बिहार : ‘सामाजिक न्‍याय का संकट’ विषय पर हुआ विमर्श - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 30 अप्रैल 2018

बिहार : ‘सामाजिक न्‍याय का संकट’ विषय पर हुआ विमर्श

  • हमारी मुलाकात फिर किसी नये अंक के साथ अगले पड़ाव पर होगी
  • ‘वीरेंद्र यादव न्‍यूज’ के 30 अंकों के प्रकाशन के मौके पर सेमिनार

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मासिक पत्रिका ‘वीरेंद्र यादव न्‍यूज’ के 30 अंकों की यात्रा पूरी करने के अवसर पर 29 अप्रैल को पटना के गांधी संग्रहालय में विचार गोष्‍ठी आयोजित की गयी थी। गोष्‍ठी के अंत में अति‍थियों के प्रति आभार व्‍यक्‍त करते हुए हमने कहा कि हमारी अगली मुलाकात ‘वीरेंद्र यादव न्‍यूज’ के किसी नये अंक के साथ अगले पड़ाव पर होगी। पत्रिका के निर्बाध 30 अंकों की यात्रा काफी रोमाचंक रही है। हर अंक के लिए चंदा एकत्र करना, सामग्री का संकलन और पाठकों तक पहुंचाना काफी श्रमसाध्‍य काम रहा है। इसके साथ प्रति अंक की कवर स्‍टोरी की विशेष तैयारी और उसके लिए आंकड़ों की तलाश भी चुनौतीपूर्ण रही है। लेकिन हर अंक के बाद पाठकों से मिलने वाली प्रतिक्रिया और शुभेच्‍छुओं का सहयोग हमें लगातार पत्रिका को बेहतर बनाने के लिए प्रेरित करता रहा है। दरअसल 30वें अंक के प्रकाशन के बाद आयोजित विचार गोष्‍ठी पाठकों और शुभेच्‍छुओं के प्रति हमारा आभार ही था। विचार गोष्‍ठी का विषय था- सामाजिक न्‍याय का संकट।

गोष्‍ठी को संबोधित करते हुए हमने कहा कि अपने अन्‍य कार्यों के अलावा पत्रिका के लिए समय निकालना चुनौती भरा रहा है। इसके बावजूद पत्रिका नियमित रूप से छपती रही तो इसमें एक बड़ी वजह सामाजिक जिम्‍मेवारियों के प्रति हमारी प्रतिबद्धता भी रही है। सामाजिक सरोकारों को लेकर हमारी निष्‍ठा भी रही। यही प्रतिबद्धता और निष्‍ठा विषम परिस्थितियों में भी पत्रिका प्रकाशित करने के लिए विवश करती रही है, प्रेरित भी करती रही है। इसी का परिणाम है कि हम 30 अंकों की गौरवपूर्ण निर्बाध यात्रा पूरी कर सके हैं। हमने कहा कि पत्रिका का हर अंक काफी तथ्‍यपूर्ण और संग्रहणीय रहता है। 2015 के विधान सभा चुनाव के बाद बिहार को समझने के लिए इस पत्रिका से बेहतर कोई सामग्री उपलब्‍ध नहीं है। पत्रिका हर महीने की महत्‍वपूर्ण राजनीतिक घटनाओं का दस्‍तावेज भी है। हमारी कोशिश भी यही रही है कि हम जिस विषय को उठाएं, उसे पूरी समग्रता के साथ पाठकों के समक्ष रखें। हम पत्रिका के निष्‍पक्ष होने का दावा भी नहीं करते हैं। क्‍योंकि पाठकों पर निर्भर करता है कि किसी खबर को वे किस परिप्रेक्ष्‍य में देखते हैं। हम अपनी बातों को तथ्‍यों के साथ रखते हैं। उन बातों से सहमति या असहमति पाठकीय स्‍वतंत्रता है और हम उसका सम्‍मान करते हैं।

विचार गोष्‍ठी को संबोधित करते हुए न्‍यूज पोर्टल मीडियामोरचा की संपादक डॉ लीना ने कहा कि ‘सामाजिक न्‍याय का संकट’ गंभीर होता जा रहा है। कुछ सवर्ण जातियों के लिए 50 प्रतिशत सीटों का आरक्षण तय कर दिया है। अकेले 3 प्रतिशत ब्राह्मणों का ही 45 फीसदी सीटों पर कब्‍जा है। बेहतर शिक्षा और शैक्षणिक माहौल बनाकर ही इस संकट से निपटा जा सकता है। विधान सभा के सेवानिवृत्‍त अवर सचिव रामेश्‍वर चौधरी ने कहा कि समाज को बांटने और बांटते रहने की परंपरा सदियों चली आ रही है। यह बंटवारा ही शोषण का मुख्‍य आधार रहा है। समाज में नकारात्‍मक स्‍पर्धा की प्रवृत्ति बढ़ी है। इससे उबरने की जरूरत है। सामाजिक कार्यकर्ता रौशन यादव ने कहा कि सामाजिक न्‍याय के अपने पक्ष हैं। आरक्षण सामाजिक न्‍याय का जरिया है, आर्थिक न्‍याय का नहीं। इलाहाबाद बैंक से सेवानिवृत्‍त बैंक मैनेजर केके कर्ण ने कहा कि सामाजिक न्‍याय का लक्ष्‍य हासिल करने के लिए सत्‍ता जरूरी है। उन्‍होंने कहा कि ओबीसी समाज मरा हुआ है। वह अपने अधिकारों के प्रति सचेत नहीं है और जागरूक भी नहीं है। श्री कर्ण ने गावं की ओर चलने की अपील की। पटना हाईकोर्ट के वरीय अधिवक्‍ता केपी यादव ने कहा कि शिक्षा की दिशा और गुणवत्‍ता तय होनी चाहिए। गुणवत्‍ता के बिना शिक्षा निरर्थक साबित होगी। कार्यक्रम में प्रमोद यादव, रामईश्‍वर पंडित, अमरेंद्र पटेल, गौतम आनंद, मनीष कुमार, प्रभात कुमार, अमरज्‍योति कुमार ने आदि ने भी अपने विचार व्‍यक्‍त किये।

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