बिहार : इंटरनेट साथी कार्यक्रम में शिष्य बनकर गई और आज गुरू बन गयीं - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 3 सितंबर 2018

बिहार : इंटरनेट साथी कार्यक्रम में शिष्य बनकर गई और आज गुरू बन गयीं

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कटोरिया: आजकल इंटरनेट साथी की चर्चा जोरशोर से है.हां महानगरों की तरह ही इंटरनेट को ग्रामीण क्षेत्र में ले जाने का श्रेय प्रगति ग्रामीण विकास समिति को जाता है.समिति के सचिव प्रदीप प्रियदर्शी ने अथक परिश्रम करके टाटा ट्रस्ट , गूगल एवं फिया फाउंडेशन से सपोर्ट प्राप्त करके कार्यक्रम को सुचारू रूप से संचालन करवाने में कामयाब हो पा रहे है. बांका जिले के कटोरिया प्रखंड के भोसार गांव में रहते हैं घनश्याम चौधरी और ललिता देवी. इनकी सुपुत्री हैं सदभावना सत्यार्थी.इनका जन्म 23 अगस्त 1999 को हुआ. उनके एक भाई और एक बहन भी हैं.माता- पिता खेतिहर मजदूर हैं. अनुसूचित जाति के कलवार जाति के मजदूर दम्पति हैं.दोनों मिलकर किसी तरह से बेटी को मैट्रिक तक पढ़ा दिए. रूढ़ीवादी मानसिकता वाली सोच को ढोने वाले गरीब परिवार ने सदभावना नामक लड़की बच्ची को उच्चतर पढ़ाई करने पर रोक लगा दी. फिलवक्त प्रगति ग्रामीण विकास समिति के द्वारा बांका जिले के कटोरिया प्रखंड में इंटरनेट साथी का कार्यक्रम संचालित है। माता-पिता से सदभावना ने आग्रह किया कि साथियों के साथ इंटरनेट सीखने दे.सत्य के साथ निवेदन करने पर माता-पिता मान गए.और वह वहां  शिष्य बनकर गई और आज इंटरनेट साथी की गुरू बन गयीं. अब तो इंटरनेट गुरू सदभावना सत्यार्थी गूगल सर्च करके ऐप खोल लेती हैं. गूगल के समुन्द्री तल से   मनपसंद डिजाईन खोज लाती हैं.अव्वल सदभावना ने पारिवारिक गरीबी दूर करने का साधन ढूढ़ा. मेंहदी डिजाईन को आजीविका से जोड़ा.नयना विराम मेंहदी डिजाईन को हाथों में उतारने लगी.करतब करने के एवज में प्रति डिजाईन 10 से 15 रूपए लेने लगी.प्रत्येक दिन से 100 से 150 रू.कमा लेती हैं. सदभावना कहती हैं कि आगे की पढ़ाई शुरू करेंगी.अभी अंग्रेजी सीख रही हैं.अपने भाई-बहन को पढ़ा रही हैं.

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