चातुर्मास : जिज्ञासाओ को शांत करने का सुअवसर है: चातुर्मास : श्रमण डाॅ. पुष्पेन्द्र - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 1 जून 2018

चातुर्मास : जिज्ञासाओ को शांत करने का सुअवसर है: चातुर्मास : श्रमण डाॅ. पुष्पेन्द्र

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चातुर्मास: जैन धर्म में इसे सामूहिक वर्षायोग तथा चातुर्मास के रूप में जाना जाता है.मान्यता है कि बारिश के मौसम के दौरान, अनगिनत कीड़े, कीड़े और छोटे जीव को इन आंखों से नहीं देखा जा सकता है तथा वर्षा के मौसम के दौरान जीवो की उत्त्पति भी सर्वाधिक होती है.चलन-हिलन की ज्यादा क्रियाये इन मासूम जीवो को ज्यादा परेशान करेगी . अन्य प्राणियों को साधुओ के निमित से कम हिंसा हो तथा उन जीवो को ज्यादा अभयदान मिले उसके द्रष्टिगोचर कम से कम तो वे चार महीने के लिए एक गांव या एक ठिकाने में रहने के लिए अर्थात विशेष परिस्थितिओं के अलावा एक ही जगह पर रह कर स्वकल्याण के उद्वेश्य से ज्यादा से ज्यादा स्वाध्याय, संवर, पोषद, प्रतिक्रमण, तप, प्रवचन तथा जिनवाणी के प्रचार-प्रसार को महत्व देते है। यह सर्व विदित ही कि जैन साधुओ का कोई स्थायी ठोर-ठिकाना नहीं होता तथा जन कल्याण की भावना संजोये वे वर्ष भर एक स्थल से दुसरे स्थल तक पैदल चल चल कर श्रावक-श्राविकाओ को अहिंसा, सत्य, ब्रम्हचर्य का विशेष ज्ञान बांटते रहते है तथा पुरे चातुर्मास अर्थात 4 महीने तक एक क्षेत्र की मर्यादा में स्थाई रूप से निवासित रहते हुए जैन दर्शन के अनुसार मौन-साधना, ध्यान, उपवास, स्व अवलोकन की प्रक्रिया, सामयिक ओर प्रतिक्रमण की विशेष साधना, धार्मिक उदबोधन, संस्कार शिविरों से हर शक्श के मन मंदिर में जन-कल्याण की भावना जाग्रत करने का सुप्रयास जारी रहता है.. तीर्थंकरो ओर सिद्ध पुरुषों की जीवनियो से अवगत कराने की प्रक्रिया इस पुरे वर्षावास के दरम्यान निरंतर गतिमान रहती है तथा परिणिति सुश्रवाको तथा सुश्रविकाओ के द्वारा अनगिनत उपकार कार्यो के रूप में होती है। एक सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार पर्युषण पर्व की आराधना भी इसी दौरान होती है..पर्युषण के दिनों में जैनी की गतिविधि विशेष रहती है तथा जो जैनी वर्ष भर या पुरे चार माह तक कतिपय कारणों से जैन दर्शन में ज्यादा समय नहीं प्रदान कर पाते वे इन पर्युषण के 8 दिनों में अवश्य ही रात्रि भोजन का त्याग, ब्रम्हचर्य, ज्यादा स्वाध्याय, मांगलिक प्रवचनों का लाभ तथा साधू-संतो की सेवा में संलिप्त रह कर जीवन सफल करने की मंगल भावना दर्शाते है। चातुर्मास का सही मूल्यांकन श्रावको ओर श्राविकाओ के द्वारा लिए गए स्थायी संकल्पों एवं व्रत प्रत्याखानो से होता है। यह समय आध्यात्मिक क्षेत्र में लगात्तर नई ऊँचाइयों को छुने हेतु प्रेरित करने के लिए है। अध्यात्म जीवन विकास की वह पगडण्डी है जिस पर अग्रसर होकर हम अपने आत्स्वरूप को पहचानने की चेष्टा कर सकते है। साधू-साध्वियो के भरसक सकारात्मक प्रयांसो की बदोलत कई युवा धर्म की ओर उन्मुख होकर नया ज्ञान-ध्यान सीखकर स्वयं के साथ दूसरों के कल्याण की सोच हासिल करते है। कई सुश्रावक-सुश्रविका पारंगत होकर स्वाध्यायी बनकर जिन क्षेत्रो में साधू-साध्वी विचरण नहीं कर रहे है, वहां जाकर स्वाध्याय तथा जन कल्याण की भावना का प्रचार प्रसार कर अपना जीवन संवार लेते है। सेकंडो जिज्ञासाओ को शांत करने का सुअवसर है ,चातुर्मास। स्वधर्मी के कल्याण की अलख जगाता है,चातुर्मास। जीवदया की ओर उन्मुख करता है चातुर्मास। तपस्वी तथा आचार्या भगवन्तो के पावन दर्शन से लाभान्वित होने का मार्ग है चातुर्मास। साहित्य की पुस्तकों से रूबरू होने का जरिया है,चातुर्मास। उपवास से कर्म निर्जरा का सन्मार्ग दिखाता है चातुर्मास। सम्यग ज्ञान ,दर्शन ओर चरित्र की पाटी पढ़ाता है,चातुर्मास। कई धार्मिक शेक्षणिक शिविरों की जन्मदात्री है चातुर्मास। कई राहत कार्यों के आयोजनों का निर्माता है चातुर्मास। जन से जैन बने ,प्रेरणा दाई है चातुर्मास।

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