व्यवसाय, वाणिज्य में महिलाओं को उचित जगह नहीं मिली : कोविंद - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

गुरुवार, 5 अप्रैल 2018

व्यवसाय, वाणिज्य में महिलाओं को उचित जगह नहीं मिली : कोविंद

http://www.uniindia.com/cms/gall_content/2018/4/2018_4$largeimg05_Apr_2018_221929270.jpg
नयी दिल्ली, 05 अप्रैल, राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने आज कहा कि घर और कार्यस्थल के माध्यम से अर्थव्यवस्था में योगदान देने के बावजूद महिलाओं को कारोबार और वाणिज्यिक मामलों में उचित जगह नहीं दी गयी। फिक्की की महिला संगठन (एफएलओ) के 34वें वार्षिक सत्र को सम्बोधित करते हुए श्री कोविंद ने कहा कि भारतीय महिलाएं कार्यस्थल और घर पर विविध तरीकों से काम करके अर्थव्यवस्था में योगदान देती हैं, लेकिन जब बात व्यवसाय और वाणिज्य की आती है तो यह खेदजनक है कि महिलाओं को उनका अधिकार नहीं दिया जाता।  उन्होंने कहा, “हमें ऐसी स्थितियां बनाने की जरूरत है, जहां हमारी अधिक से अधिक बेटियों और बहनों की गिनती श्रम बल में हो। हमें घर पर, समाज में और कार्यस्थल पर उनके लिए उपयुक्त, उत्साहवर्धक और सुरक्षित स्थितियां सुनिश्चित करनी होंगी, ताकि कामकाजी महिलाओं का प्रतिशत बढ़ सके।” राष्ट्रपति ने कहा कि यदि अधिक महिलाएं श्रम बल का हिस्सा बनेंगी तो घरेलू आमदनी और विकास दर दोनों में तेजी आएगी। भारत अधिक समृद्ध राष्ट्र बनेेगा और समाज में और अधिक समानता आएगी। आवश्यकता इस बात की है कि समाज के निचले तबके की बहनों और बेटियों को भी उद्यमिता से अवगत कराया जाये और स्टार्ट-अप से जोड़ा जाये। हाल के महीनों में बैंक धोखाधड़ी की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि विशुद्ध व्यवसाय विफल हो सकता है, लेकिन जब जानबूझकर और आपराधिक तरीके से बैंक ऋण का भुगतान नहीं किया जाता है तो इसका खामियाजा भारतीयों के परिवारों को भुगतना पड़ता है। निर्दोष नागरिक परेशानी में पड़ जाते हैं और अंततः ईमानदार करदाता को इसका बोझ उठाना पड़ता है।  उन्होंने कहा, “यह सराहनीय है कि हमारे देश के निचले स्तर पर- छोटे गांवों और परम्परागत रूप से शोषितों और वंचित समुदायों में मुद्रा उद्यमियों ने अपने ऋणों का भुगतान किया है। 

कोई टिप्पणी नहीं: