विजय सिंह ,आर्यावर्त डेस्क, 26 सितम्बर,2018,खरी खोटी कुर्सी चाहिए पर कुर्सी की जिम्मेदारी,कुर्सी की ताकत नहीं मालूम. बिहार उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने गया में सार्वजनिक रूप से बिहार के अपराधियों से हाथ जोड़कर पितृ पक्ष तक अपराध नहीं करने की अपील की है. हद हो गयी .राज्य की जनता को सुरक्षित वातावरण देने की "नैतिक" जिम्मेदारी सँभालने वाला उप मुख्यमंत्री यदि अपराधियों से यह कहे कि १५ दिन अपराध न करो,बाकि तो आप सुनते नहीं हैं , अव्वल दर्जे की बेशर्मी है. इससे ज्यादा घृणित बयान किसी जिम्मेदारी के पद पर बैठे व्यक्ति की और क्या हो सकती है ,जो अपनी जिम्मेदारी तो दूर पद की गरिमा और ताकत भी न जानता हो. कहाँ बिहारवासियों ने इन्हें भविष्य के सुनहरे सपनों के लिए चुना था ,कहाँ यह लाचार उप मुख्यमंत्री अपनी ही दशा पर आंसू बहाने को बेबस दिख रहा है. जाहिर है उप मुख्यमंत्री ने पूरे तंत्र को अपराधियों के समक्ष बेबस कर दिया है.घुटने न सिर्फ उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने टेके वरन पूरी व्यवस्था को अपराधियों के सामने उन्होंने एड़ी रगड़ने पर मजबूर कर दिया है.इतना मजबूर तो शायद पुलिस का कोई आम सिपाही भी न हो जितना उपमुख्यमंत्री दिख रहे हैं. भाषण देते समय ,अपराधियों से विनती करते समय चेहरे पर "दीनता" स्पष्ट नजर आ रही थी. कुर्सी और वोट बैंक ने ऐसे नेताओं को बेबस बना दिया है. सोचिये आम जन तो आम जन, अपराधियों से लड़ने वाले राज्य के ईमानदार पुलिस सिपाहियों के जज्बात को कितनी ठेस लगी होगी जिन पर अपराध पर लगाम लगाने की जिम्मेदारी है ,जो विभिन्न परिस्थितियों में अपराधियों से लड़ते है. सुशील मोदी का यह बयान राजनीति में अपराधियों के बढ़ते "प्रभुत्व" का "नायब" उदाहरण कहा जा सकता है. इसे बेशर्मी कहें,लाचारी कहें,कूटनीति कहें,समर्पण कहें,कुंठा कहें, सुशासन कहें या अपराध का राज कहें,यह मैं बिहारवासियों के विवेक पर छोड़ता हूँ.
बुधवार, 26 सितंबर 2018
सम्पादकीय : लाचार डिप्टी सीएम,बेबस तंत्र
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