पीएम मोदी की काशी में मौजूदगी। साथ में जन्मदिन मनाने व बदले में इकठ्ठे 557 करोड़ की विकास परियोजनाओं का रिटर्न गिफ्ट। खासकर तब जब सरकार से लेकर विपक्ष तक हर कोई लोकसभा चुनाव 2019 के उधेड़बुन में लगा हो तो इसके राजनीतिक मायने भी निकाले ही जायेंगे। माना जा रहा है मोदी का काशीवासियों संग जन्मदिन मनाना तो एक बहाना है, मकसद इसके जरिए पूरे पूर्वांचल या यूं कहे यूपी को साधना है। क्योंकि देश की सत्ता का रास्ता यूपी से होकर जाता है और यूपी को जीतने के लिए पूर्वांचल को जीतना जरूरी है। क्योंकि पूर्वांचल की 34 सीटे मायने रखती है। और इसी फॉर्मूले से बीजेपी 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में यूपी से सबसे ज्यादा सीटें हासिल कर सत्ता में विराजमान हुई थी। अब 2019 की जंग फतह करने के लिए फिर मिशन पूर्वांचल पर मोदी ने अपनी निगाहें जमा दी हैं
वैसे भी 2019 लोकसभा चुनाव के मद्देनजर पीएम नरेंद्र मोदी ने पहले से ही यूपी के दौरों की संख्या बढ़ा दी है। क्योंकि मोदी टीम को पता है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी से विपक्ष को सुपड़ा साफ किया गया था। आरएसएस की भी फीडबैक यही है कि एक बार 2014 की तर्ज पर मोदी को मैदान में उतार कर यूपी खासकर पूर्वांचल की सीटों को जीता जा सकता है। क्योंकि पिछली बार भी वाराणसी से बिहार तक के चुनावी नतीजों पर इसका असर पडा था। आजमगढ़ पूर्वांचल की इकलौती सीट थी, जहां बीजेपी नहीं जीत सकी थी। बाकी पूर्वांचल की सभी लोकसभा सीटें बीजेपी के खाते में गई थीं। मतलब साफ है मोदी ने यूं ही काशी में बर्थडे केक नहीं काटा है बल्कि 2019 की चुनावी ब्लूप्रिंट का खाका खींचा है। क्योंकि मोदी को पता है कि यदि काशी सध गया तो सबसे ज्यादा सीटों वाला यूपी सध जाएगा और यूपी सध गया तो पूरा देश सध ही जाएगा। यही वजह है कि पीएम मोदी एक - दो नहीं बल्कि अपने संसदीय क्षेत्र में पूरे 15 बार दौरा कर चुके हैं। अब तक 30,000 करोड से भी अधिक की परियोजनों की सौगात दी है। अपने जन्मदिन पर 500 करोड़ से भी अधिक का रिर्टन गिफ्ट देने को इसी कड़ी से जोड़कर देखा जा रहा है।
दो दिवसीय दौरे पर आएं मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत भी भोजपुरी भाषा में कर न सिर्फ काशीवासियों का दिल जीता, बल्कि ’हर हर महादेव’ का उद्घोष कर उन्हें अपना मालिक और हाईकमान बताकर तय कर दिया कि वे ही आपके सच्चे सेवक है। पिछले चार सालों में काशी में जो दिख रहा है, वो मेरे काम की छोटी झलक है। मेरी मंशा है कि काशी पूर्वी भरत का गेटवे बनें। वे चाहते है ’जो विदेशी काशी आएं, वो जहां जाएं काशी की तारीफ करते नजर आएं।’ इस कवायद से न सिर्फ पूर्वी भारत के विकास की इबारत लिखी जाएगी बल्कि इस क्षेत्र पर भाजपा की कमजोर पकड़ को भी मजबूत किया जाएगा। कहा जा सकता है मोदी काशी को हरा भरा कर बिहार-बंगाल से लिए उत्तर-पूर्व तक भगवा विजय पताका फहराने की फिराक में है। इसकी बड़ी वजह यह है कि बीएचयू में इन प्रांतों के छात्रों और शिक्षकों की अच्छी संख्या भी है। गौर करने वाली बात यह है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने यही रणनीति अपनाई और पीएम नरेंद्र मोदी ने चुनाव प्रचार के आखिरी के तीन दिन वाराणसी में रहकर विपक्ष को धराशायी कर दिया था। अब एक बार फिर मोदी ने 2019 फतह करने के लिए काशी को अपना रणक्षेत्र बनाने की कवायद शुरू कर दी है। खासकर तब जब मोदी को सत्ता में आने से रोकने के लिए यूपी में विपक्षी दल एकजुट हो रहे हैं। पूर्वांचल के गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में सपा-बसपा की एकता से बीजेपी चारों खाने चित हो गई थी। इसके बाद विपक्ष की एकता की ताकत की अजमाइश पश्चिम यूपी के कैराना में भी दिखी, जहां आरएलडी ने बीजेपी को शिकस्त दी। उपचुनाव में मिले जीत के फॉर्मूले से उत्साहित सपा, बसपा और कांग्रेस 2019 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन बनाकर उतरने का मन बना रहे हैं। तीनों दलों के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर मंथन जारी है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव तो बीजेपी को रोकने के लिए हर समझौता करने को तैयार है। सच यह भी है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में विपक्ष महागठबंधन बनाकर उतरता है, तो बीजेपी के लिए 2014 जैसे नतीजे दोहराना आसान नहीं होगा। काशी जैसी लोकसभा सीट छोड़ दें तो पूर्वांचल की ज्यादातर सीटें बीजेपी के हाथों से निकल सकती हैं। बीजेपी के हाथों से पूर्वांचल खिसका तो फिर देश की सत्ता तक पहुंचना मुश्किल हो जाएगा। यूपी के बदले सियासी मिजाज के तहत बीजेपी के लिए पूर्वांचल को साधना काफी अहम हो गया है। शायद यही वजह है कि पीएम मोदी काशी में अपना जन्मदिवस मनाने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
बीजेपी पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुकाबले पूर्वी उत्तर प्रदेश पर ज्यादा फोकस कर रहे हैं। अपने जन्मदिन पर 557 करोड़ वाली विभिन्न योजनाओं का लोकापर्ण कर पीएम मोदी ने पूर्वांचल में मिशन-2019 का तानाबाना काशी से बुनने का आगाज कर दिया है। इससे पहले मुलायम के गढ़ आजमगढ़ में उत्तर प्रदेश सरकार की सबसे बड़ी परियोजना पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे की नींव रखी थी। ये देश का सबसे बड़ा एक्सप्रेस-वे होगा। पूर्वांचल एक्सप्रेस-वे गोरखपुर इलाहाबाद और बुंदेलखंड के लिंक एक्सप्रेस वे से भी जुड़ेगा। मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र में अब तक हुए और हो रहे कार्यो की लंबी फेहरिस्त को रिपोर्ट कार्ड के तौर पर पेश करते हुए मानों लोकसभा चुनाव 2019 के लिए देश के सभी सांसदों की जवाबदेही भी तय कर दी है। अब सभी सांसदों के लिए यह एक चुनौती होगी कि वे भी अपने-अपने संसदीय क्षेत्र की जनता के समक्ष मोदी की तरह रूबरू होकर अब तक कराए गए कार्यो का लेखाजोखा प्रस्तुत करें। इस कवायद में जो भी कमजोर पड़ेगा वह मतदाताओं की कसौटी पर अगले चुनाव में निःसंदेह परखा भी जाएगा। बता दें, काशी को इतिहास और परंपराओं से भी प्राचीन कहा जाता है। कला, संस्कृति और धर्म के अद्भुत संगम के चलते काशी हजारों साल से देश का सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्र रहा है। यही वजह है कि काशी से निकला संदेश पूरे देश और खासकर उत्तर भारत में काफी महत्व रखता है। मोदी ही क्या आरएसएस भी इस बात को समझती है। शायद इसलिए मोर्दी और पार्टी दोनों के लिए काशी महत्वपूर्ण है। मोदी काशी ही नहीं पूरे पूर्वांचल को हरा भरा कर देना चाहते है। अकेले काशी में ही वर्तमान में विकास की तकरीबन 24000 करोड़ की परियोजनाएं चल रहीं हैं। साथ ही हृदय योजना के तहत यहां की धरोहरों, ऐतिहासिक स्मारकों के संरक्षण और संवर्धन का काम भी तेजी से चल रहा है। बड़ा लालपुर में दीन दयाल हस्तकला संकुल यानि ट्रेड फैसिलिटी सेंटर खोला गया। इसके जरिए बुनकरों का माल खरीदने की व्यवस्था है, ताकि उनका माल सही समय पर सही जगह पहुंच सके। उनकी आमदनी बढ़े। साथ ही यह सेंटर लोगों के साथ विश्व में भी काशी क्षेत्र के हैण्डलूम और हस्तशिल्प के बारे में जानकारी देगा और इसकी संस्कृति भी संजोए रखेगा।
पीएम मोदी की एक और जिद है कि काशी दुनिया का सबसे स्वच्छ शहर बने। जिसके पीछे सोच है कि यदि शहर स्वच्छ रहेगा तो पर्यटन के लिहाज से सैलानियों का आकर्षण बढ़ेगा और पर्यटन उद्योग भी फलेगा फूलेगा। इसी लिहाज से प्रधानमंत्री ने राष्ट्रव्यापी स्वच्छता अभियान का आगाज काशी से किया। अस्सी घाट पर बाढ़ की मिट्टी से पटी सीढ़ियों पर नरेंद्र मोदी ने खुद फावड़ा चलाया था। जगन्नाथ मंदिर की गली में झाड़ू लगाई। नगर निगम और वाराणसी प्रशासन ने इस अभियान को गंभीरता से लिया। जिसकी वजह से वाराणसी शहर का नाम 2018 में देश के सबसे स्वच्छ शहरों की सूची में 29वें स्थान पर पहुंच गया। सूबे में राजधानी लखनऊ को पीछे छोड़ते हुए पहले स्थान पर। जबकि साल 2016 में काशी की रैकिंग 65वें स्थान पर थी। प्रधानमंत्री मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट ऊर्जा गंगा की शुरुआत 2017 में हुई। जिसके तहत गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (गेल) ने डीजल रेल कारखाना (डीरेका) परिसर में पीएनजी पाइपलाइन बिछाने का कार्य शुरू कर दिया। वाराणसी में ऊर्जा गंगा प्रोजेक्ट के तहत 1000 करोड़ रुपये खर्च होने हैं जिससे बीएचयू और डीरेका परिसर के एक हजार घर पीएनजी पाइपलाइन से जुड़ जाएंगे। आईपीडीएस परियोजना ने शहर में लटकते बिजली के तारों और उनके घने जाल को गायब करना शुरू कर दिया है। पीएम ने आईपीडीएस की सौगात दी तो शहर की कई कॉलोनियों और मुहल्लों में बिजली के तार भूमिगत हो गए, अब पूरे शहर में यह कवायद बढ़ चली है। लेकिन गलियों के शहर बनारस में लटकते बिजली के तारों को भूमिगत करना एक बड़ी चुनौती है। गंगा में इलाहाबाद से हल्दिया के बीच शुरू होने वाली जल परिवहन योजना में काशी को कार्गो हब के तौर पर विकसित करने का काम किया जा रहा है। जिसके लिए रामनगर में मल्टी मॉडल टर्मिनल बन रहा है जिसे अब कार्गो हब के रूप में विस्तार दिया जा रहा है। इस टर्मिनल में कार्गो के अलावा कोल्ड स्टोरेज, बेवरेज हाउस और पैकिंग की सुविधा होगी। हब बन जाने के बाद देश के कोने कोने से उत्पाद रेल, रोड और जलमार्ग से काशी पहुंचेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि मुझे गंगा मां ने बुलाया है। लिहाजा गंगा की स्वच्छता को लेकर पीएम मोदी की संवेदना जगजाहिर है। मोदी सरकार में इसके लिए अलग से मंत्रालय का गठन किया गया। यह अलग बात है कि इस योजना के चार साल बाद भी उनके संसदीय क्षेत्र वाराणसी में गंगा नदी में प्रदूषण पहले की तुलना में बढ़ गया है। गंगा की दशा जस की तस है। हां, सौंदर्यीकरण के नाम पर घाटों पर रंग बिरंगी लाइटे जरुर लगा दी गईं लेकिन गंगा सिर्फ घाट नहीं है। गंगा को निर्मल करने के लिए इसका अविरल होना जरूरी है।
--सुरेश गांधी--
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