास किये जा रहे हैं, वह प्रशंसनीय है। उन्होंने कहा कि शास्त्रार्थ हमारी पुरानी परंपरा रही है। इसे और उन्नत बनाने की जरूरत है। इस अवसर पर कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सर्वनारायण झा, प्रतिकुलपति प्रो. चन्द्रेश्वर प्रसाद सिंह, पूर्व कुलपति प्रो. देवनारायण झा, प्रो. रामचन्द्र झा, प्रो. शशिनाथ झा, डॉ. श्रीपति त्रिपाठी, डॉ. घनश्याम मिश्र, डॉ. नन्दकिशोर चौधरी के अलावा अन्य पदाधिकारी उपस्थित थे।
गुरुवार, 25 जनवरी 2018
दरभंगा : शास्त्रार्थ में ज्ञान का भंडार : कुलपति
Tags
# बिहार
Share This
About आर्यावर्त डेस्क
बिहार
Labels:
बिहार
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
संपादकीय (खबर/विज्ञप्ति ईमेल : editor@liveaaryaavart या वॉट्सएप : 9899730304 पर भेजें)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें