मैथिली फ़िल्म के निर्माता रजनीकान्त पाठक जी कहते हैं अब तो पप्पू पास हुआ :-
बेगूसराय (अरुण शाण्डिल्य) याद कीजिये नवेम्बर 2013 का आखरी सप्ताह।दिल्ली,मध्यप्रदेश,राजस्थान,छथिसगढ़ और मिजोरम का चुनाव परिणाम आया था।यह परिणाम बीजेपी के पक्ष में था।दिल्ली में 22 से 32 सीट और मध्यप्रदेश,राजस्थान और छतीसगढ़ में बीजेपी की जबरदस्त वापसी हुई थी।इसी जीत से नरेंद्र मोदी की हवा बनी थी और 2014 आते-आते लोकसभा चुनाव में "मोदीआंधी" के रूप में प्रकट हुआ।
क्यों धाराशाही हो रही है बीजेपी?
-सिर्फ टीवी बहस और बेमतलब के मुद्दों को याद कीजिये।देशभक्ति,हिन्दू मुस्लिम,हनुमान जी का जातीय नामांकरण आदि ऐसे बेफजूल बाते के अलावा रही सही कसर संबित पात्रा जैसे अकरु प्रवक्ता की कुश्ती भी आम लोगो को नागवार गुजरा है।यहां एक बात और कहु कि- जब आप एग्रेसिव होते हैं तो आम लोगो का परसेप्सन बदलता है।और यही हुआ भी है।शोशल मीडिया पर आप ऐसे व्यक्ति को पप्पू,मंद बुद्धि साबित करने में लगे रहे जिसके जन्मकाल के पूर्व से ही प्रधानमंत्री नेहरू रहे।जो प्रधानमंत्री के गोद (इंदिरा गांधी) में पला हो।जिसके पिता स्वयं प्रधानमंत्री रहा हो।क्या वह पप्पू हो सकता है?
जो जीता वही सिकन्दर-
इस फार्मूले पर बीजेपी 2014 से चली आ रही है।ताज्जुब तो तब हुआ जब देश के प्रधानमंत्री राजनीतिक रूप से एक प्रान्त(गुजरात) से आगे अपने सोच को नही ले जा सके।सबसे बड़ा आश्चर्य तब हुआ जब सत्ताधारी बीजेपी का प्रधानमंत्री और दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष एक ही प्रान्त (गुजरात) से बने।नाम का उल्लेख करने की जरूरत नही समझा।आप खुद समझ जाएं।मोदी जी की सबसे बड़ी भूल यह हुआ कि वे किसी हिंदी पट्टी के नेता को सत्ताधारी दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने में चूक गए।। याद कीजिये जब अटल बिहारी प्रधानमंत्री बने तब अध्यक्ष किसे बनाये थे।सबसे बड़ा आश्चर्य तो नोटबन्दी की हुई।नोटबन्दी की घोषणा करने स्वयं प्रधानमंत्री आ गए। इस देश में मोदी पहले प्रधानमंत्री हुए जो विभागीय काम मे भी दिलचस्पी लेने लगे और जहां आर बी आई गवर्नर को नोटबन्दी की घोषणा करने आना था वहां स्वयं आ गए।जीएसटी तो अभी और कमाल करेगा।आगे-आगे देखिए होता है क्या?
शासन कम चिढाना ज्यादा हुआ-
प्रधानमंत्री ऊर्जावान है।इसमें कोई शक नही।व्यस्तता के वावजूद उनके चेहरे पर कभी थकान नही दिखता है।यह सुखद संकेत है।दुर्भाग्य यह है कि सत्ताधारी दल के प्रवक्ता को सरकार के कार्यक्रम को प्रचारित करना चाहिये जो इन साढ़े 4 वर्षो से भी ज्यादा कार्यकाल में हो नही सका।सुझाव है कि मोदी जी को संबित पात्रा के सभी टीवी बहस के विडीओ फुटेज मंगवा का रिव्यू करना चाहिये और पूछना चाहिए कि देहाती औरत की तरह लड़ना और ऊलजलूल बात करने के लिये प्रवक्ता नही बनाया गया है।
बड़ी देर भयो रे बड़ी देर भयो-
5 राज्यों के चुनाव परिणाम को सेमीफाइनल ही समझिए।वर्ष 2013 में आपके साथ भी यही हुआ था।आपने भी सेमीफाइनल जीता तो आज राहुल गांधी ने जीता।वो भी तब जब सांगठनिक रूप से बीजेपी ऐतिहासिक बुलन्दी पर है।जर्रे जर्रे पर कार्यकर्ता और संग़ठन।इसलिय यह बीजेपी की बड़ी हार है।इसे क्रमशः ही समझिये क्योंकि 4 महीना में कोई चमत्कार नही होने वाला है।
दुष्यंत की पंगति ---
तुम्हारे पांव के नीचे कोई जमीन नही,
कमाल यह कि फिर भी तुम्हें यकीन नही।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें