बेगूसराय : तिलड़िहा दुर्गा मंदिर का इतिहास - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 29 सितंबर 2018

बेगूसराय : तिलड़िहा दुर्गा मंदिर का इतिहास

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बेगूसराय (अरुण शाण्डिल्य) तारापुर अनुमंडल के सीमावर्ती क्षेत्र बदुआ नदी के किनारे बसे हरवंशपुर गॉव में प्रसिद्ध तांत्रिक शक्तिपीठ माँ तिलडीहा दुर्गा मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। प्रतिवर्ष शारदीय नवरात्रा में नौ दिन तक लाखों श्रद्धालूओ की भीड़ जुटती है।मुंगेर व बाँका जिला प्रशासन मेले में विधि व्यवस्था के लिए यहाँ कंट्रोल रूम भी बनाया जाता है।लगभग 415 वर्ष पूर्व इस तांत्रिक शक्तिपीठ की स्थापना वर्ष 1603 में पूर्व बंगाल के नदिया शांतिपुर जिला के उबारी राढ़ी नदी के किनारे रहने वाले हरिबल्लभ दास के द्वारा की गई थी।श्रीदास के वंशज के अनुसार हरिबल्लभ एवं हरबल्लभ दास दो भाई थे।हरिबल्लभ भागवत भजन के सिवा कोई काम नहीं करते थे।जिसके कारण भाई ने उन्हे घर से बाहर जाकर कमाने को कहा।माता की कृपा से रात्रि में ही श्री दास को माँ  ने स्वप्न में कहा कि तुम शंख,खड़ग एवं शालीग्राम लेकर घर से बाहर चलो और मुझे ऐसी जगह पर अवस्थित करो जहाँ नदी हो और शमशान भी।इसी क्रम में नदिया शांतिपुर बंगाल से चल कर तारापुर के मोहनगंज आए और यहाँ के ग्रामीणों को अपनी इच्छा से अवगत कराया।मोहनगंज में माता का मंदिर पहले से ही था। वे धौनी गाँव आये वहाँ भी मंदिर पहले से था। हरवंशपुर के नाम से प्रसिद्ध स्थान जो जंगल था, पहुँचे और वहाँ पर मंदिर के निर्माण में लग गये। उस वक्त के बनाए गऐ मिटटी का पिंड आज भी उसी अवस्था में है। श्री दास बंगाली परवार से थे। पूरोहित के रूप में बंगाली ब्राहम्ण महेशानंदाचार्य जो मोहनगंज निवासी तंत्र साधक थे, को नियुक्त कर दिया। आचार्य के नेतृत्व में 108 नरमुंड के साथ माता की वेदी का निर्माण तांत्रिक पदति से महेशानंदाचार्य के द्वारा किया गया। तब से यह मंदिर में बकरे  की बलि की प्रथा चल रही है। इंस मंदिर में कृष्ण, काली, एवं दुर्गा की पूजा होती है और बलि  जोड़े के रूप में पड़ती है।पिछले पाँच सौ वर्षों से माता की पूजा बंगला पद्धति से होता आ रहा है।नवरात्र में लगभग 25 हजार बकरे की बली दी जाती है।तिलडीहा में प्रतिवर्ष दिल्ली, मुंबई, बंगाल, केरल, आन्द्रप्रदेश के साथ-साथ पड़ोसी देश नेपाल और भूटान के श्रद्धालू भी नवरात्रा में माता का दर्शन करने आते है।जिनकी मुरादें माता द्वारा पुरी होती है।इस मंदिर की यह खासियत है कि मंदिर में माता की प्रतिमा का निर्माण तो कलाकार करते है लेकिन माता का मुख का निर्माण मेढ़पति द्वारा किया जाता है।अद्भुद हैं माता की महिमा यहाँ,कहा जाता है कि जो भी श्रद्धालु भक्त शुद्धचित्त से अबोध बाल रुप में माता से जो भी कामना याचना करते हैं उनकी कामना अवश्य ही पूरी होती है।

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