बिहार : बीजेपी को रोकने के लिए नई राजनीतिक समझदारी की आवश्यकता: दीपंकर भट्टाचार्य - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 5 सितंबर 2018

बिहार : बीजेपी को रोकने के लिए नई राजनीतिक समझदारी की आवश्यकता: दीपंकर भट्टाचार्य

वाम दलों व राजद की एकता से बिहार में राजनीति के बनेंगे नए समीकरण. फासीवाद के खिलाफ संघर्ष और वैकल्पिक राजनीति के सवाल पर आइएमए हाॅल में संगोष्ठी, सामाजिक कार्यकर्ता प्रेम कुमार मणि, अर्थशास्त्री डीएम दिवाकर सहित पटना शहर के कई बुद्धिजीवी हुए शामिल., गौरी लंकेश की शहादत की पहली बरसी पर दी गई श्रद्धांजलि
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पटना 5 सितंबर 2018, आॅल इंडिया पीपुल्स फोरम की ओर से आज पटना के आइएमए हाॅल में आयोजित ‘फासीवाद के खिलाफ संघर्ष और वैकल्पिक राजनीतिक के सवाल’ पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित करते हुए माले महासचिव काॅ. दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि भाजपा को रोकने के लिए नई राजनीतिक समझदारी की जरूरत है. पुराने तरीके से मोदी के नेतृत्व में चल रहे फासीवादी उभार को परास्त नहीं किया जा सकता है. 74 छात्र आंदोलन का दौर समाप्त हो चुका है. उसके आधे लोग तो आज भाजपा के ही साथ हैं. आज की तानाशाही का चरित्र व दायरा बिलकुल अलग है. इसलिए भाजपा को पीछे धकेलने और 2019 के चुनाव में शिकस्त देने के लिए हम सबको नए तरीके से सोचना होगा. उन्होंने कहा कि 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ एक मोर्चा बना था, लेकिन उसका क्या हुआ? हमने देखा कि बीच रास्ते में ही नीतीश कुमार ने खेमा बदल लिया और चोर दरवाजे से भाजपा को बिहार की सत्ता में ले आए. एक बात तो उसी दिन स्पष्ट हो गई कि अवसरवादी गठबंधनों से तो भाजपा को कुछ भी नहीं बिगाड़ा जा सकता है. आज भी कुछ लोग इसी प्रकार का अवसरवादी गठबंधन बनाने की चाहत रखते हैं. समय देखकर दल-बदल में विश्वास रखते हैं. ऐसा अवसरवादी गठबंधन कभी विकल्प नहीं हो सकता है.

 भाजपा के खिलाफ कारगर तरीके से लड़ने वाली ताकतों को साथ लिए बिना उसेे पीछे धकेलना असंभव है. लाल झंडे के ही लोग भाजपा विरोधी अभियान के चैंपियन हैं. आज उन्हीं पर सबसे ज्यादा हमले भी हो रहे हैं. इसलिए आज एक नए समीकरण की आवश्यकता महसूस हो रही है. हम चाहते हैं कि भाजपा के खिलाफ एक बड़ी एकता हो. वाम दलों और राजद में एकता होती है तो निसंदेह वह बिहार की राजनीति में एक नया रंग लाएगा. लेकिन यह एकता केवल एक पक्ष की नहीं हो सकती है, दूसरे पक्ष को भी इसपर गंभीरता से सोचना चाहिए. एकता सम्मानजनक ही होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि आज मोदीशासन का फासीवादी चरित्र साफ तौर पर दिख रहा है. हम भगत सिंह और अंबेदकर के रास्ते चलकर ही इस देश में लोकतंत्र की हिफाजत कर सकते हैं. हमारे लिए संविधान एक औजार है और इसके जरिए हम फासीवाद की ताकतों को पीछे धकेल सकते हैं. संगोष्ठी को संबोधित करते हुए प्रेम कुमार मणि ने कहा कि देश आपातकाल के दौर से गुजर रहा है. यह सही है कि इसकी घोषणा नहीं हुई है लेकिन इंदिरा आपातकाल के दौर की तुलना मेें देश कहीं अधिक भयावह दौर से गुजर रहा है. संविधान व कानूनी प्रक्रियाओं को दरकिनार करके सरकारों ने भीड़ को ताकत प्रदान कर दी है. आज जगह-जगह आम लोगों की भीड़ द्वारा हत्या की जा रही है. तर्क व विरोध करने वाले लोगों की हत्या कर दी जा रही है. बोलने पर पाबंदी लगा दी गई है. अर्थशास्त्री डीएम दिवाकर ने कहा कि मोदी राज में एक पर एक संगठित घोटाले हुए. नोटबंदी इस सदी का सबसे बड़ा घोटाला है. यह एक प्रकार की तानाशाही है. लोगों के जीवन-जीविका को तहस-नहस कर दिया गया है. विरोधी विचारों को कुचलने की हर संभव कोशिश हो रही है. लेकिन फासीवाद की ताकतें जिस गति से लोगों पर हमला कर रही है, प्रतिरोध की आवाज भी उतनी ही प्रमुखता से उभरकर सामने आ रही है. यह अच्छी बात है. संगोष्ठी के आरंभ के पहले कन्नड़ की प्रख्यात लेखिका व पत्रकार गौरी लंकेश की शहादत पर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई. उनके हत्यारों को अविलंब गिरफ्तार करने की मांग की गई. साथ ही उम्मीद व्यक्त की गई कि 6 सितंबर को अपनी सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट सभी गिरफ्तार 5मानवाधिकार कार्यकर्ता, वकील व पत्रकारों को रिहा कर दिया जाएगा. संगोष्ठी की अध्यक्षता राजाराम ने की जबकि संचालन एआईपीएफ के संतोष सहर ने की. इस मौके पर अखिल भारतीय किसान महासभा के महासचिव राजाराम सिंह, साहित्यकार सुमंत शरण, भाकपा-माले के राज्य सचिव कुणाल, इसकस के संयोजक अशोक कुमार, नाट्यकर्मी रंजीव वर्मा, माले विधायक दल के नेता महबूब आलम, शिक्षाशास्त्री गालिब, अधिवक्ता विजय कुमार सिंह आदि उपस्थित थे.

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