पांच राज्यों के चुनावों में झूठ की बुनियाद पर मुद्दा रहे राफेल की दलाली पर अब अगस्ता वेस्टलैंड स्कैम एवं बाड्रा के घर ईडी की छापेमारी भारी पड़ती दिखने लगती है। हाल यह है कि एक्जिट पोल के नतीजों से गदगद कांग्रेस प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को माफियाडान भी कहने लगी है। लेकिन सच तो यही है कि धमाचैकड़ी की इस सियासत में कांग्रेस की गले की फांस बन सकता है अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकाॅप्टर घोटाला
फिरहाल, कांग्रेस पार्टी जहां राफेल डील को केंद्र सरकार के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्तेमाल करती रही है वहीं अब अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर मामले ने उसकी हवा निकाल दी है। खासकर कांग्रेस मुखिया राहुल गांधी के जीजा राबर्ट बढ़ेरा के घर ईडी की छापेमारी ने तो जले पर नमक छिड़कने जैसा है। बता दें, अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर सौदे मामले के मुख्य बिचैलिये क्रिश्चयन मिशेल के प्रत्यर्पण के बाद से ही केंद्र सरकार और खुद पीएम मोदी इस डील में कांग्रेस के शामिल होने को लेकर कई बड़े खुलासे होने का दावा कर रहे हैं। दावा किया जा रहा है कि भारतीय जांच एजेंसियों की पूछताछ में मिशेल उन नेताओं और नौकरशाहों के नाम उगल सकता है जिन्हें 3600 करोड़ रुपए के वीवीआईपी हेलीकॉप्टर सौदे के लिए कथित रूप से रिश्वत दी गई थी। अगर ऐसा होता है तो केंद्र सरकार कांग्रेस पर नए सिरे से आक्रामक हो सकती है। या यूं कहे अगस्तावेस्टलैंड सौदा अब कांग्रेस की गले की फांस बन सकता है।
जबकि राफेल सौदे के बहाने राहुल मोदी को चोर तक कह डाला। वह ढिंढोरा पीटने में लगे है कि मोदी सरकार ने राफेल सौदे के जरिये अनिल अंबानी को उपकृत किया, लेकिन यह बताने की जरूरत नहीं समझ रहे कि रिलायंस डिफेंस इकलौती कंपनी नहीं जिसे राफेल बनाने वाली फ्रांसीसी कंपनी दासौ ने अपना साझीदार बनाया है। दो दर्जन से अधिक और कंपनियां हैं जिसे दासौ ने साझीदार बनाया है। समझना कठिन है कि आखिर राहुल गांधी केवल रिलायंस डिफेंस को ही अपनी काली सूची में क्यों रखे हुए हैं? इस मामले में इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि मनमोहन सिंह सरकार के समय भी दासौ रिलायंस डिफेंस को साझीदार बनाने के लिए तैयार थी। यह राहुल ही बता सकते हैं कि उस समय उन्हें इस पर आपत्ति थी या नहीं? सवाल यह भी है कि अगर अनिल अंबानी इतने ही अवांछित हैं तो फिर संप्रग सरकार के समय उन्हें करीब एक लाख करोड़ रुपये की परियोजनाएं शुरू करने की अनुमति क्यों दी गई? राहुल देश में घूम-घूम कर यह भी कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने राफेल सौदे के जरिये अपने मित्र अनिल अंबानी की जेब में 30 हजार करोड़ रुपये डाल दिए। इस पर दासौ कंपनी को यह बयान जारी करना पड़ा कि रिलायंस डिफेंस से उसकी साझीदारी तो उस निवेश का महज दस फीसद ही है जो उसे पहले चरण में करना है। इसका मतलब है कि अनिल अंबानी की कंपनी को 30 हजार करोड़ रुपये का ठेका मिलने की बातें सिर्फ और सिर्फ झूठ हैं।
भारत और फ्रांस के बीच फाइटर प्लेन राफेल को लेकर हुई डील में दलाली की बात को लेकर राहुल गांधी के आरोपों को अब सुप्रीम कोर्ट ने भी नकार दिया है। मतलब साफ है तीस बरस पहले जिस तरह बीपी सिंह ने बोफोर्स सौदे के कथित घोटाले को चुनावी मुद्दा बनाकर राजीव गांधी की सत्ता छीन ली, अब राहुल गांधी उसी तरह राफेल सौदे के कथित घोटाले को मुद्दा बनाकर पीएम मोदी को चोर बनाने में जुटे हैं। लेकिन कांग्रेस भूल गयी है कि स्विस से पिलाटस विमान खरीद में घोटाले में पकड़े गए हथियार दलाल संजय भंडारी के रॉबर्ट वाड्रा से करीबी संबंध है और रॉबर्ट वाड्रा के लिए संजय भंडारी ने लंदन में 19 करोड़ का मकान भी खरीद कर दिया है। ये मकान संजय भंडारी के जीजा चड्ढा ने खरीदा। इस मामले में सीबीआई जांच के बाद ईडी की छापामारी भी तेज हो गई है। अब सवाल तो कांग्रेस के दामन में दाग को लेकर भी उठने लगे हैं। बताया तो ये भी जा रहा है कि यूपीए सरकार के समय संजय भंडारी की कंपनी ओआईएस को राफेल विमानों की खरीद में शामिल करने का दवाब भी दसो कंपनी पर था, दसो ही राफेल विमान बनाती है।
कहा जा सकता है कि राफेल सौदे को लेकर राहुल गांधी झूठी सूचनाओं के आधार पर जिस तरह प्रोपोगांडा फैला रहे है, देर-सबेर वो टाॅय-टाॅय फुस्स हो जायेगा। क्योंकि उनका मकसद सिर्फ और सिर्फ मोदी को हटाना है, इसके लिए कुछ भी कर गुजरने की उनकी फंडा को जनता समझ रही है। माना राफेल में घोटाला हुआ है तो राहुल गांधी उन सबूतों को जनता के समक्ष क्यों नहीं रख पा रहे है। क्या राहुल गांधी चाहते है कि यह कांट्रैक्ट दामाद रॉबर्ट वाड्रा के करीबी संजय भंडारी की कंपनी को मिले, जो दागी है। दुसरा बड़ा सवाल यह है कि अगर वाकई राफेल डील में घोटाला हुआ है तो पैसे के लेन-देन से लेकर उन सभी दस्तावेजों को सामने लाना चाहिए जो साबित करता हो कि घाटाला हुआ है। जहां तक अगस्ताका सवाल है तो तत्कालीन सरकार ने नए हेलिकॉप्टर खरीदने के लिए मार्च 2005 में अपनी कवाजद शुरू की। इस दौरान ज्यादा दावेदारों द्वारा बोली लगवाने के लिए नए हेलिकॉप्टर्स की तकनीकी शर्तों में बदलाव किया गया। बता दें कि 2005 में ही मनमोहन सरकार ने इस डील में इंटीग्रिटी क्लॉज डाला, जिसके मुताबिक अगर किसी डिफेंड डील में कोई दलाल शामिल पाया गया, तो डील रद्द कर दी जाएगी। इसी शर्त की वजह से बाद में अगुस्टा-वेस्टलैंड डील विवाद की वजह बन गई थी। इस दौरान ही प्रणब मुखर्जी देश के रक्षामंत्री और एसपी त्यागी वायुसेना प्रमुख थे। सरकार ने सितंबर 2006 में 12 नए और वीवीआईपी हेलीकॉप्टर खरीदने के लिए एक नया टेंडर जारी किया। इसके लिए ब्रिटेन, अमेरिका व रूस की कंपनियों ने आवेदन किया। रूसी कंपनी का आवेदन शुरुआती दौर में ही खारिज हो गया। 2010 में मनमोहन कैबिनेट कमेटी ने इसकी मंजूरी दी। इसका ठेका तब 556 मिलियन यूरो यानी करीब 3,546 करोड़ रुपए में अगुस्टा वेस्टलैंड को दिया गया। अगुस्टा वेस्टलैंड का हेडक्वॉर्टर ब्रिटेन में है, जबकि इसकी पैरंट कंपनी फिनमैकेनिका का हेडक्वॉर्टर इटली में है। इस डील को लेकर पहली बार इटली की जांच एजेंसियों ने फरवरी 2012 में दलाली की बात कही। इटली की एजेंसियों के मुताबिक फिनमैकेनिका ने यह ठेका हासिल करने के लिए भारत के कुछ नेताओं और वायुसेना के कुछ अधिकारियों को 360 करोड़ रुपए की रिश्वत दी।
इटली की एजेंसियों ने इस डील में तीन दलालों- क्रिश्चियन मिशेल, गुइदो हाश्के और कार्लो गेरोसा के शामिल होने की बात कही। मार्च 2013 में भारत में इस डील की जांच सीबीआई को सौंपी। इसमें पूर्व वायुसेना प्रमुख एसपी त्यागी, उनके तीन भाइयों, ओरसी और स्पैग्नोलिनी समेत नौ लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया। इसके बाद यह डील जनवरी 2014 में रद्द कर दी गयी। इस डील में रिश्वत के आरोप की जांच के सिलसिले में जून 2014 में पश्चिम बंगाल के तत्कालीन गवर्नर एमके नारायणन से बतौर गवाह पूछताछ की। नारायणन उस ग्रुप में शामिल थे, जिसने हेलिकॉप्टर खरीदने से पहले टेंडर प्रॉसेस देखा था। अक्टूबर 2014 में इटली की निचली अदालत ने ओरसी और स्पैग्नोलिनी को हेराफेरी के लिए दो साल की सजा सुनाई और उन पर भ्रष्टाचार के आरोप माफ कर दिए। लेकिन इटली की मिलान कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को अप्रैल 2016 में पलट दिया और अगुस्टा-वेस्टलैंड और फिनमैकेनिका के प्रमुखों को भ्रष्टाचार का दोषी मानती है। मिलान कोर्ट ने ओरसी को साढ़े चार साल और स्पैग्नोलिनी को चार साल का सजा सुनाती है। वहीं, भारत की पिछली सरकार ने इटली के प्रॉसिक्यूटर्स को पर्याप्त सबूत और अहम दस्तावेज नहीं दिए। इस मामले में पूर्व वायुसेना प्रमुख एसपी त्यागी को भी भ्रष्टाचार का दोषी पाया गया। अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर डील मामले के मुख्य बिचैलियों में से एक क्रिश्चयन मिशेल को फरवरी 2017 में गिरफ्तार कर लिया गया। अब मिशेल के प्रत्यर्पण के तहत भारत लाया गया है। मिशेल के मुताबिक वह फ्रांस के मिराज जेट की खरीदारी में कमीशन एजेंट था और इटली की कंपनियों ने उसे भारत में कामकाज कराने के लिए 4.86 करोड़ डॉलर का भुगतान किया था। माना जा रहा है कि सीबीआई पूछताछ में वह कई कांग्रेस नेताओं का राज खोलेगा। ओर्सी और स्पागनोलीनी दोनों पर अंतरराष्ट्रीय भ्रष्टाचार और भारत के साथ अनुबंध में करीब 4,250 करोड़ रुपये के रिश्वत के लेने-देन के सिलसिले में फर्जी बिल बनाने का आरोप है। भारत को उम्मीद है कि इटली की कोर्ट में अगर सफलता मिलती है तो यह मामला पूरी दुनिया की नजर में आ जाएगा और बाकी बचे दो बिचैलियों को भारत लाने में मदद मिल जाएगी।
--सुरेश गांधी--

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें