बिहार : एक साल बाद भी बागमती परियोजना पर गठित कमिटी ने रिपोर्ट नहीं सौंपी. - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 25 मई 2018

बिहार : एक साल बाद भी बागमती परियोजना पर गठित कमिटी ने रिपोर्ट नहीं सौंपी.

  • नदियों के बीच प्राकृतिक तौर पर स्थापित आंतरिक लिंक को पुनस्र्थापित करने की आवश्यकता.

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पटना 25 मई 2018, दशकों पुरानी बागमती तटबंध परियोजना को लेकर जबरदस्त जनांदोलन के दबाव में पिछले साल बागमती परियोजना के विस्तार को लेकर रिव्यू कमिटी का गठन किया गया था. रिव्यू कमिटी को एक महीेने के भीतर रिपोर्ट देनी थी, लेकिन आज एक साल बीतने का है, इस दिशा में कोई प्रगति नहीं हो सकी. कमिटी के एक्सपटर््स द्वारा सूचना मांगने पर कोई सूचना नहीं दी जा रही है. कमिटी को अब तक कोई संसाधन भी मुहैया नहीं कराया गया. यह जनांदोलनों के प्रति नीतीश सरकार की घोर उदासीनता व लापरवाही को उजागर करता है. 2017 की बाढ़ ने एक बार फिर से हमारी मांगों को उचित ठहराया. क्योंकि बाढ़ से सबसे ज्यादा तटबंध टूटने की घटना बागमती नदी का ही हुआ. बेनीबाद से दरभंगा तक यदि तटबंध बन गए होते तो सबसे बड़ी तबाही होती. हमारी मांग है कि रिव्यू कमिटी को सारे संसाधन अविलंब मुहैया कराए जांए अऔर अध्ययन व जांच प्रक्रिया में तेजी लाई जाए. रिव्यू कमिटी में नदी विशेषज्ञ तथा स्थानीय नागरिकांे की भी सहभागिता सुनिश्चित की जानी चाहिए. उत्तर बिहार की नदियों, परियोजनाओं पर विशेष समीक्षात्मक अध्ययन के लिए आयोग की जरूरत है और साथ ही नदियों के बीच प्राकृतिक तौर पर स्थापित आंतरिक लिंगों को भी पुनस्र्थापित करने की आवश्यकता है.  तटबंध निर्माण को लेकर हमने निम्नलिखित बिंदुओं पर लगातार विरोध व आंदोलन किया है.

1.  पिछले 50-60 वर्षांे में बागमती नदी की संरचना और बहाव में बड़ा परिवर्तन आया है, और इस तरह पुरानी योजना अप्रासंगिक हो गई है। मुफ्फरपुर जिले में जिस बागमती पर तटबंध बनाये जा रहे हंै, उन तटबंधों के दोनो ओर बागमती की कई छारण धाराएं बह रही हंै। इस तरह तटबंध लाभ पहुंचाने के बदले अतिरिक्त परेशानी पैदा करेंगे, क्यांेकि तटबंध के भीतर के लोग भी परेशान होेंगे और बाहर के भी। 
2. जिन इलाकों में तटबंध बन भी गए हंै, वहां भी लोग परेशान है. उन्हें अभी तक पर्याप्त मुआवजा और पुनर्वास नहीं मिला है। 
3. तटबंध के चलते दरभंगा और मुजफ्फरपुर की सैकड़ो बस्तियां उजड़ जाएंगी, और हजारो लोग विस्थापित होंगे। 
4. सीतामढ़ी के जिस इलाके में तटबंध बन गए हंै, वहां जमीन उसर हो गई है और जमीन की उत्पादकता बड़े पैमाने पर प्रभावित हुई है। उपजाऊ इलाके में जंगल उग आए हंै, और पूरा इलाका जंगली जानवरांे का बसेरा बन गया है। 
5. पहले हर साल बागमती बाढ़ के साथ उपजाऊ मिट्टी लाती थी. दोनों फसल अच्छी होती थी, लोग खुशहाल थे, लेकिन जबसे इस नदी को तटबंध के माध्यम से 3 किलोमीटर के दायरे में कैद करने का सिलसिला शुरू हुआ, बाढ़ का विनाशकारी रुप दिखायी पड़ने लगा तथा लोग चास-वास से बेदखल होकर विस्थापितों की जिंदगी जीने को मजबूर हो गये। इतना होने पर भी तटबंध निर्माण कार्य जारी है. इससे मुजफ्फरपुर जिले के करीब 70 गांव डूब क्षेत्र में आ जायेंगे। अन्य जिलों में भी यही दुर्गति है। प्रायः बागमती के तटबंध टूटते हैं, जल प्रलय आता है।
6. एनएच 57 का निर्माण अभी हुआ है, जो प्रस्तावित बांध को बेनीबाद में पार करता है जिस पर बांध की सीमा के भीतर केवल 4 छोटे पुल हंै. इस कारण जो प्रवाह रुकेगा, तटबंधों पर दबाव बढ़ेगा और टूटेगा जिससे जान-माल की भीषण क्षति होगी.
पानी बहाव को समस्तीपुर जिले के हायाघाट में 300 मीटर में समेट दिया गया है, जिसे और आगे कोल्हुआ में 150 मीटर तक सीमित कर दिया गया है। इस वजह से जलजमाव होता है, पानी लंबे समय तक टिकता है और भीषण तबाही मचती है। अगर हायाघाट कोल्हुआ में पानी के बहाव का रास्ता दिया जाए तो बाढ़ की भयावहता खत्म हो जायेगी और बाढ़ वरदान साबित होगी, लाखों लोगों को विस्थापित करने की जरूरत नहीं पड़ेगी.
7. ये गैरजरूरी तटबंध छोटी-छोटी सहायक नदियों के बीच स्थापित प्राकृतिक लिंक को समाप्त कर देंगे। क्यांेकि मुजफ्फरपुर, दरभंगा में बागमती महज एक नदी नहीं, बल्कि नदियों की समूह हैै।

संवाददाता सम्मेलन को अखिल भारतीय खेत व ग्रामीण मजदूर सभा के महासचिव धीरेन्द्र झा, मोर्चा के सयंोजक जितेन्द्र यादव, रामसज्जन राय, मोनाजिर अहसन, नवल किशोर सिंह, जगन्नाथ पासवान, रामलोचन सिंह, विवेक कुमार आदि नेताओं ने संबोधित किया.

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