धर्मांतरित जनजातियों के आरक्षण को खत्म करने का झारखण्ड सरकार का प्रस्ताव बिल्कूल सही है। उचित जाँच के बाद ही जनजाति का जाति प्रमाण पत्र मिले ताकि नकली व अवैध लोगों को आरक्षण से बाहर किया जा सके। सरकार का यह फैसला सराहनीय है, कड़ाई से इसका पालन होना चाहिए। जनजाति सुरक्षा मंच सरकार के इस फैसले का स्वागत करती है और असली जनजाति के साथ हो रहे अन्याय को खत्म करने के लिए सरकार को धन्यवाद देती है।
दुमका (अमरेन्द्र सुमन) परंपरागत सनातन धर्म को छोड़ कर ईसाई या मुस्लिम धर्म अपनाने वाले छद्म व्यक्तियों को जनजातियों के लिये बनी अनूसूचित जनजाति की सूची से बाहर का रास्ता दिखाना आज की परिस्थिति में एक महत्वपूर्ण निर्णय हो गया है। जनजातीय सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय सह संयोजक डॉ राज किशोर हांसदा ने दिन मंगलवार को प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर उपरोक्त बातें कहीं। उन्होंने कहा कि वास्तविक अनुसूचित जनजातियों के साथ हो रहे इस अन्याय को दूर करने के लिए राष्ट्रपति के अनुसूचित जनजाति आदेश 1950 में संशोधन करना आवश्यक है। उन्होंने कहा इस विषय पर संयुक्त संसदीय समिति ने वर्ष 1969 में सिफारिश भी की थी जिसके 2-ए, पारा 2 में कहा गया है कि किसी बात के होते हुए भी, कोई भी व्यक्ति जिसने अपना सनातन जनजाति धर्म छोड़ दिया है और ईसाई या मुस्लिम बन गया है। किसी भी अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं माना जाएगा।’ इस प्रश्न को सर्ववर्ष 1966-67 में जनजातीय नेता स्व. कार्तिक उरांव ने उठाया था। 17 जून 1970 को 235 सांसदों के हस्ताक्षर के से एक विज्ञप्ति भी दी गई थी। 10 नबम्बर 1970 को दिए गए ज्ञापन में यह संख्या बढ़ कर और भी अधिक हो गयी थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को हस्ताक्षर युुक्त सौंपे गए ज्ञापन में राज्यसभा के 26 सदस्ययों का भी हस्ताक्षर था। सांसदों के इतने प्रबल समर्थन व आदिवासी समाज के आक्रोश के बाद श्रीमती गांधी ने जनजातीय समाज को विश्वास दिलाया था कि सरकार समुचित कार्यवाई कर आदिवासियों के साथ हो रहे अन्याय को दूर करेगी, किन्तु बाद में कुछ नहीं हुआ। गिरि वनवासी कल्याण परिषद् केे प्रांतीय संगठन मंत्री राम जी पाल, प्रांतीय कोषााध्यक्ष अमर कुमार गुप्ता, जनजातीय सुरक्षा मंच के पाकुड़ जिलाध्यक्ष सुलेमान मुर्मू, जिला संगठन मंत्री दुमका सुशील मरांडी, नगर समिति सदस्य व प्रेस प्रवक्ता अंजनी शरण की मौजूदगी में जनजातीय सुरक्षा मंच के राष्ट्रीय सह संयोजक डॉ राज किशोर हांसदा ने कहा कि कार्तिक बाबू ने अपने ज्ञापन में स्पष्ट कहा था कि ईसाई बने 10 प्रतिशत कथित आदिवासी आरक्षण सुविधाओं का 70 प्रतिशत लाभ उठा रहे हैं और गरीब, अनपढ़ 90 प्रतिशत आदिवासियों के हिस्से में केबल 30 प्रतिशत भाग बचा है। इस स्थिति में अभी तक कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ है। धर्मांतरित आदिवासियों का प्रतिशत बढ़कर 15-16 प्रतिशत हो गया है। इन तथ्यों की पुष्टि समाज नीति समीक्षण केन्द्र, दिल्ली के द्वारा वर्ष 2010-11 में किए गए शोध कार्य से भी होोता है। उत्तर-पूर्व के राज्यों, छत्तीसगढ़, झारखण्ड व उड़ीसा में हुए इस अध्ययन को देखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि विधानसभा में इस विषय पर हुई चर्चा के बाद स्वयं जनजाति समाज ऐसे मतांतरित जनजाति लोगों को अपने समाज का अंग नहीं मानता। एक वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि धर्म बदलने के बाद कोई व्यक्ति उस जनजाति का सदस्य रहा या नहीं यह इस बात पर निर्भर करता है कि ऐसे व्यक्ति धर्मातरण के बाद भी क्या सामाजिक रूप से अयोग्य-कमजोर है और क्या वे अब भी अपनी पुरानी जाति के रीति रिवाजों व परम्पराओं का पालन कर रहे है ? यह सत्य है कि धर्मातरित अपनी पूर्व जाति में प्रचलित रीति-रिवाजों एवं प्रथाओं का पालन तो बिल्कुल भी नहीं करता। धर्मांतरण के विरुद्ध एक स्पष्ट कानून होना चाहिए जैसा कि अनुसूचित जातियों के मामले में है- धर्मातरण करते ही जाति से बाहर व आरक्षण की सारी सुविधाएं बंद कर देनी चाहिए। अदिवासी में से ईसाई बनने के बाद परम्परागत रूप से गाँव के मुखिया के चुनाव में भाग लेने पर रोक लगाने के मेधालय के एक शासकीय आदेश को गौहाटी उच्च न्यायालय व बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने यह कह कर न्यायोचित व वैद्य ठहराया कि ऐसे मुखिया को परम्परा के अनुसार गाँव के धार्मिक अनुष्ठान व प्रशासनिक दोनों कार्य एक साथ करने पड़ते हैं और एक धर्मातरित ईसाई ऐसा नहीं कर सकता। धर्मातरित ईसाई अदिवासी (जयंतिया हिल्स, मेधालय का वाद 2006, 3 स्केल) अब देश में कहीं भी गाँव का मुखिया नहीं बन सकता। ऐसे लोग अनुसूचित जनजाति व अल्पसंख्यक दोनों के देय सुविधाओं का लाभ उठा रहे हैं जो अनुचित, अनैतिक व संविधान की मूल भावना के विपरित हैं। डाॅ0 हांसदा ने कहा कि नकली आदिवासी बन इसाई लूट रहे हैं हमारा हक। उन्होंने कहा कि धर्मांतरित जनजातियों के आरक्षण को खत्म करने का झारखण्ड सरकार का प्रस्ताव बिल्कूल सही है। उचित जाँच के बाद ही जनजाति का जाति प्रमाण पत्र मिले ताकि नकली व अवैध लोगों को आरक्षण से बाहर किया जा सके। सरकार का यह फैसला सराहनीय है, कड़ाई से इसका पालन होना चाहिए। जनजाति सुरक्षा मंच सरकार के इस फैसले का स्वागत करती है और असली जनजाति के साथ हो रहे अन्याय को खत्म करने के लिए सरकार को धन्यवाद देती है।

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