पूरा देश आर्थिक दरिद्रता दूर करने के लिए देवी लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की तैयारी में जुटा है। देवी लक्ष्मी के स्वागत के लिए साफ-सफाई में जुटा हुआ है। देश में आर्थिक दरिद्रता है तो राजनीति में वैचारिक दरिद्रता। एडीआर वाले साल में कई बार विधायकों के आपराधिक चरित्र और आर्थिक उत्थान को लेकर जनता को बताते हैं। कितने सांसद या विधायक हत्या या बलात्कार के आरोपों से ‘विभूषित’ हैं, यह बताते हैं। दरअसल हत्या, बलात्कार या अन्य संज्ञेय अपराधों का आरोपी होना राजनीति के लिए सबसे बड़ी ‘योग्यता’ है। चुनाव जीतने का आधार है। विकास योजनाओं में कमीशन खाना, समितियों की फर्जी बैठक करना और पद के नाम पर होने वाली ‘चेयर प्रैक्टिस’ संसदीय और लोकतांत्रिक प्रक्रिया का आवश्यक तत्व है। इससे शर्मसार होने की जरूरत नहीं है। क्योंकि दूसरे पर आरोप लगाने वाला खुद अपने ऊपर लगे आरोपों की फाइल पर बैठा होता है।
इन आरोप-प्रत्यारोप से अलग हटकर हमने दिसंबर 2015 में एक मासिक पत्रिका ‘वीरेंद्र यादव न्यूज’ की शुरुआत की थी। अब तक पत्रिका ने 37 अंकों की यात्रा पूरी कर ली है निर्बाध। चंदा से छपने और मुफ्त में बंटने वाली बिहार में एकमात्र पत्रिका है। चंदा को आप भिक्षाटन भी कह सकते हैं। हमने खबरों की प्रचलित धारा से हटकर काम शुरू किया। मासिक पत्रिका है, इसलिए कंटेट और पाठ्यसामग्री की मासिक उपयोगिता बनी रही, इसका पूरा ध्यान रखा। इसका फायदा हुआ कि हर अंक संग्रहणीय होता गया। और अब सभी अंकों का संकलन हमने ‘राजनीति की जाति’ नामक पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया है।
इसमें सांसद, विधायक और विधान पार्षदों की जाति, 2014 के लोकसभा चुनाव का विधान सभावार विश्लेषण और 2015 के विधान सभा चुनाव का लोक सभावार विश्लेषण किया गया है। पत्रिका के पहले अंक में ही विधायकों की पार्टी, जाति के साथ उनका मोबाइल नंबर प्रकाशित किया गया है। पिछले लोकसभा चुनाव में तीनों प्रमुख गठबंधनों के उम्मीदवार, उनकी जाति और मोबाइल नंबर छापा किया गया। इस पुस्तक में वह हर चीज है, जो एक राजनीतिक कार्यकर्ता और राजनेता के लिए जरूरी है। यह पुस्तक राजनेताओं की वैचारिक दरिद्रता दूर करने में भी सहायक होगी।
पुस्तक की कीमत है 3300 (तीन हजार तीन सौ) रुपये है। हमने दीपावली के अवसर पर 300 (तीन सौ) रुपये की छूट की घोषणा की है। यानी पुस्तक तीन हजार (3000) रुपये में मिल जाएगी। यह पुस्तक लोकसभा या विधान सभा चुनाव में जीते या हारे उम्मीदवार के साथ आगामी चुनाव की तैयारी कर रहे राजनेताओं के लिए भी है। चुनाव में 50 लाख रुपये से अधिक खर्च करने की हिम्मत रखने वालों के लिए तीन हजार रुपये की कोई कीमत नहीं है। लेकिन तीन हजार रुपये में खरीदी गयी पुस्तक बिहार को समझने सहायक होगी, चुनाव के विश्लेषण में मददगार होगी और राजनीतिक आधार विस्तार में उपयोगी साबित होगी। इसका हम विश्वास दिलाते हैं। पुस्तक खरीद कर एक बार पढि़ये। खाना-पीना भूल जाएंगे।
--वीरेंद्र कुमार यादव--
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