बेगूसराय : श्रावण माह की प्रथम सोमवारी - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 30 जुलाई 2018

बेगूसराय : श्रावण माह की प्रथम सोमवारी

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बेगूसराय (अरुण कुमार) 30 जुलाई, चातुर्मास का प्रथम महीना सावन की प्रथम सोमवारी की आज से श्रीगणेश।आज प्रथम सोमवारी में लाखों की संख्या में बाबा हरिगिरि धाम गढ़पुरा और देवघर (बाबाधाम) में जलाभिषेक के लिये उमड़ी भीड़।यूँ तो जगह जगह पर हिन्दुधर्मावलम्बियों द्वारा शिव पूजन और जलाभिषेक हेतु भीड़ की मनोरम दृश्य देखते ही बनता है।बेगूसराय स्थित नगर के यूँ तो सभी मन्दिरों में भीड़ का अंदाजा लगाना दुर्लभ काराय है,किन्तु कुछ शहर के अतिमान्यता प्राप्त कामना पूरक मंदिरों में श्रद्धालुओं ने प्रातःकाल से ही जलाभिषेक और पूजन करते दृष्ट्य रहे और संध्या समय श्रंगार आरती में भी हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रही।नगर के ये प्रमुख मन्दिर हैं,कालीस्थान चौक का शिव मन्दिर,बाबा टेढ़ीनाथ मन्दिर,बाबा कर्पूरी स्थान मन्दिर।बाबा कर्पूरी स्थान मन्दिर प्राचीन कालिक है इनके महात्म्य कथा भी अजीबो गरीब है।और इनकी महिमा भी अगम अपार है।इसी कड़ी में एक मान्यता प्राप्त मन्दिर जो कि बेगूसराय से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर गढ़पुरा ग्राम स्थित बाबा हरिगिरि धाम है इनकी भी महिमा काफी बढ़-चढ़कर सुनने को मिलता है।ये तय हुई महादेव और उनके प्रिय मास श्रावण और प्रिय दिन सोमवार की बातें,आगे ये भी बताते चलूँ की जलाभिषेक सिर्फ महादेव की ही क्यों?और भी तो कई देवतागण हैं उनका जलाभिषेक क्यों नहीं होता, इस बात पर में ये कहना चाहूँगा की शायद समुद्र मन्थन के समय समुद्र से अन्य वस्तुओं के साथ साथ कालकूट नामक विष से भरा हुआ घड़ा भी निकाला था जिसके तेज से विनाशकारी भयावह स्थिति उतपन्न हो गई थी तो देवाधिदेव महादेव ने ही वह विषपान कर विश्व ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि को त्राण दिलाया था और स्वयं उस हलाहल के प्रभाव से स्वयं स्वयम्भू भी मूर्च्छा में आ गए थे शायद इसी कारण देवाधिदेव महादेव का आज भी जलाभिषेक हो रहा है।जलाभिषेक की तो प्रधानता है इसलिये सकभी जलाभिषेक ही कहते हैं,वैसे महादेव का अभिषेक पञ्चामृत,दूध,दही,घृत,शहद और शर्करा यानी (गुड़) इन पाँचों सामग्रियों से अलग अलग और पाँचों को मिलाकर जब उनका अभिषेक होता है तो उसे पंचामृत अभिषेक कहते हैं।पञ्चामृत स्नानोपरांत शुद्धोदक जल (गंगा जल) से भी अभिषेक होता है। गंगाजल से अभिषेक जब सविध शिववास आदि देखकर जब होता है तो उस वक्त रुद्राष्टाध्यायी का भी पाठ होता है।यह पाठ कम से कम 5/11 या उससे अधिक भी वेदपाठी पण्डितों के द्वारा किया जाता है।रुद्राष्टाध्यायी दरअसल में वेद की ऋचाओं के समन्वय से बना है,रुद्राष्टाध्यायी दो प्रकार के है प्रथम शुक्ल आयुर्वेदीय और द्वितीय कृष्णआयुर्वेदीय ये दोनों अलग अलग गोत्रों के लिये है।शायद सामवेदी ब्राह्मण शुक्ल आयुर्ववेदी रुद्राष्टाध्यायी से अभिषेक कैतव हैं जिसमें गौर,गौतम,शाण्डिल्य आदि गोत्रीय ब्राह्मण होते हैं,ये छान्दोग्य पद्धति से कर्म करने और करवाने वाले ब्राह्मण होते हैं।बाकी कृष्ण आयुर्वेदीय,वाजसनेयी ब्राह्मण हैं जो कृष्ण आयुर्ववेदीय पद्धति से अपना अपना कर्म करते और करवाते हैं। जलाभिक कि चर्चा जो मैंने की है कि देवाधिदेव महादेव हलाहल पान के बाद मूर्छित हो गए जिस कारण से महादेव का जलाभिषेक होता है ये बात मेरी अपनी सोच की उपज है,शास्त्र सम्मत क्या है इससे मैं अनभिज्ञ हूँ अतः त्रुटियों के लिये क्षमा की भी अपेक्षा रखते हुये श्रावण मास की प्रथम सोमवारी जो शिव को प्रिय माह और दिन है कि चर्चा का विषय बनाकर सुधि पाठकों के बीच प्रस्तुत करने की दुःशाहस किया हूँ।जय शिव शंकर।ॐ नमः शिवाय।

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