बिहार : नीतीश कुमार अविलंब ऐक्शन टेकेन रिपोर्ट पेश करें, वरना इस्तीफा दो - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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गुरुवार, 9 अगस्त 2018

बिहार : नीतीश कुमार अविलंब ऐक्शन टेकेन रिपोर्ट पेश करें, वरना इस्तीफा दो

  • समाज कल्याण की आड़ में बच्चे-बच्चियों और महिलाओं का संस्थाबद्ध शोषण व आर्थिक भ्रष्टाचार.
  • नीतीश कुमार न केवल अवसरवादी राजनीति के पलटू राम बल्कि बिहार की बर्बादी के असली इंजीनियर.
  • बर्बर व संस्थाबद्ध अन्याय के खिलाफ छात्र-छात्राओं व न्यायपसंद नागरिकों से बड़े आंदोलन का आह्वान.
  • भाजपा बराबर की दोषी, बीजेपी शासित राज्यों में भी शेल्टर होम का यही हाल.
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पटना (आर्यावर्त डेस्क) 9 अगस्त, मुजफ्फरपुर बालिका गृह मामले में समाज कल्याण मंत्री मंजू वर्मा का इस्तीफा और बालिका गृह के संचालक ब्रजेश ठाकुर सहित कुछ अन्य लोगों की गिरफ्तारी बेहद नाकाफी है. टीआईएसएस (टिस) की रिपोर्ट ने बेहद भयावह तस्वीर पेश की है. अब और भी भयावह रिपोर्टें मिल रहीं हैं जो साबित करती हैं कि भाजपा-जदयू राज्य में समाज कल्याण की आड़ में बच्चे-बच्चियों व महिलाओं के संस्थाबद्ध यौन शोषण-उत्पीड़न और बड़े स्तर पर आर्थिक भ्रष्टाचार को अंजाम दिया गया. मुजफ्फरपुर बालिका गृह में 2013 में 500 लड़कियां रजिस्टर्ड थीं लेकिन टीआईएसएस की रिपोर्ट में केवल 49 लड़कियां दिखलाई गईं. 28 मई को शिफ्टिंग के समय महज 44 लड़कियों की रिपोर्ट आई. बाकि 450 लड़कियों का क्या हुआ, इसकी कोई रिपोर्ट नहीं है. यदि सरकार ने इन लड़कियों का पुनर्वास कराया है, तो उसकी रिपोर्ट जारी करे. मुजफ्फरपुर बालिका गृह के अलावा टीआईएसएस की रिपोर्ट में पटना, मोतिहारी, भागलपुर, कैमूर, मंुगेर, गया आदि अल्पावास गृहों की बेहद दयनीय हालत को उजागर किया गया है. सरकारी व गैर सरकारी दत्तक ग्रहण एजेंसियां - नारी गुंजन-(पटना), आर वी सेक-मधुबनी, ज्ञान भारती-कैमूर के हालात बेहद खतरनाक बताए गए हैं. इसलिए इस मामले की संपूर्णता में और पूरी गंभीरता से जांच होनी चाहिए. 

सरकार टिस की रिपोर्ट पर अपनी पीठ यह कहकर थपथपा रही है कि सोशल आॅडिट का कार्य उसकी ही पहलकदमी पर हुई. सरकारी अधिकारी भी टिस की रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर कोई शक नहीं खड़ा कर रहे हैं. तब सवाल यह है कि सरकार टिस की रिपोर्ट पर कार्रवाई क्या कर रही है? दरअसल कमिटियों की रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डालने का नीतीश सरकार का पुराना रिकार्ड रहा है. सत्ता में आते ही नीतीश कुमार की सरकार ने अमीरदास आयोग को ठीक उस वक्त भंग किया था जब वह अपनी रिपोर्ट सौंपने वाली थी. अपने ही द्वारा बनाए गए समान शिक्षा स्कूल प्रणाली और भूमि सुधार आयोग की सिफारिशों को नीतीश सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया. टिस की रिपोर्ट के साथ भी वह यही करना चाहती है. हमारी मांग है कि सरकार टिस की रिपोर्ट सार्वजनिक करे और अपनी कार्रवाई बताए. इसके पहले भी डीका बलात्कार कांड ने कस्तूरबा व अन्य छात्रावासों की बेहद दयनीय स्थिति को उजागर किया था. हाल के दिनों में सारण, गया आदि जगहों पर भी सामूहिक बलात्कार की संगीन घटनाएं घटित हुईं. ऐसा लगता है कि आज बिहार महिला उत्पीड़न का केंद्र बन गया है. नीतीश कुमार सरकारी प्रचार में बच्चों के इस्तेमाल में तनिक नहीं झिझकते लेकिन इन भयावह मसलों पर लंबे समय तक चुप्पी साधे रखते हैं.

सुशासन, विकास, महिला सशक्तीकरण, सामाजिक न्याय इत्यादि नीतीश कुमार के मुहावरे रहे हैं लेकिन पिछले 15 वर्षों में बिहार में एक नए किस्म का माफियातंत्र विकसित हुआ है जिसके तहत सरकारी संसाधनों की संस्थागत लूट व उत्पीड़न अनवरत जारी है. गैर सरकारी संगठनों को सरकार में भागीदार बनाने की नीतीश सरकार की नीतियों ने बालिका गृहों को सेक्स रैकेट व चाइल्ड एब्यूज का केदं्र बना दिया है. इन्हीं नीतियों ने सृजन घोटाले, मनरेगा लूट और जीविका-शिक्षा-शौचालय-दवा आदि घोटालों को जन्म दिया. मनोरमा देवी से लेकर ब्रजेश ठाकुर इसी नए माफियातंत्र की उपज हैं. एक तरफ माफियाओं की चांदी है तो दूसरी ओर शराबबंदी की आड़ में डेढ़ लाख से अधिक दलित-गरीबों को जेल में बंद कर दिया गया है. सरकार का  पाखंड आज पूरी तरह उजागर है. मानव संसाधन से लेकर आधारभूत संरचनाओं में व्यापत इस संस्थाबद्ध भ्रष्टाचार को आज साफ-साफ तौर पर देखा जा सकता है.  इस तरह विगत 15 वर्षों से बिहार में एक नेता-अफसर-माफिया गिरोह का ऐसा तंत्र विकसित हुआ है, जिसके अधीन संस्थाबद्ध यौन उत्पीड़न, घोटाला व दमन-उत्पीड़न का राज बदस्तूर जारी है. 2015 के जनादेश से तो नीतीश कुमार ने विश्वासघात किया ही अपने एजेंडों से भी पूरी तरह विश्वासघात किया है. नीतीश कुमार न केवल अवसरवादी राजनीति के पलटू राम हैं बल्कि बिहार के विनाश के असली इंजीनियर हैं. 

बिहार में इस संस्थाबद्ध भ्रष्टाचार, दमन-उत्पीड़न में भाजपा बराबर की भागीदार है. मुजफ्फरपुर में स्वाधार गृह योजना तो केंद्र सरकार के अधीन है, वहां से भी 11 महिलाएं विगत कई दिनों से गायब है. बीजेपी शासित राज्य उत्तरप्रदेश के देवरिया व अन्य राज्यों के भी शेल्टरों की ऐसी ही भयावह तस्वीर सामने आ रही है. कठुआ, उन्नाव आदि बलात्कार मामले में तो हमने देखा ही कि भाजपा व आरएसएस के लोग किस निर्लज्जता से बलात्कारियों के पक्ष में खड़े हुए. भाजपा के बेटी बचाओ के नारे की असलियत खुल चुकी है. भाजपा राज में महिलाएं बेहद असुरक्षित हैं. हम इस शोषण व दमन-उत्पीड़न के खिलाफ 2 अगस्त को वाम दलों द्वारा आहूत बिहार बंद की ऐतिहासिक सफलता पर बिहार की जनता को धन्यवाद देते हैं. यह उनके संघर्षों का ही नतीजा है कि आज इस विषय पर एक देशव्यापी प्रतिरोध उठ खड़ा हुआ है. हम बिहार के छात्र-छात्राओं व न्यायपसंद नागरिकों से इस संस्थाबद्ध अन्याय के खिलाफ एक बड़े आंदोलन के निर्माण का आह्वान करते हैं.  बिहार के मुख्यमंत्री से हमारी मांग है कि वे अविलंब टिस रिपोर्ट के आलोक में ऐक्शन टेकेन रिपोर्ट बिहार की जनता के समक्ष प्रस्तुत करें, वरना अपने पद से इस्तीफा दें.

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