- भाकपा-माले व वाम दलों के बिहार बंद को राजद, हम, सपा, वीआईपी, कांग्रेस और अन्य दलों का मिला समर्थन.
- राज्य में यातायात व्यवस्था चरमराई, हजारों बंद समर्थकों की हुई गिरफ्तारी.
- आशा-रसोइया-आंगनबाड़ी सहित बड़ी संख्या में स्कीम वर्करों ने निकाला जुलूस, संगठित क्षेत्र में खासा असर.
- जो सरकार वर्करों को न्यूनतम मजदूरी भी न दे सके उसे सत्ता में बने रहने का अधिकार नहीं.
पटना 9 जनवरी 2018 , मजदूर वर्ग की देशव्यापी आम हड़ताल के समर्थन में आज भाकपा-माले सहित वाम दलों का बिहार बंद असरदार रहा. राजधानी पटना के साथ-साथ राज्य के विभिन्न जिला केंद्रों पर बंद समर्थकों ने रेल-सड़क यातायात को बाधित किया, जिसके कारण यातायात व्यवस्था चरमरा गई. बंद के दौरान राज्य में सैकड़ों बंद समर्थकों की भी गिरफ्तारी हुई. कई जगहों पर भाजपा के लोगों ने बंद समर्थकों पर हमला किया. राजधानी पटना में बंद का मुख्य जुलूस दिन के 12 बजे गांधी मैदान निकला, जिसका नेतृत्व वाम दलों के राज्य स्तरीय नेताओं ने किया. इसके पहले स्टेशन गोलबंर से बिहार राज्य विद्यालय रसोइया संघ के नेतृत्व में सैंकड़ों की संख्या में रसोइयों ने मार्च निकाला. कंकड़बाग से सैकड़ों की संख्या में भाकपा-माले कार्यकर्ताओं ने कंकड़बाग से और हड़ताली मोड़ से ऐक्ट के नेतृत्व में सैकड़ों मजदूरों ने मार्च निकाला. ये सभी मार्च मुख्य जत्थे में मिल गए और गांधी मैदान से एक साथ डाकबंगला चैराहे की ओर प्रस्थान किया.
डाकबंगला चैराहे पर संगठित क्षेत्र के मजदूरों-कर्मचारियों के साथ-साथ बड़ी संख्या में स्कीम वर्कर, खेत मजदूर, निर्माण मजदूर, मनरेगा मजदूर, छात्र-नौजवान, बीमा-बैंक के कर्मचारी, स्वास्थ्य कर्मचारी आदि ने हिस्सा लिया और मोदी सरकार को उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया. बंद का जुलूस डाकबंगला चैराहा पर सभा में तब्दील हो गई, जिसे वाम नेताओं के अलावे राजद, विकास इंसान पार्टी व अन्य विपक्षी दलों के नेताओं ने भी संबोधित किया. बंद को कांग्रेस, सपा, हम आदि विपक्षी दलों ने भी अपना समर्थन व्यक्त किया. सभा को मुख्य रूप से माले राज्य सचिव कुणाल, खेग्रामस के महासचिव धीरेन्द्र झा, सीपीआई के राज्य सचिव सत्यनारायण सिंह, सीपीआईएम के सर्वोदय शर्मा, एसयूसीआईसी के राजकुमार चैधरी, राजद के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे, तनवीर हसन, विकास इंसान पार्टी के मुकेश सहनी, ऐक्टू नेता रणविजय कुमार, बिहार राज्य विद्यालय रसोइया संघ की राज्य अध्यक्ष सरोज चैबे, ऐडवा की रामपरी देवी, एटक के गजनफर नबाव सहित कई नेताओं ने संबोधित किया, जबकि सभा का संचालन सीपीआईएम के राज्य सचिव अवधेश कुमार ने किया. इस मौके पर भाकपा-माले के वरिष्ठ किसान नेता केडी यादव, ऐपवा की महासचिव मीना तिवारी, वरिष्ठ नेता राजाराम, बिहार राज्य आशा कार्यकर्ता संघ की राज्य अध्यक्ष शशि यादव, किसान नेता शिवसागर शर्मा, उमेश सिंह व राजेन्द्र पटेल, ऐक्टू के बिहार राज्य महासचिव आर एन ठाकुर, बिहार राज्य अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ-गोप गुट के सम्मानित अध्यक्ष रामबलि प्रसाद, इनौस नेता नवीन कुमार, सुधीर कुमार, टेंपो यूनियन के नेता मुर्तजा अली, आइसा के बिहार राज्य अध्यक्ष मोख्तार, संतोष झा, समता राय, अशोक कुमार, पन्नालाल, सहित बड़ी संख्या में भाकपा-माले, आइसा-इनौस व विभिन्न मजदूर संगठनों के नेता उपस्थित थे.
अपने संबोधन में माले राज्य सचिव कुणाल ने हड़ताली मजदूरों व कर्मचारियों का पूरे वामपंथ की ओर से अभिनंदन किया. कहा कि मोदी सरकार की कारपोरेटपरस्त नीतियों के खिलाफ विगत दो दिनों से पूरा देश ठप्प है. कारपोरेट पक्षीय श्रम कानूनों में संशोधनों को वापस लेने, सभी स्कीम वर्करों के लिए न्यूनतम 18 हजार वेतन का प्रावधान करने, समान काम के लिए समान वेतन लागू करने, पुरानी पेंशन नीति बहाल करने आदि मांगों पर यह हड़ताल है, जो पूरी तरह जायज है. भाकपा-माले, अन्य वाम व विपक्षी दल उनकी मांगों के समर्थन में आज पूरे देश में सड़कों पर उतर रहे हैं. बिहार में भी आज भाजपा का ही राज चल रहा है और नीतीश महज मुखौटा बन कर रह गए हैं. माॅब लिंचिंग आम हो गई है, अपराध आज चरम पर है. किसानों को कोई मुआवजा नहीं मिल रहा है, धान खरीद की कोई व्यवस्था नहीं हो रही है. आशा कार्यकर्ताओं के मानदेय में एक हजार वृद्धि करने में भी सरकार केे पसीने छूट गए और अब मानदेय को सरकार प्रोत्साहन राशि बता रही है. 7 जनवरी से विद्यालय रसोइयों की हड़ताल चल रही है. इस जुल्मी सरकार को हमसब मिलकर ईंट से ईंट बजा देने और आने वाले चुनाव में मोदी सरकार को दिल्ली की सत्ता से उखाड़ फेंकेंने का संकल्प लेते हैं. अखिल भारतीय खेत व ग्रामीण मजदूर सभा के महासचिव धीरेन्द्र झा ने अपने संबोधन में कहा कि बिहार में आशाकर्मियों की लंबी हड़ताल चली और अब रसोइया व आंगनबाड़ी सेविका-सहायिकाओं की हड़ताल चल रही है. लेकिन दिल्ली-पटना की सरकार स्कीम वर्करों को न्यूनतम मजदूरी भी नहीं दे रही है. जो सरकार स्कीम वर्करों को न्यूनतम मजदूरी भी नहीं देती, उसे सत्ता में बने रहने का कोई भी अधिकार नहीं है. ऐसी सरकार को गद्दी से उतार फेंकना होगा. सरोज चैबे ने कहा कि जब तक रसोइयों को सरकारी सेवक का दर्जा नहीं मिलता उन्हें 18 हजार मासिक वेतन मिलना चाहिए. उन्हें सामाजिक सुरक्षा भी मिलनी चाहिए. रसोइयों की हड़ताल पर गंभीरता से विचार करने की बजाए सरकार ने दमन अभियान चला दिया है. सरकार वैकल्पिक व्यवस्था करने की बात कह रही है. यदि ऐसा होगा तो यह आंदोलन और आगे बढ़ेगा. उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद है कि जिस प्रकार से आशा कार्यकर्ताओं के आंदोलन को विभिन्न दलों का समर्थन मिला, रसोइयों के आंदोलन को भी सभी विपक्षी पार्टियों का व्यापक समर्थन मिलेगा.
सैकड़ों बंद समर्थकों की गिरफ्तारी, राष्ट्रीय-राज्य पथों को किया जाम
मजदूर वर्ग की आम हड़ताल के समर्थन में भाकपा-माले व अन्य बंद समर्थकों को जगह-जगह गिरफ्तार किया गया. फुलवारी शरीफ में सैंकड़ों बंद समर्थक माले कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी हुई. मधुबनी के भी कई इलाकों से गिरफ्तारी की खबरें आई हैं. वहां आइसा व इनौस के कार्यकर्ताओं ने शहीद एक्सप्रेस के परिचालन को बाधित किया. नवादा में बंद समर्थकों ने प्रजातंत्र चैक को घंटों जाम रखा. मुजफ्फरपुर में बिहार बंद के दौरान भाकपा-माले व वाम दलों तथा राजद का जुलूस निकला और एनएच 57 को बोचहां व गायघाट में जाम किया गया. एनएच 28 सकरा में, एनएच 722 सकरा में,ख् मुजफ्फरपुर-हाजीपुर एनएच को तुर्की व कुढ़नी में तथा बंदरा, मुशहरी, मीनापुर व साहेबगंज में जाम कर दिया गया. पश्चिम चंपारण के बेतिया में भी बंद का व्यापक असर दिखा. समस्तीपुर में भाकपा-माले व इनौस के नेतृत्व ूमें एनएच 28 पर चक्का जाम किया गया और फिर एक सभा आयोजित की गई.
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