विशेष : नियमों के बंधन में बंधे हौसले - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 9 अप्रैल 2018

विशेष : नियमों के बंधन में बंधे हौसले

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राजस्थान के सिरोही ज़िले के पिण्डवाडा ब्लाॅक की अचपुरा पंचायत। इसी पंचायत के नागपुरा गांव की रहने वाली हैं पुष्पा देवी। पुष्पा देवी क ी उम्र 30 साल और उन्होंने कक्षा 12 तक की शिक्षा हासिल की है। अपनी आठवीं तक की पढ़ाई उन्होंने अपने मायके में जबकि उसके बाद की पढ़ाई उन्होंने ससुराल में रहकर हासिल की। पुष्पा के पति अर्जुन राव, अशिक्षित हैं और खेती का काम करते हैं। संयुक्त परिवार के आठ सदस्यों में चार बच्चे पुष्पा देवी के हैं। दो बच्चों के बाद पुष्पा चाहती थीं कि और बच्चे न हों क्योंकि उनका परिवार पूरा हो चुका है। लेकिन परिवार के अन्य सदस्यों का कहना था कि एक बेटा और हो और इस तरह से दूसरे बेटे के इंतज़ार में चार बच्चे हो गए। परिवार में आय का मुख्य साधन खेती है। परिवारिक विभाजन के कारण पुष्पा के परिवार के पास बहुत कम ज़मीन रह गयी है। जिसके कारण पुष्पा के परिवार को आजीविका के लिए मज़दूरी पर निर्भर रहना पड़ता है। परिवार की मासिक आय रू. 10,000/- है। 

2011 की जनसंख्या के अनुसार गांव अचपुरा की कुल आबादी 1,263 है जबकि महिलाओं की संख्या 616 है। गांव का साक्षरता दर 61.78 प्र्रतिशत था जबकि महिला साक्षरता दर 43.91 प्रतिशत था। पुष्पा देवी कहती हैं कि-‘‘अचपुरा पंचायत में साक्षरता दर काफी कम है। मगर शिक्षा के मामले में मेरी ससुराल का माहौल बिल्कुल अलग है। मेरे पति और ससुर ने शिक्षा हासिल करने में मुझे मदद की।। मेरा अपना भी मानना है कि महिलाओं का पढ़ा लिखा होना बहुत ज़रूरी है। परिवार में यदि महिलाएं पढ़ी-लिखी होती हंै तो परिवार और समाज का विकास बेहतर होता है।’’ पुष्पा एक आशा सहयोगिनी के रूप में काम कर रहीं हैं। पुष्पा महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी जानकारी देती हैं, संस्थागत प्रसव के लिए प्रेरित करती हैं और उसके फायदे बताती हैं। आशा सहयोगिनी के रूप में वह अपनी ज़िम्मेदारी को बखूबी निभाती हैं। घर-घर जाकर महिलाओं से मिलती हैं, सामान्य व गर्भावस्था संबंधी स्वास्थ्य के बारे में जानकारी देती हैं। महिलाओं को लाभकारी योजनाओं की जानकारी देकर उनकी मदद करती हैं। 

नागपुरा गांव में शराबबंदी के खिलाफ अभियान में पुष्पा की भूमिका अहम है। एक आशा सहयोगिनी के तौर पर वह स्वास्थ्य के मुद्दों पर गांव में फैले अंधविश्वासों को भी दूर करके समुदाय को जागरूक करने में मदद करती हैं। अपने काम के दौरान तो पुष्पा को हालांकि विशेष तरह का संघर्ष तो नहीं करना पड़ा हां एक स्वास्थ्य कार्यकर्ता के तौर पर शुरूआत में लोगों को अपनी बात समझाने में उनको दिक्कत ज़रूर आयी पर धीरे धीरे यह समस्या सुलझ गयी। शिक्षा से वंचित समाज में फैली रूढियां भय को जन्म देती हैं और लोग बदलाव को आसानी से स्वीकार नहीं करते। इसके लिए पुष्पा को भी लोगों को समझाने में काफी प्रयास करने पड़े क्योंकि आसानी से लोग नई बातों को स्वीकार नहीं करते थे। लेकिन शुरूआती प्रयासों के बाद जब लोगों को एक बार यह समझ में आ गया कि यह उनके स्वास्थ्य से जुड़ा मसला है और इससे उनका परिवार, बच्चे और वह स्वयं फायदे में रहेंगे तो लोग अपने स्वास्थ्य को बेहतर रखने के लिए उनकी बात मानने लगे। 
         
पुष्पा चाहती हैं कि वह पंचायत में आकर व्यापक स्तर पर अपने गांव की बेहतरी के लिए काम कर सकें। महिलाओं की शिक्षा व उनके सशक्तिकरण के लिए पुष्पा काम करने की इच्छुक हैं। उन्हें लगता है कि पंचायत के स्तर से यह काम करना ज्यादा आसान होगा और इसका फायदा ज़्यादा लोगों को मिलेगा। स्वास्थ्य कार्यकर्ता के तौर पर लोकप्रिय पुष्पा ने 2015 में जब चुनाव में प्रतिभाग करने की इच्छा की तो वह ऐसा नहीं कर पायीं क्योंकि उनके घर मंे शौचालय नहीं था और उनके चार बच्चे थे। सरपंच के पद के लिए दो बच्चे व शौचालय का नियम उनकी सरपंच की उम्मीदवारी में बाधा बना। चुनाव के बाद पुष्पा ने अपने घर में शौचालय बनवाया और उसका इस्तेमाल करने लगीं। मगर अभी भी पुष्पा के लिए सरपंच के चुनाव में प्रतिभाग करना असंभव है क्योंकि वह चार बच्चों की मां हैं। यह दूसरी बात है कि इसका निर्णय उनके हाथ में नहीं था। पुष्पा धीमे स्वर में कहती हैं कि ‘परिवार में सब निर्णय उनके हाथ में तो नहीं होते मगर सरकारी कानून तो उन्हें मानना ही पड़ेगा। दो बच्चों के नियम के चलते कमला कभी भी सरपंच का चुनाव नहीं लड़ सकतीं। दो बच्चों के नियम के तहत सरपंच के पद पर वही उम्मीदवार चुनाव लड़ सकता है जिसके दो बच्चे हैं। कमला ने शौचालय बनवा भी लिया है तो क्या ? बच्चों की संख्या तो कम नहीं हो सकती।’ पुष्पा कुछ निराश हैं, कहती हैं कि ‘‘उनको तो इस बारे में पता ही नहीं था कि सरपंच के पद पर चुनाव लड़ने के लिए इतने सारे कानून हैं, नही तो वह चुनाव लड़ने के बारे में सोचती ही नहीं।’’

पंचायत चुनाव की नई नियमावली के तहत महिलाओं का प्रतिभाग किसी न किसी पायदान पर अवश्य ही प्रभावित हो रहा है। शिक्षा नहीं है तो 2 बच्चों का नियम। दो बच्चे हैं तो शौचालय का नियम या और दूसरे नियम। पंचायत में महिलाओं के 50 फीसदी आरक्षण के बाद भी इस नई नियमावली से कई ऐसी क्षमतावान महिलाएं पंचायत चुनावों में प्रतिभाग करने से वंचित रह जाएंगी जो लोकप्रिय भी हैं और पंचायतों के विकास में योगदान भी कर सकती हैं।  




(पवित्र)

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