- इन चुनौतियों को कैसे रोका जा सकता है इस सवाल का सीधा जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है। हालांकि पाबंदियां लगाने का काम सरकार अवश्य कर रही हैं
कुमार गौरव । पूर्णिया : आज के दौर में लगभग हर इंसान स्मार्टफोन रखता है। अभिभावक अपने बच्चों के साथ पर्याप्त समय नहीं बिता पाते, लिहाजा बच्चों के हाथों में भी स्मार्टफोन थमा दिए हैं पर अभिभावकों की यह कथित मजबूरी किशोरों को अंधेरी गलियों में ले जा रही है। ब्लू व्हेल गेम के के खतरे के बाद अब अन्य नए किस्म के गेम सामने आ रहे हैं। यह कहना है सॉफ्टवेयर एक्सपर्ट अजीत झा का। उन्होंने कहा कि राजस्थान के अजमेर जिले के ब्यावर में दसवीं की एक छात्रा ने मोमो चैलेंज लेते हुए आत्महत्या कर ली। मां बाप ने इस किशोरी की आत्महत्या के बाद उसके मोबाइल को खंगाला तो उसमें इस खेल से पैदा हुए अवसाद के संकेत मिले हैं।
...मोमो चैलेंज तकरीबन ब्लू व्हेल जैसा गेम :
उन्होंने बताया कि ब्लू व्हेल के खौफ से समाज अभी उबरा ही था कि मोमो चैलेंज, किकी डांस चैलेंज और ड्रैगन ब्रेथ जैसी आभासी चुनौतियों का खतरा पैदा हो गया है। मोमो चैलेंज तकरीबन ब्लू व्हेल जैसा गेम है, जिसमें भाग लेने वालों को एक के बाद एक खतरनाक चैलेंज दिए जाते हैं, जिन्हें पूरा नहीं करने पर या तो लोगों में अवसाद पैदा हो जाता है या फिर चैलेंज के किसी स्तर पर भाग ले रहा शख्स आत्महत्या या खुद को नुकसान पहुंचाने वाला कोई कदम उठा लेता है।
...ब्लू व्हेल गेम को ले सुप्रीम कोर्ट ने की थी टिप्पणी :
बीते वर्षों में इन्हीं कारणों से ऐसी ही कुछ चुनौतियां ब्लू व्हेल गेम और पोकेमॉन गो आदि खेलों के रूप में सामने आई हैं। इनमें भी जब तक पुलिस ने कार्रवाई नहीं की। अजीत कहते हैं कि सरकार ने कुछ कानूनी उपाय नहीं किए, चैलेंज के कारण ली जाने वाली चुनौतियों का चलन कम नहीं हुआ था। इन्हीं खतरों के मद्देनजर पिछले वर्ष सितंबर में खासतौर से ब्लू व्हेल गेम को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि ऐसी आभासी चुनौतियां अब राष्ट्रीय समस्या है। जिनके खिलाफ कारगर कदम उठाया जाना जरूरी है। पिछले साल ब्लू व्हेल गेम के खतरों को लेकर एम्स समेत देश के कई बड़े चिकित्सा संस्थानों के विशेषज्ञों ने एक शोध भी किया था। शोध के नतीजे में कहा गया था कि अकेलापन और नकारात्मक सोच रखने वाले बच्चे और युवा ब्लू व्हेल के सबसे ज्यादा शिकार हो रहे हैं।
...ऐसे खेल बच्चों के लिए घातक :
इन चुनौतियों को कैसे रोका जा सकता है इस सवाल का सीधा जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है। हालांकि पाबंदियां लगाने का काम सरकार अवश्य कर रही हैं। लेकिन इंटरनेट के इस दौर में जब प्रतिबंधों के बावजूद अफवाहें तक नहीं रोकी जा पा रही हैं, तो खुद को नुकसान पहुंचाने वाले किसी गेम और उसे पैदा चुनौतियों को प्रभावी ढंग से कोई कैसे रोक पाएगा। अभी ज्यादा अरसा नहीं हुआ है जब नकली और असली दुनिया का अंतर मिटाने वाले एक अन्य मोबाइल या ऑनलाइन गेम ‘पोकेमॉन गो’ की बेशुमार चर्चा थी। इस गेम ने पूरी दुनिया में सनसनी फैला दी थी और भारत समेत कई देशों में इसे खेलने वालों की संख्या लाखों करोड़ों में पहुंच गई थी। उस वक्त भी इसके आलोचक दलील दे रहे थे कि असली नकली दुनिया का फर्क मिटाने वाले ऐसे खेल दुनिया के लिए घातक हो सकते हैं पर यह खतरा कितना बड़ा है इसका अहसास पिछले साल ब्लू व्हेल और इस साल मोमो चैलेंज से जुड़ी घटनाएं करा रही है।
...असली और नकली दुनिया का फर्क मिटाने वाला खेल :
अजित ने कहा कि यह अहम सवाल है कि क्या कोई खेल किसी को आत्महत्या के लिए प्रेरित कर सकता है? इसके बारे में विशेषज्ञ कहते हैं कि कोई मोबाइल गेम खेलते समय हमें आनंद की अनुभूति होती है, तो वह गेम हमारे दिमाग में उसे बार बार खेलने के लिए प्रेरित करता है। ज्यादातर गेम्स में कई लेवल होते हैं जो आसान से मुश्किल होते चले जाते हैं। अलग अलग लेवल पर जो टास्क मिलते हैं, उनसे बच्चों और किशोरों में यह भावना पैदा होती है कि वे इससे भी मुश्किल काम करके दिखा सकते हैं। हालांकि कड़ी चुनौतियां मिलते चले जाने पर बच्चे यह अंदाजा नहीं लगा पाते हैं कि इससे उनकी आंखों, शरीर को क्या नुकसान हो रहा है और उनका कितना समय नष्ट हो रहा है। हर गेम बच्चों को आत्महत्या के लिए नहीं उकसाता, लेकिन जब वे कोई गेम खेलते हुए आभासी (वर्चुअल) दुनिया और असली दुनिया का फर्क भूल जाते हैं। ऐसी स्थिति में खुद को या फिर दूसरों को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

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