सेवासदन में भारतीय विवाह संस्था का क्रिटिक - गरिमा श्रीवास्तव - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 31 जुलाई 2018

सेवासदन में भारतीय विवाह संस्था का क्रिटिक - गरिमा श्रीवास्तव

  • हिन्दू कालेज में  प्रेमचंद जयंती 

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दिल्ली (आर्यावर्त डेस्क) 31 जुलाई, । प्रेमचंद समाज की गतिविधियों को शब्द और संवाद ही नहीं देते बल्कि उसमें दखल भी देते हैं। सेवासदन में भारतीय विवाह संस्था का क्रिटिक भी प्रेमचंद बेहतरीन ढंग से प्रस्तुत करते हैं जो सामाजिक कुप्रथाओं के कारण दाम्पत्य में बेड़ी का काम करता है। सेवासदन की नायिका सुमन के द्वारा विद्रोह की कोशिश विवाह संस्था के रूढ़िवादी स्वरूप का नकार है। उक्त विचार सुप्रसिद्ध आलोचक और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हिंदी की आचार्य गरिमा श्रीवास्तव ने हिन्दू कालेज में हिंदी साहित्य सभा के एक कार्यक्रम में व्यक्त किये। 'प्रेमचंद का महत्त्व : संदर्भ सेवासदन'  शीर्षक से हुए इस आयोजन में श्रीवास्तव ने कहा कि जब व्यक्तित्व के स्वतंत्र विकास के अवसर अनुपलब्ध हों तो अनमेल विवाह के शिकार स्त्री पुरुष स्वस्थ समाज के निर्माण में योगदान नहीं कर सकते। 

प्रो श्रीवास्तव ने उर्दू उपन्यासों की परम्परा में लिखे गए उमराव जान और सेवासदन की तुलना करते हुए तत्कालीन सामाजिक- राजनैतिक परिस्थितियों का भी विस्तृत विवरण दिया।  वहीं सेवासदन के मूल उर्दू संस्करण बाजारेहुस्न की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि  बाजारेहुस्न और सेवासदन को आमने सामने रखा जाए तो कुछ दिलचस्प तथ्य हाथ लगते हैं। जहाँ बाजारेहुस्न में सौंदर्य, यौवन, राग, वासना, इच्छा न जाने कितनी अर्थ ध्वनियाँ समाहित हैं, उसकी  तर्जुमे को वे सेवासदन यानी सेवा का घर बना देते हैं। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद का समय बौद्धिक संक्रमण से प्रभावित है जिसमें औपनिवेशिक  समाज बनाम परम्परागत भारतीय समाज, पम्परा बनाम आधुनिकता की टकराहटें और अंतर्विरोध सामने आ रहे थे जो वस्तुत: ऐतिहासिक प्रक्रिया का ही हिस्सा है।   

रचना पाठ के बाद युवा विद्यार्थियों से सवाल -जवाब सत्र में एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि प्रेमचंद जब समाज सुधार पर बात करते हैं तब उनका ध्यान बराबर इस बात पर रहता है कि पाठकों के संस्कारों को कहीं भी चोट न पहुंचे। यही वजह है कि सुमन सेवासदन में वे सारे कार्य करती दिखाई देती है जिनसे प्रतीत होता है कि मानो वह अपने पतित होने का प्रायश्चित कर रही हो। इससे पहले संयोजन कर रहे विभाग के अध्यापक डॉ पल्लव ने आयोजन के विषय की प्रस्तावना रखी। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद की रचनाएं आज भी पढ़ी जा रही हैं तो इसका कारण प्रेमचंद का अपने युग के विभिन्न द्वद्वों से टकराकर रचनाकर्म करना है। विभाग के सह आचार्य डॉ हरींद्र कुमार ने प्रो गरिमा श्रीवास्तव का परिचय दिया तथा उनके साथ हिन्दू कालेज में अपनी पढ़ाई के दिनों के संस्मरण सुनाए।  विभाग की प्रभारी डॉ रचना सिंह ने श्रीवास्तव का स्वागत किया। कार्यक्रम में विभाग के अध्यापक डॉ बिमलेन्दु तीर्थंकर सहित अनेक विद्यार्थी तथा शोधार्थी उपस्थित थे। विभाग के वरिष्ठ अध्यापक डॉ रामेश्वर राय ने पुस्तकें तथा डॉ विजया स्ति ने स्मृति चिन्ह भेंट कर श्रीवास्तव का अभिनन्दन किया। अंत में एम ए उत्तरार्ध के छात्र आशीष द्विवेदी ने सभी का आभार व्यक्त किया। 

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