पंचायती राज : संदिग्ध है अविश्वास प्रस्ताव की विश्वसनीयता - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 29 अप्रैल 2018

पंचायती राज : संदिग्ध है अविश्वास प्रस्ताव की विश्वसनीयता

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हर साल देश भर में 24 अप्रैल को पंचायती राज दिवस मनाया जाता है। यह दिन भारतीय संविधान के 73 वें संशोधन अधिनियम, 1992 के पारित होने का प्रतीक है, जो 24 अप्रैल 1993 से लागू हुआ था। राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस को मनाने की शुरूआत 2010 में हुई थी। महत्वपूर्ण यह है कि यह वर्ष 73 वें संविधान संशोधन की 25 वीं वर्षगांठ भी है। भारत सरकार ने पुनर्गठित राष्‍ट्रीय ग्राम स्‍वराज अभियान को मंजूरी दे दी है और इसका शुभारंभ स्‍वयं माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी राष्‍ट्रीय पंचायती राज दिवस के मौके पर करेंगे। इस योजना की कुल लागत 7255.50 करोड़ रुपए है जिसमें केंद्र का हिस्सा 4500 करोड़ रुपए और राज्य का हिस्सा 2755.50 करोड़ रुपए है। मुख्य कार्यक्रम 24 अप्रैल 2018 को रामनगर जिला मंडला, मध्य प्रदेश में आयोजित किया जाएगा, जहां माननीय प्रधान मंत्री देश के सभी ग्राम सभाओं को सीधे संबोधित करेंगे। पंचायतों को विभिन्न राष्ट्रीय पंचायत पुरस्कार प्रदान किए जाएंगे।
        
इस वर्ष ग्राम पंचायत विकास योजना पुरस्‍कार की शुरुआत की गई है। यह पुरस्‍कार देश भर की सर्वश्रेष्‍ठ योजना बनाने वाली तीन ग्राम पंचायतों को दिया जाएगा। इस वर्ष ग्राम पंचायत विकास योजना पुरस्‍कार की शुरुआत की गई है। यह पुरस्‍कार देश भर की सर्वश्रेष्‍ठ योजना बनाने वाली तीन ग्राम पंचायतों को दिया जाएगा। ई-सक्षमता का पंचायतों द्वारा प्रभावी ढंग से अपनाने और पंचायतों की कार्यवाहियों को पारदर्शी और दक्ष बनाने हेतु विभिन्‍न ई-एप्‍लीकेशनों के प्रयोग करने और प्रोत्साहन के लिए 6 राज्यों को ई-पंचायत पुरस्कार प्रदान किया जा रहा है। राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान का प्रतिपादन सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए किया गया है। 
         
एक ओर तो केंद्र सरकार पंचायतों के विकास के लिए हर संभव कदम उठा रही है। इसके लिए महिलाओं को पंचायत चुनाव में आरक्षण देकर स्थानीय शासन में महिलाओं की भागीदारी को सुनिश्चित किया जा रहा है। वहीं दूसरी ओर पंचायत पंचायत चुनाव में हिस्सा लेने के लिए अलग-अलग राज्या के ज़रिए अलग-अलग नियमावली बनाई गई है जो स्थानीय शासन में महिलाओं की भागीदारी को प्रभावित कर रही है। पंचायत में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए आरक्षण काफी हद तक सफल हुआ है लेकिन किसी-किसी राज्य में इस नियमावली का दुरूपयोग कर महिलाओं की स्थानीय शासन में भागीदारी को प्रभावित भी किया जा रहा है। एक ऐसी ही कहानी है गीता देवी की। 
         
गीता गुजरात के भावनगर ज़िले के सिहोर तालुका के पिपराला ग्राम पंचायत में रहती हैं। गीता के परिवार में कुल सात सदस्य हैं जिसमें उनकी तीन बेटियां व दो बेटे शमिल हैं। तीनों बेटियों की शादी हो चुकी है। गीता आशा वर्कर हैं और उनके पति ड्राइवर हैं। गीता के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। गीता के परिवार की आय 9-10 रूपये है। गीता कोली समुदाय से है जो गुजरात में अन्य पिछड़ा वर्ग में आता हैं। गीता ने 2010 में सरपंच का चुनाव लड़ा था किंतु उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। मगर 2016 उन्होंने सरपंच का चुनाव लड़ा व जीत हासिल की। पिपरला ग्राम पंचायत की सीट 2016 में महिला सीट हो गई। 2016 में गीता ने सरपंच के पद पर चुनाव लड़ा व पांच सौ वोटों के भारी अंतर से जीता हासिल की। यह केवल चुनावी जीत नहीं थी बल्कि एक एतिहासिक बदलाव था क्योंकि गीता पिपरला पंचायत की पहली महिला सरपंच बनीं थीं। इससे पहले पिपरला पंचायत में समरस का प्रचलन था। गीता से पहले पंचायत के सरपंच चंदू भाई थे जो समरस के तहत सरपंच चुने गए थे। इस तरह गीता के चयन से पिपरला में समरस परंपरा का अंत हुआ।
      
सरपंच बनने के बाद सबसे पहले गीता ने अपनी पंचायत में राशन डिपो में चल रही धान्धलेबाजी को रुकवाया । उनके गाँव का राशन डिपो वाला गाँव वालों को राशन देने के एवज में दस रूपए की मांग करता करता था। जिसकी वजह से गाँव वाले काफी परेशान थे। गीता ने तालुका पंचायत दफ्तर से लेकर जिला दफ्तर तक सभी से इस बात की शिकायत की मगर कहीं से कोई मदद नहीं मिली। हर जगह से गीता को यही सुनने को मिलता था कि यह काम उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। अंत में आकर गीता ने ब्लाक विकास अधिकारी से शिकायत की तब जाकर उस भ्रष्ट राशन डिपो वाले को हटा कर किसी अन्य को राशन डिपो का  कार्यभार सौंपा गया। अपने छह महीने के छोटे से कार्यकाल के दौरान ही गीता ने  पंचायत में पानी और सड़क निर्माण के लिए सरकार से ग्रांट पास कराया और उसका काम भी शुरू करा दिया था। गीता ने पिपरला में एक बस स्टैंड का निर्माण के अलावा पानी की निकासी के लिए नालियों का निर्माण कराया। 

गीता के बारे में गाँव वालों का कहना है कि विकास के हर काम में गीता उनसे मशवरा ज़रूर करती हैं। गीता की इसी बात को उनकी पंचायत के सदस्य पसंद नहीं करते थे। इस बारे में गीता कहती हैं कि उनके साथी पंचों को यह बात अच्छी नहीं लगती थी कि कैसे कोई महिला अकेले अपनी हिम्मत और विवेक से पंचायत का कार्यभार संभाल रही है। 

गीता के मुताबिक गाँव के संभ्रांत जाति के लोग भी उससे खफा थे क्योंकि उनके गाँव में पिछले कई वर्षों से समरस पंचायत होती आ रही थी, मगर कभी किसी महिला को समरस पंचायत के तहत सरपंच नहीं चुना गया । गीता ने समरस की परम्परा को खत्म करने के लिए ही 2010 में पहली बार चुनाव में हिस्सा लिया, मगर वह हार गयी किन्तु वह अपने प्रयास से समरस की प्रथा को तोड़ने में सफल रही । इसके बाद गीता एक आशा वर्कर के तौर पर गाँव में काम करने लगी। इस दौरान गीता ने गाँव की महिलाओं के उत्थान के लिए कई काम भी किए। गीता चुनाव जीतने से पहले महिलाओं को स्वास्थ्य केंद्र लेकर जाती थी और उनको अच्छी सेहत रखने के लिए उनसे लगातार मिलती भी रहती थी । गीता ने अपने कामों के दम पर ही अपने गाँव के लोगों का मन भी जीता । गीता कहती हैं कि वह एक राजनीतिक पार्टी से सम्बन्ध रखती हैं लेकिन महिला होने के नाते उनके साथ भेदभाव किया जाता था। उनके मुताबिक वह जब कभी भी ग्राम पंचायत के काम से ताल्लुका के दफ्तर जाती थीं तो उनको सही से जानकारी नहीं मिलती थी । उनको एक छोटे से काम के लिए भी कई चक्कर लगाने पड़ते थे । 

गीता को अविश्वास प्रस्ताव लाकर सात महीनों में ही सरपंच के पद से हटा दिया गया। गीता के सरपंच पद से हटने के बाद पिपरला  में छह महीनों तक सरपंच का पद खाली पड़ा रहा । इस दौरान उप सरपंच हंसा बहन ने सरपंच का कार्यभार संभाला। सरपंच का पद खाली रहने से पंचायत में विकास कार्य रूके रहे और हंसा बहन ने केवल गीता के ज़रिए कराए जा रहे कामों को आगे बढ़ाया। 

गीता के 2016 के पहले कार्यकाल में 7 महीनों के अंतराल में ही उनके साथी पंचों की तरफ से अविश्वास प्रस्ताव पत्र आ गया। गीता के खिलाफ सात में से सात वोट उनके खिलाफ गए। गीता कहती है कि ‘‘उनके खिलाफ यह अविश्वास पत्र इसलिए आया क्योंकि वह लगातार अपने विवेक से काम कर रही थी  जबकि उनके पंच पुरूष साथी चाहते थे कि गीता उनके मुताबिक काम करे । गीता बताती हैं कि 2016 के पंचायत चुनाव में उनकी तीन साथियों को विरोधी पार्टी ने नामांकन भरने से रोक दिया था जिसमें दो महिलाएं थी। गीता को भी नामांकन भरने से रोका गया था मगर वह किसी की भी धमकी से नहीं डरी। विरोधी पार्टी की ओर से चार लोगों को पंचायत सदस्य के लिए खड़ा किया गया था जिसमें सभी ने जीत हासिल की। इन सभी सदस्या ने मेरे खिलाफ मुझे सरपंच के पद से हटाने के लिए वोंटिग की थी। इस तरह अविश्वास प्रस्ताव लाकर सभी ने मिलीभगत से मुझे हटा दिया। 

गीता अविश्वास प्रस्ताव आने के बाद चुप नहीं बैठीं। उन्होंने तहसील, तालुका से लेकर जिला स्तर पर सभी से गुहार लगाई है कि वह ग्राम पंचायत के पुरुषों द्वारा षड्यंत्र और राजनीति का शिकार हुई हैं। गीता बताती हैं कि उनको कई बार पद छोड़ने के लिए धमकी मिली और साथ ही बात को आगे न लेकर  लेकर जाने के लिए दो लाख रूपए की पेशकश भी की गयी थी। मगर गीता किसी से घबराई नहीं और लगातार अपने प्रयासों में लगी रहीं। लेकिन अन्ततः वह हार गईं ।

हालांकि गीता को अविश्वास प्रस्ताव पत्र के माध्यम से सरपंच पद से हटा दिया गया परन्तु उनके गांव वालों ने उनको वापस उनके पद पर लाने के लिए उनका पूरा साथ दिया था। वह चाहतेे थे कि सबके सब मिलकर जिला पंचायत दफ्तर जाकर उनके समर्थन में जिला अध्यक्ष को पत्र दें मगर गीता ने उनको ऐसा कुछ भी करने से मना कर दिया। गीता जानती थी कि अविश्वास प्रस्ताव आने के बाद गाँव वालों कि जिला पंचायत में कोई सुनवाई नहीं होगी । 

सरपंच पद से हटने के बाद 2018 में फरवरी महीने में होने वाले सरपंच पद के चुनावों में गीता ने फिर भाग लिया मगर वह 81 वोटों से हार गयी । 2018 में हंसा कोली को सरपंच पद के लिए चुना गया जो उप-सरपंच थी । इस समय हंसा कोली सरपंच तो है मगर असली सरपंची उनका बेटा करता है । गीता शायद इसीलिए उन्हें स्वीकार्य नहीं थीं क्योंकि वह किसी की अनावश्यक दखलंदाजी को स्वीकार नहीं करती थी ।

गीता कहती हैं कि यह कानून ही गलत है। चुनाव में जनता अपना वोट देकर हमें पंचायत में लाती है और अविश्वास प्रस्ताव में गांव वालों की कोई भागीदारी ही नहीं होती। इसका निर्णय पंचायत के स्तर पर ही ले लिया जाता है और इसकी सबसे अधिक शिकार महिलाएं ही होती हैं। जातीय राजनीतिक समीकरण इसमें सबसे अहम भूमिका निभाते हैं। इसलिए इस प्रक्रिया में गाँव वालों का भी हिस्सा होना चाहिए। गीता कहती है कि यह सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि महिलाओं को पंचायत में काम करने के लिए एक ऐसा माहौल दिया जाए जिसमें वह अपने को सहज महसूस करंे और साथ ही उन्हें काम करने में सरकारी तंत्र से भी मदद मिलनी चाहिए। 





(बसंती)

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