कम उम्र बच्चियों व युवतियों के साथ बलात्कार की रोज-व-रोज बढ़ती घटनाओं पर झारखण्ड सहित छत्तीसगढ़, हरियाणा, उत्तरप्रदेश व राजस्थान में भले ही फाँसी की सजा के प्रावधान पर विचार चल रहा हो, इस तरह की घटनाएँ किन्तु रुकने का नाम नहीं ले रहीं। खुले शौच में बच्चियों के साथ रेप की बात हो या फिर स्कूल, काॅलेज, हाॅस्पीटल, ट्यूशन, जाने के क्रम में सुनसान स्थान पर। बच्चियाँ हमेशा भय का अनुभव करती हैं। पडोस के अंकल हों या फिर दूर के संबंधी। बड़े भाई के मित्र हों या फिर माता-पिता के परिचित। स्कूल-काॅलेज के शिक्षक हों या फिर काॅस्मेटिक्स व लेडिज गार्मेन्ट्स वाले दूकानदार। जान-पहचान वाले ही प्रायः गंदी निगाहों से बच्चियों / युवतियों को देखते हैं। गार्जियन के घर पर न रहने की अवस्था में चुपचाप कहीं कोई बच्चियों को प्रताड़ना का दस्तक दे जाता है तो कहीं बाजू वाले मकान की खिड़की / बाॅलकनी से बच्चियों / युवतियों की गतिविधियो पर नजरें रखी जाती हैं। टृयूशन पढ़ाने के बहाने कोई ट्यूटर गलत संबंध बनाने का प्रयास करता है तो किसी धार्मिक आयोजन में स्थल तक पहुँचाने के बहाने कोई गंदी निगाह रखता है। काॅस्मेटिक्स व लेडिज गार्मेन्ट्स शाॅप कीपर तक बार-बार किसी बचिचयों/ युवतियों के दूकान पर पहुँचने का इंतजार करते हैं। अधिक मूल्य की वस्तुओं को कम कीमत पर देकर पहले वे उनका विश्वास जीतने का प्रयास करते हैं और फिर बाद में गलत संबंध बनाने का असफल प्रयास। लगातार ऐसी गतिविधियों में शामिल लोग भले ही अपने नापाक इरादों में सफल हो जाते हों, छोटी-छोटी बच्चियों, कम उम्र युवतियों को यह अहसास ही नहीं हो पाता है कि इतनी हमदर्दी के पीछे उनका उद्देश्य क्या है ? साजिशों को जब तक वे समझ पाने मंे समर्थ होती हैं, तब तक वे लूट चुकी होती हैं। आर्थिक व्यवस्था, सामाजिक सरोकार, लोक-लिहाज, बदनामी व भविष्य में शादी-ब्याह न होने की समस्या के भय से ऐसे कुकृत्यों के विरुद्ध खुलकर आवाज उठा पाने में बच्चियाँ खुद को असमर्थ पाती हैं परिणामस्वरुप आरोपियों के हौसले और भी बढ़ जाते हैं। अंततः यह सिलसिला अनवरत जारी रहता है। नापाक चरित्र वाले पड़ोसी अंकल, दूर के रिश्तेदार, माता-पिता के विश्वसनीय पात्र, शिक्षक, ट्यूटर, दूकानदार, मानसिक रुप विक्षिप्त युवाओं के विरुद्ध खुलकर बच्चियों को आगे आने की जरुरत है। शौच के समय छिप-छिप कर युवतियों पर निगाह रखने वालों, रास्ता छेंक कर प्रेम प्रदर्शित करने वालों, टाॅपी, आईसक्रिम व अन्य वस्तुओं के माध्यम से बच्चियों को अपने करीब लाने वालों के विरुद्ध माता-पिता को पूरी जानकारी देने की जरुरत है ताकि समय रहते वे कोई ठोस कदम उठा सकंे।
अमरेन्द्र सुमन
अधिवक्ता व पत्रकार
पिछले ढाई दशक से मुख्य धारा की मीडिया मंे पत्रकारिता। झारखण्ड की सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक व परंपरागत सरोकार से जुड़े मुद्दों पर राष्ट्रीय व क्षेत्रीय पत्र-पत्रिकाओं में समय-असमय रिपोर्ट, आलेख, संस्मरण, यात्रा वृतांत का लेखन।
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