आलेख : आग़ाज़ से पहले ही अंजाम - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 9 अप्रैल 2018

आलेख : आग़ाज़ से पहले ही अंजाम

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रमिया देवी ने जीवन के 53 बसंत देखे हैं। रमिया देवी राजस्थान के सिरोही ज़िले के पिण्डवाडा तहसील की अचपुरा पंचायत की रहने वाली हैं। 2011 के जनगणना के अनुसार सिरोही की कुल आबादी 1,036,346 है जिसमें महिलाएं 502,115 हैं। सिरोही का कुल साक्षरता दर 55.25 तथा महिला साक्षरता दर 39.73 प्रतिशत है। सिरोही ज़िले में पिण्डवाडा समेत कुल पांच ब्लाॅक हैं। रमिया देवी अचपुरा पंचायत में अपने परिवार के साथ रहती हैं। परिवार में पति, बेटा, बहू, सास, ससुर समेत छह सदस्य हैं। परिवार की आय का मुख्य साधन खेती और मासिक आय रू.8000/- है। रमिया ने मुक्त विद्यालय से कक्षा 5 तक की पढाई की है और उनके पति 8 वीं तक शिक्षित हैं। अचपुरा गांव में लोग अब शिक्षा के महत्व को समझ रहे हैं और अपने बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं। इससे पहले लोग अपने बच्चों को खेती के काम में लगवा देते थे। समय के साथ बदलाव आया है और अब लोग बच्चों को स्कूल भेज रहे हैं। रमिया के पति सोनाराम पूर्व सरपंच रह चुके हैं। वह 1994 में इसी पंचायत के सरपंच रहे हैं। रमिया अपने पति के कार्यकाल में उनके साथ बैठकों में जाया करती थीं। वहां लोगों से, खासकर औरतों से तमाम विषयों पर बातें करती थीं। इस प्रक्रिया में उन्हें पंचायत की कार्य प्रक्रिया व लोगों के मुद्दों की जानकारी होने लगी। सरपंच पत्नी होने व लोगों से लगातार बात करते हुए वह लोगों में लोकप्रिय भी हो गयीं थीं। रमिया के पति गरासिया समाज के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। जिसकी वजह से उनके घर पर लोगों का आना जाना लगा रहता है। रमिया देवी गरासिया समुदाय की बैठकों में भी पति के साथ जाती थीं। वहीं महिलाओं से मिलकर उनकी समस्याओं को भी सुनती हैं व जितना हो सके अपने पति के साथ मिलकर उनकी मदद करती हैं। अचपुरा में भी अन्य गांवों की तरह बालिका शिक्षा, स्वास्थ्य बाल विवाह जैसी दिक्कतें थीं। रमिया इस बात को महसूस करती थीं। वह खुद भी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता और जागृत महिला संगठन की अध्यक्ष हैं। गांव में शराबबंदी को लेकर उनका प्रयास उल्लेखनीय है। गांव के लोग शराब पीने के आदी थे जिसका असर लोगों के स्वास्थ्य व पारिवारिक शांति और सौहार्द पड़ रहा था। महिलाएं घर में हिंसा का शिकार हो रही थीं। रमिया देवी ने इसके खिलाफ आंदोलन किया कि गांव में शराब की उपलब्धता को खत्म किया जाए। उन्होंने जंगल के बीच में बनी शराब की भट्ठियों के सामने पहले धरना दिया और उनसे इसे बंद करने की मांग की और जब बात नहीं बनी तो औरतों के साथ भट्ठियों पर हल्ला बोलकर सब भट्ठियां तोड़ दीं। वह भविष्य में भी अपने गांव में महिलाओं के बेहतर जीवन, शिक्षा और बाल विवाह के मुद्दों पर काम करना चाहती थीं। रमिया बताती हैं कि गांव के अन्य कामों के अलावा समुदाय के लोगों की मांगें आधार, राशन कार्ड और बैंक में खाता खुलाने भर की हैं। सरकार की कल्याणकारी योजनाओं के लाभ के बारे में भी लोगों को जानकारी नहीं है। गांव में बहुत से ऐसे लोग हैं जिनको यह भी नहीं पता कि सरकार वरिष्ठ नागरिकों को पेंशन देती है। रमिया इन सब मुद्दों पर काम करना चाहती थीं। पर 2015 में अचपुरा की सीट ओपेन सीट हो गयी। रमिया के हौसले ने हिम्मत नहीं हारी और उन्होंने चाहा कि वह इस चुनाव में प्रतिभाग करें। लेकिन शैक्षिक योग्यता के नियम के चलते वह चुनाव नहीं लड़ सकीं। 

अचपुरा पंचायत 2010 में एसटी महिला सीट थी और बालकी देवी सरपंच बनी थीं। बालकी देवी महिला एंव बाल विकास विभाग के साथ जुड़कर स्वास्थ्य पर काम करती थीं और उनके पति मास्टर थे। बालकी देवी के पति ने उनको प्रेरित किया कि वह सरपंच पद के लिए चुनाव में खड़ी हों। बालकी देवी हालांकि आठवीं तक शिक्षित थीं, पर पंचायत के काम का उनको अनुभव नहीं था। वह बातचीत, बहस करने व अपनी बात रखने में सक्षम हैं पर गांव के विकास के काम वह पति की मदद से ही करती थीं। अन्य स्थानों की तरह ही इस पंचायत में भी महिला के तौर पर उनका विरोध रहता था, लोग बालकी को इतना महत्व नहीं देते थे, न ही कोई उनकी बात सुनता था, न राय मांगता था। सारे महत्वपूर्ण काम उनके पति ही करते थे। बालकी देवी के समय में विकास का काम तो हुआ। पंचायत में सड़कों का निर्माण हुआ। योजनाओं के लाभ समुदाय के लोगों तक पहंुचे लेकिन फर्क यह था कि इसका लाभ कुछ खास समुदायों तक ही पहुंचता था, जो उनके अपने थे या उनके पक्ष के थे। अजपुरा पंचायत के महिला सीट होने के बाद रमिया व उनके परिवार ने सोचा कि अब रमिया के पति की जगह रमिया को चुनाव में भाग लेने का अवसर दिया जाए। पर राजस्थान के पंचायत चुनावों की नियमावली के चलते वह इन चुनावों में प्रतिभाग नहीं कर सकीं। शैक्षिक योग्यता के नियम के चलते रमिया को यह अवसर शायद अब कभी नहीं मिलेगा कि वह चुनाव में प्रतिभाग कर गांव के विकास की दिशा में अपने सपनों को साकार कर सकें। हालांकि रमिया के लिए शायद यह पहला अवसर होगा जब वह पंचायत की प्रधान बनने का सपना देख रही हैं। ग्रामीण औरतों की आंखों में यह सपना 73वें संविधान संशोधन के बाद आए आरक्षण से जागा है। औरतें अब घर से बाहर आकर गांव के काम काज में जुड़ने का सपना देख रही थीं कि नई नियमावली इन सारे सपनों पर पानी फेर रही है। 





(रमेश खांडे)

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