बिहार : सीबीआई व अन्य संस्थाओं की स्वायत्ता व विश्वसनीयता बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट उठाए कदम: दीपंकर - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 21 नवंबर 2018

बिहार : सीबीआई व अन्य संस्थाओं की स्वायत्ता व विश्वसनीयता बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट उठाए कदम: दीपंकर

पांच राज्यों के चुनाव परिणाम से स्पष्ट हो जाएगा कि भाजपा की जमीन खिसक चुकी है.29-30 नवंबर को किसानों का होगा दिल्ली में महापड़ाव, 8-9 जनवरी को मजदूर वर्ग की अखिल भारतीय हड़तालअवसरवादियों के लिए भाजपा के खिलाफ बन रहे गठबंधन में कोई जगह नहीं होनी चाहिए.
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पटना 21 नवंबर 2018, पटना में संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए माले महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि सीबीआई जैसी संस्था आज पूरी तरह भाजपा के राजनीतिक हथकंडे में तब्दील हो गई है. उसकी विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं. ऐसी स्थिति में सुप्रीम कोर्ट को इन संस्थाओं की विश्वसनीयता बचाए रखने के लिए उचित कदम उठाना चाहिए. आज मंत्रियों से लेकर नेशनल सिक्युरिटी एडवाइजर अजित डोभाल पर गंभीर आरोप लग रहे हैं, ऐसी स्थिति में उन्हें अपने पद पर बने रहने का कोई हक नहीं है. यह भी खबर आ रही है कि सुशील मोदी के साथ मिलकर राकेश अस्थाना ने जहां एक तरफ सृजन घोटाले की जांच को दबाने की कोशिश की तो दूसरे मामले में सारी कानूनी प्रक्रियाओं को किनारा करके कार्रवाई की. यह देश के लोकतंत्र के लिए खतरनाक है. आगे कहा कि विगत दिन हुई बैठक में सरकार ने रिजर्व बैंक पर दबाव बनाने की कोशिश की. सरकर 3 लाख करोड़ रुपये देने का दबाव बना रही है. यह बहुत घातक कदम होगा. नोटबंदी के जरिए सरकार ने प्रचारित किया था कि उससे 3-4 लाख करोड़ अतिरिक्त पैसे सरकार के पास आ जाएंगे लेकिन आज पूरी तरह साफ हो गया कि नोटबंदी हमारे लिए एक बेहद त्रासदी साबित हुई. ऐसी स्थिति में रिजर्व बैंक पर दबाव बनाना पूरे बैंकिंग सिस्टम और देश की अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक होगा. अच्छी बात यह है कि आज इन संस्थाओं के अंदर से भी सरकार के तुगलकी फरमानों के खिलाफ विरोध आरंभ हो गया है. यह देश व लोकतंत्र के हित में है और हम इसका स्वागत करते हैं. 11 दिसंबर के चुनाव परिणाम से स्पष्ट हो जाएगा कि भाजपा की जमीन खिसक चुकी हैै. लोकसभा चुनाव में उसे पूरी तरह बेदखल करने का मन देश की जनता ने बना लिया है. माले महासचिव ने कहा कि बिहार में चुनाव का माहौल बन रहा है लेकिन अभी तक गठबंधन को लेकर कोई आधिकारिक बात नहीं हुई है. लेकिन इतना तय है कि 2015 में जो धोखा हुआ था वह फिर नहीं होना चाहिए. कुछ लोग इस गठबंधन की चर्चा को पेशेवर अवसरवाद व खरीद-फरोख्त में तब्दील करने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसी प्रवृति का विरोध होना चाहिए. जब आज देश के मजदूर-किसान अपनी जिंदगी,खेती और अपना रोजगार बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, तो ऐसे में कुछ लोगों के द्वारा सीटों को लेकर अवसरवादी व्यवहार अपनाना बेहद निंदनीय है. भाजपा की विनाशकारी नीतियों को परास्त करने के इरादों के साथ विपक्ष का बड़ा गठबंधन बनना चाहिए और इसी को लेकर तमाम दलों को सक्रिय होना होगा. अवसरवादियों को इस गठबंधन में किसी भी प्रकार की जगह नहीं मिलनी चाहिए. कर्ज माफी व अन्य सवालों पर आंदोलनरत देश के किसान एक बार फिर 29-30 नवंबर को दिल्ली जा रहे हैं. लेकिन इस बार कर्ज माफी के सवाल के साथ-साथ इस आंदोलन में बटाईदारी, भूमि सुधार, भूख से हो रही मौतें, मनरेगा में कटौती, न्यूनतम मजदूरी, ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर मोदी सरकार द्वारा थोपे गए संकटों के सवाल भी शामिल रहेेंगे. किसानों का यह महापड़ाव नीतियों को बदलने के लिए सरकार पर दबाव बनाएगा. उसी प्रकार 8-9 जनवरी को मोदी सरकार के खिलाफ मजदूर वर्ग की ऐतिहासिक हड़ताल भी होने वाली है.संवाददाता सम्मेलन में काॅ. दीपंकर भट्टाचार्य के अलावा राज्य सचिव कुणाल, विधायक दल के नेता महबूब आलम और केंद्रीय कमिटी के सदस्य संतोष सहर भी शामिल थे.

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